नब्ज बता रही थी कि देश का हाल क्या है। नतीजे बता रहे हैं कि जनता क्या चाहती है और इसके लिए क्या-क्या कर सकती है। हाल में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, चार में कांग्रेस पार्टी चारों खाने चित्त है और यही फिलहाल देशभर में चर्चा का मुद्दा है। इसके साथ ही एक और बहस देश भर में छिड़ी है- क्या दिल्ली में कमाल दिखाने वाली आम आदमी पार्टी की चिंगारी देश भर में परिवर्तन की मशाल बनेगी? दरअसल, कांग्रेस के पराभव के संकेत इतने साफ हैं जितने पहले कभी नहीं थे। वंशवाद पर पलती पार्टी अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी से जिस चमत्कार की आस पाले बैठी थी, अरमानों के वे महल पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के जन्मदिन (9 दिसंबर) से ठीक एक दिन पहले धराशाई हो गए। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के कद्दावर प्रत्याशी, नरेन्द्र मोदी के सामने जिसे प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा था वह 'युवराज' रातोरात केजरीवाल के करिश्मे के चलते जनता और मीडिया की चौपालों पर विमर्श की रेखा से परे धकेल दिए गए। देशभर में केसरिया परचम और कांग्रेस का लचर प्रदर्शन क्या इस बात की मुनादी है कि कुनबे के राज के दिन जाने वाले हैं? क्या बदलाव की बयार पूरे देश में बह रही है? जनादेश को बारीकी से देखें तो उत्तर निकलता है- हां। हालांकि कांग्रेस मिजोरम में जीती है परंतु पूर्वोत्तर की पूंछ थामने भर से डूबती नैया पार होगी ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। अच्छा होने के बावजूद पार्टी के लिए यह संकेत ऐसा है जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी के साथ होने वाली दुर्घटना टाली नहीं जा सकती। विश्लेषक मान रहे हैं कि हिन्दी पट्टी ने इन चुनावों के जरिए कांग्रेस का भविष्य बांच दिया है। भ्रष्टाचार और महंगाई के रिकार्डतोड़ कलंक तो यूपीए सरकार पर थे ही, इन नतीजों के बाद भविष्य के नेतृत्वकारी चेहरे के छिनने से उसकी स्थिति और भी विचित्र हो गई है। विदाई की बेला में विरुदावलि गायन आसान नहीं है, मुंह छिपाना और काम भी गिनाना, यह ऐसा असंभव काम अब केंद्र सरकार के गले आ पड़ा है कि अंदरखाने विभिन्न सहयोगी दल भी कांग्रेस से पल्ला छुड़ाने की तरकीब सोच रहे हैं। राजनीति में कांग्रेस के शीर्ष परिवार का यह बौनापन खासतौर से दिल्ली ने कभी नहीं देखा था। आपातकाल के ठीक बाद भी देशभर में पिटने के बावजूद दिल्ली में कांग्रेस का प्रदर्शन इस बार की धुलाई के मुकाबले बेहतर था। मगर आज दिल्ली में पार्टी कहां है? एक नमूना लीजिए- जिस अंबेडकर नगर विधानसभा क्षेत्र में राहुल गांधी की जनसभा आठ मिनट में सिमट गई थी कांग्रेस के उस गढ़ में उसके गिनीज बुक रिकार्डधारी विधायक की 40 साल लंबी पारी 16 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से समाप्त हुई और स्थान मिला तीसरा। इस तरह की कहानियां कई हैं, नई हैं मगर एक बात साफ है- कमाल के मामले में आम आदमी पार्टी सबसे आगे है तो प्रदर्शन के मामले में भाजपा। वैसे, सीमित साधनों के सहारे व्यवस्थित प्रबंधन और जनसरोकारों से सीधे जुड़ते हुए अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने जिस कौशल का परिचय दिया है उससे संभावनाओं का आकाश खुलता है। इन विधानसभा चुनावों में भाजपा के जोरदार प्रदर्शन और सीमित क्षेत्र में ही सही, एक नई संभावना के उदय से एक बात तो तय हो ही गई है। नैतिक दृष्टि से शून्य, तुष्टीकरण पर पलती और परिवार सर्वोपरि का जाप करने वाली राजनीति को छोड़ने का मानस पूरे देश में बन रहा है। शुचिता और श्रम बड़े मूल्य हैं, भाजपा इसी राह पर बढ़ती आई पार्टी है। आज देश का आम आदमी सिद्धांतों के ऐसे ही रास्ते पर बढ़ने को उत्सुक है। अचानक कुछ अच्छी चीजें प्रासंगिक हो गई हैं। पं. दीन दयाल का दर्शन और गांधी टोपी का असर देश महसूस कर रहा है, नाम के गांधी जनाकांक्षाओं के धरातल से लापता हो गए हैं।
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