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1971 के बंगलादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी फौजियों के साथ मिलकर अपने ही वतन के लोगों, खासकर हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर कत्ल करने, बलात्कार और अन्य अपराधों के लिए बंगलादेश की कट्टरवादी पार्टी जमाते इस्लामी के नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को 12 दिसम्बर की रात फांसी दे दी गई। ह्यमीरपुर के कसाईह्ण के नाम से कुख्यात रहे मुल्ला की रहम की अपील को वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने 12 दिसम्बर को सुबह खारिज करते हुए उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी थी। मुल्ला को 5 फरवरी को युद्घ अपराधों की जांच कर रहे ट्रायब्यूनल ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन अपेलेट डिवीजन ने 17 सितम्बर को और सख्ती दिखाते हुए उसके लिए फांसी की सजा तय कर दी थी। उसी फैसले को अंजाम देने के लिए जेल वार्डन को मौत का वारंट भेजा जा चुका था और जेल वालों ने 10 दिसम्बर को उसको टांगने की तैयारियां शुरू कर दी थीं, कि रात करीब बारह बजे मुल्ला के वकील की फैसले पर फिर से गौर करने की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी को आखिरी पल में स्थगित कर दिया था। लेकिन दो दिन की सुनवाई के बाद जैसे ही सबसे बड़ी अदालत ने फांसी की सजा पर मुहर लगाई, मुल्ला को फांसी पर लटका दिया गया। ढाका में लोगों ने फांसी देने के फैसले का स्वागत करते हुए
जुलूस निकाला।
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