आरक्षण केवल कांग्रेस की चुनावी चाल
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देशभर में हार का स्वाद चखने के बाद महाराष्ट्र में आसन्न विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जब कांग्रेस के पास कोई मुद्दा शेष नहीं रहा तो महाराष्ट्र में सत्तासीन कांग्रेस ने मराठों और मुसलमानों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरी में आरक्षण दिए जाने की चाल चली है। राज्य सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार महाराष्ट्र में मराठों के लिए 16 प्रतिशत और मुसलमानों के लिए 05 प्रतिशत सरकारी रोजगार आरक्षित रहेंगे।
राज्य मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए इस फैसले को लेकर विभिन्न विवाद भी खड़े हो गए हैं। जहां तक मराठों के लिए रोजगार के आरक्षण का सवाल है। इसके पहले 2008 में राज्य सरकार द्वारा मराठों को पिछड़ी जाति का दर्जा प्रदान कर उन्हें आर्थिक पिछड़े में लाभ दिलाने के लिए आरक्षण दिए जाने को लेकर पूर्व न्यायाधीश आरएम बापट की अध्यक्षता में नियुक्त किए गए आयोग से स्पष्ट कहा था कि राज्य का मराठा समाज पिछड़ा नहीं है और इसे आरक्षण जैसा लाभ नहीं दिया जाना चाहिए। इसके बाद राज्य सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वर्तमान में राज्य के उद्योग मंत्री नारायण राणे की अध्यक्षता में मराठों के आरक्षण के मुद्दे पर सुझाव देने के लिए विशेष समिति का गठन किया। समिति ने राज्य के करीब पांच लाख परिवारों का सर्वेक्षण करने के बाद कहा कि मराठा समाज सामाजिक तौर पर तो नहीं लेकिन शिक्षा एवं आर्थिक तौर पर अवश्य पिछड़ा हुआ है। राणे समिति ने महाराष्ट्र में मराठों के लिए 20 प्रतिशत और मुसलमानों के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण का सुझाव दिया था। सरकार ने पहले तो राणे समिति के इन सुझावों को अनदेखा कर दिया लेकिन जब लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को पूरे राज्य में मुंह की खानी पड़ी तब जाकर हड़बड़ी में मराठों-मुसलमानों के लिए आरक्षण का यह फैसला राजनीतिक जल्दबाजी में लिया है। अधिवक्ता केतन निराड़ेकर ने मुंबई उच्च न्यायालय में न्यायिक याचिका दाखिल कर मराठा-मुसलमानों के प्रस्तावित फैसले को चुनावपूर्व राजनीतिक पहल बताते हुए जब इस फैसले को चुनौती दी तो सरकार के महाधिवक्ता दरायस खंबारा को विवश होकर उच्च न्यायालय में कहना पड़ा कि मराठों एवं मुसलमानों के आरक्षण को लेकर केवल मंत्रिमंडल ने फैसला किया है मामले को सरकारी निर्णय के तौर पर अभी घोषित नहीं किया गया है।
महाराष्ट्र सरकार के इस चुनावी फैसले के चलते एक तरफ तो न्यायालय में उसकी किरकरी हुई ही है साथ ही राज्य के मतदाताओं में भी इसका गलत संदेश गया है।
महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार की तर्ज पर झारखंड सरकार ने भी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में मुसलमानों और वनवासियों के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले दिनों कोर गु्रप अधिकारियों और विधि विशेषज्ञों से इस मुद्दे पर राय ली। बैठक में आरक्षण को लेकर चर्चा की गई है। इसमें तय किया गया कि झारखंड में भी मुसलमानों और वनवासियों के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा। इसके लिए अधिकारियों से महाराष्ट्र, तमिलनाडू व अन्य राज्यों की आरक्षण नीति के बारे में जानकारी लेने का निर्देश दिया। सरकार की योजना इसे चुनावों से पहले लागू करने की है।
अध्यादेश का रास्ता साफ
राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में मराठा और मुस्लिमों को आरक्षण देने के फैसले का अध्यादेश लाने का रास्ता साफ हो गया है। राज्यपाल श्री शंकरनारायण ने अध्यादेश लाने का रास्ता साफ करने वाली अधिसूचना पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
सोनिया ने बताया बदले की कार्रवाई
नेशनल हेराल्ड वाले मामले में आयकर विभाग द्वारा नोटिस जारी किए जाने को सोनिया ने बदले की कार्रवाई बताया है। उन्होंने कहा कि इस कार्रवाई से उन्हें लड़ने की और ताकत मिलेगी और कांग्रेस फिर से सत्ता में वापसी करेगी। गत 09 जुलाई को सोनिया गांधी ने संवाददाताओं से कहा कि उनके खिलाफ आयकर विभाग का नोटिस बदले की भावना से की गई कार्रवाई है। ऐसा राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है। वहीं सूचना प्रसारण राज्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इन आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि यदि बदले की कार्रवाई होगी तो कांग्रेस को छिपने की जगह भी नहीं मिलेगी।
महंगाई पर चर्चा के दौरान ऊंघते दिखे राहुल
विपक्ष के जोरदार हंगामे के बाद जब लोकसभा में महंगाई पर चर्चा चल रही थी तो उस समय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ऊंघ रहे थे। दरअसल महंगाई पर चर्चा के दौरान जब माकपा के सांसद पी. करुणाकरण बोल रहे थे ठीक उनके पीछे बैठे राहुल गांधी ऊंघ रहे थे। भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि कांग्रेस महंगाई पर चर्चा नहीं बस नारा लगाना जानती है, इसलिए उनके उपाध्यक्ष सो रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने राहुल के लोकसभा में सोने के विवाद पर मीडिया को ही खरी खोटी सुनाते हुए कहा कि यह घटिया दर्जे की पत्रकारिता है।
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