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होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक विशेष भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। विदेशों में बसे हिन्दू लोग भी इसे धूमधाम से मनाते हैं। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन जिसे धुलेण्डी या धूलिवंदन कहा जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करते हैं, ढोल बजाकर जगह-जगह पर होली के फाग गाये जाते हैं। घर-घर जाकर लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। होली के दिन सभी लोग पुरानी कटुता या द्वेषभाव को भूलकर गले मिलते हैं और फिर से मित्र बन जाते हैं। एक-दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर लोग नये वस्त्र धारण कर लोगों के घर-घर जाकर होली मिलते हैं, यह क्रम कई दिनों तक जारी रहता है।
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं, पर इनको उत्कर्ष तक पहुंचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूं की बालियां पकने लगती हैं। किसानों का हृदय खुशी से नाच उठता है। बच्चे, बूढ़े और जवान सभी लोग पुरानी बातें भूलकर ढोलक की थाप पर नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
होली से जुड़ी कहानी
होली के पावन पर्व से अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध कहानी भक्त प्रहलाद की है। प्राचीन काल में हिरणाकश्यप नामक एक बलशाली राक्षस था। अपने बल के घमण्ड में आकर वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान का नाम लेने पर ही प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन उसी राक्षस के घर पुत्र प्रहलाद का जन्म हुआ थ�%
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