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विजय कुमार
शर्मा जी के घर के बरामदे में एक पुरानी कुर्सी रखी है। वे उसी पर बैठकर चाय पीते हुए अखबार पढ़ते हैं। कभी कोई और उस पर बैठ जाए, तो उनका गुस्सा देखते ही बनता है; पर पिछले दिनों उनकी अनुपस्थिति में बच्चों ने उसका उपयोग क्रिकेट में विकेट की तरह कर लिया। इस चक्कर में उसकी एक टांग जाती रही। यह देखकर शर्मा जी का पारा चढ़ गया। उन्होंने उसी क्षण तय किया कि अब वे इस कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। उन्होंने यह भी निश्चय किया कि अब बैठेंगे, तो सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ही बैठेंगे। इसके बाद उन्होंने वह कुर्सी ह्यहोली चौकह्ण पर लकडि़यों के ढेर में रख दी।
अब उन्हें इसकी धुन सवार हो गयी। कल मिले, तो पूछने लगे – क्यों वर्मा, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए मैं क्या करू ं?ं
– आप कुर्सी पर एक चिट लगा दें ह्यप्रधानमंत्री की कुर्सीह्ण, और फिर उस पर बैठ जाएं।
– होली का मजाक छोड़ो और गंभीरता से बताओ ?
– फिर तो इसके लिए वर्तमान और भावी प्रधानमंत्री पद के दावेदारों से मिलकर उनके अनुभव जानना ठीक रहेगा।
बात शर्मा जी की समझ में आ गयी। अगले दिन वे मनमोहन जी के घर जा पहुंचे और अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया – सर, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?
– मेरे विचार से इसके लिए ह्यकुछ करनेह्ण की बजाय ह्यकुछ नहीं करनाह्ण ज्यादा जरूरी है। पिछले दस साल में मैंने कुछ नहीं किया। जो भी करना है, वह मैडम इटली या फिर राहुल बाबा करते हैं।
दस साल तक चुप रहने वाले सरदार जी की यह स्पष्टवादिता देख शर्मा जी उठे और यही प्रश्न राहुल बाबा से पूछ लिया। वह तो उल्टा उनके ही गले पड़ गये – श्रीमान जी, इसका उत्तर ढूंढने के लिए ही तो मैं देश भर में धक्के खा रहा हूं।
– लेकिन फिर भी, कुछ तो बताइये़. ?
– तो सुनिये। कांग्रेस में प्रधानमंत्री बनने के लिए नाम के साथ चाहे असली हो या नकली; पर गांधी लगा होना जरूरी है।
यहां से निराश होकर उन्होंने केजरीवाल का दरवाजा खटखटाया। वे खांसते हुए बोले – देखिये, हमारा मुख्य सूत्र है गाली देकर भागना। बड़े लोगों को गाली देने से खूब प्रचार होता है। इसी तरह मैं मुख्यमंत्री बना और ऐसे ही प्रधानमंत्री बनूंगा।
– मुख्यमंत्री पद आपने डेढ़ महीने में छोड़ दिया, तो प्रधानमंत्री पद कितने दिन में छोड़ेंगे ?
– डेढ़ दिन से लेकर डेढ़ सप्ताह तक कुछ भी हो सकता है। हम सब छोड़ सकते हैं; पर विदेशी चंदा और आंदोलन नहीं छोड़ेंगे।
शर्मा जी मुलायम सिंह के पास गये, तो वे कुछ लोगों की दाढ़ी सहला रहे थे। लाल होकर वे बोले – देख नहीं रहे हम क्या कर रहे हैं ? प्रधानमंत्री बनने के लिए यही जरूरी है; पर इसमें हमसे आगे कोई नहीं निकल सकता। समझे़.़?
शर्मा जी ने ममता, मायावती और जयललिता से भी संपर्क किया। ममता जी अन्ना हजारे के साथ व्यस्त थीं, तो जयललिता वामपंथियों के संग। मायावती ने ह्यना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैरह्ण गाते हुए कहा कि जो मुझे प्रधानमंत्री बनाएगा, मैं उसी के साथ हूं। शर्मा जी नीतीश कुमार से भी मिले; पर मिलने के लिए ह्यहाथह्ण बढ़ाते ही वे भड़क गये और दरवाजा बंद कर लिया। लालू जी अपनी भैसों के दूध और चारे के हिसाब में लगे थे। पूछने पर बोले कि मेरी रुचि प्रधानमंत्री बनने में नहीं, बनवाने में है।
कई दिन धक्के खाकर भी शर्मा जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने का कोई सर्वसम्मत सूत्र नहीं तलाश सके। कल उन्होंने सब मित्रों को अपने अनुभव सुनाये। इस पर गुप्ता जी हंसने लगे – शर्मा जी, आपने इतना परिश्रम किया; पर जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाला है, उस नरेन्द्र मोदी से तो आप मिले ही नहीं?
यह सुनते ही शर्मा जी का चेहरा उतर गया। वे चुपचाप ह्यहोली चौकह्ण गये और अपनी पुरानी कुर्सी लाकर फिर बरामदे में रख ली।
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