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भारत भूमि पवित्र भूमि है, भारत मेरा तीर्थ है, भारत मेरा सर्वस्व है, भारत की पुण्य भूमि का अतीत गौरवमय है, यही वह भारतवर्ष है,जहां मानव प्रकृति एवं अन्तर्जगत् के रहस्यों की जिज्ञासाओं के अंकुर पनपे थे। स्वामी विवेकानन्द के इन शब्दों से भारत, भारतीयता और भारतवासी के प्रति उनके प्रेम, समर्पण और भावनात्मक संबंध स्पष्ट परिलक्षित होते हंै।
स्वामी विवेकानंद को युवा सोच का संन्यासी माना जाता है। विवेकानंद केवल आध्यात्मिक पुरुष नहीं थे वरन् वे विचारों और कायोंर् से एक क्रांतिकारी संत थे, जिन्होंने अपने देश के युवकों का आह्वान किया था-उठो, जागो और महान बनो। कोई भी स्वतंत्रता आंदोलन व्यापक राष्ट्रीय चेतना की पृष्ठभूमि के बिना संभव नहीं है। सभी समकालीन स्रोतों से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में राष्ट्रीयता की भावना के जागरण में विवेकानंद का सबसे सशक्त प्रभाव था।
भगिनी निवेदिता के अनुसार, वह नींव के निर्माण में लगने वाले कार्यकर्ता थे। वास्तव में, जिस तरह स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस बिना किसी पुस्तकीय ज्ञान के वेदांत के एक जीवंत प्रतीक थे तो उसी प्रकार विवेकानंद राष्ट्रीय जीवन के प्रतीक थे। अंग्रेज पहले ही आशंकित हो चुके थे। अल्मोड़ा में पुलिस विवेकानंद की गतिविधियों पर दृष्टि रख रही थीं। 22 मई को श्रीमती एरिक हैमंड को भेजे अपने पत्र में भगिनी निवेदिता ने लिखा, आज सुबह एक भिक्षु को यह चेतावनी मिली थी कि पुलिस अपने जासूसों के द्वारा स्वामी जी पर दृष्टि रख रही है नि:संदेह, हम सामान्य रूप से इस बारे में जानते हैं। किन्तु अब यह और स्पष्ट हो गया है और मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकती, यद्यपि स्वामी जी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। सरकार अवश्य ही मूर्खता कर रही है या कम से कम तब ऐसा स्पष्ट हो जाएगा, यदि वह उनसे उलझेगी। वह पूरे देश को जगाने वाली मशाल होगी। और मैं इस देश में जीने वाली अब तक कि सबसे निष्ठावान अंग्रेज महिला। हम स्वामी जी के शब्दों का प्रभाव कुख्यात ह्यविद्रोह समितिह्ण की रपट में देख सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के लेखों और शिक्षाओं ने अनेक सुशिक्षित हिन्दुओं पर गहरी छाप छोड़ी। ब्रिटिश सीआईडी जहां भी किसी क्रांतिकारी के घर की तलाशी लेने जाया करती थी, वहां उन्हें विवेकानंद जी की पुस्तकें मिलतीं थीं।
प्रसिद्घ देशभक्त-क्रांतिकारी ब्रह्मबांधव उपाध्याय और अश्विनी कुमार दत्त से चर्चा के दौरान हेमचन्द्र घोष ने सन्1906 में टिप्पणी की, मुझे अच्छी तरह याद है कि स्वामी जी ने मुझे बंगाली युवाओं की अस्थियों से एक ऐसा शक्तिशाली हथियार बनाने को कहा था, जो भारत को स्वतंत्र करा सके। अपनी प्रेरणादायी रचना, ह्यद रोल आफ ऑनर एनेक्डोट ऑफ इंडियन मार्टियर्सह्ण में कालीचरण घोष बंगाल के युवा क्रांतिकारियों के मन पर स्वामी जी के प्रभाव के बारे में लिखते हैं, स्वामी जी के सन्देश ने बंगाली युवाओं के मनों को ज्वलंत राष्ट्र-भक्ति की भावना से भर दिया और उनमें से कुछ में कठोर राजनैतिक गतिविधि की प्रवृत्ति उत्पन्न की। स्वामी विवेकानंद के देहांत से पूर्व? देश उन संगठनों के महत्व के प्रति जागरुक हो गया था जो बड़े पैमाने पर शारीरिक उन्नति, खेल, तलवारबाजी, कृपाण और लाठी के खेल, समाज-सेवा, राहत कार्य आदि करते थे। सन् 1902 तक ऐसे संगठन उभर आए थे, जिनमें प्रखर राष्ट्रवाद के साथ ही एक आध्यात्मिक भावना भी थी, जैसे सतीश मुखर्जी और पी़. मित्रा के नेतृत्व में अनुशीलन समिति।
स्वामी विवेकानंद के बौद्विक जगत में तैयार किए विक्षोभ के वातावरण के विस्फोट का आभास उनके देहांत के बाद बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन के नेता के रूप में श्री अरविंद के उद्भव के तौर पर सामने आया। भगिनी निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद के देशभक्ति और राष्ट्र निर्माण के आदशोंर् को एक आधारभूत संबंल प्रदान किया। सन् 1910 में जब श्री अरविंद को दूसरी बार गिरफ्तार करने की बात की चर्चा थी, उस समय निवेदिता की सलाह थी कि नेता घर से दूर रहते हुए भी घर जितना काम कर सकता है और इस सलाह ने उनके फ्रांसीसी क्षेत्र पुदुचेरी जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
हम राष्ट्रीय परिदृश्य पर स्वामी विवेकानंद के उभरने से पहले की स्थिति पर एक दृष्टि डालें। अंग्रेजी शिक्षा, देशी साहित्य, भारतीय प्रेस, कांग्रेस सहित विभिन्न सुधार आंदोलन और राजनीतिक संगठन अस्तित्व में आ चुके थे और विवेकानंद से पूर्व उनका प्रभाव फैल चुका था। इन सबके बावजूद, एक सर्वव्यापी राष्ट्रीय चेतना का अभाव था । अगर ऐसा नहीं होता तो मद्रास से प्रकाशित होने वाला द हिन्दू सन् 1893 की शुरुआत में प्रमुख समुदाय हिंदुओं के धर्म के बारे में यह कैसे लिख सकता था कि यह मर चुका है और उसकी क्षमता चुक गई है। पर इसी समाचार पत्र ने एंग्लो इंडियन और मिशनरी अखबारों सहित अन्य प्रकाशनों के साथ एक वर्ष से भी कम समय में लिखा कि वर्तमान समय हिन्दुओं के इतिहास में पुनर्जागरण काल के रूप में वर्णित किया जा सकता है(मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज पत्रिका, मार्च 1897)। इसे एक राष्ट्रीय विद्रोह का नाम दिया गया (मद्रास टाइम्स, 2 मार्च 1895)। यह चमत्कार कैसे हुआ? हमें समकालीन विवरणों से जो एक उत्तर प्राप्त होता है वह यह कि विवेकानंद ने धर्म संसद में भाग लेते हुए वहां पर भारतीय धर्म और सभ्यता की महिमा का प्रचार किया और अपने देश की प्राचीन विरासत की मान्यता को प्राप्त किया और इस तरह अपने देशवासियों को दीर्घकाल से खोए हुए उनके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को वापस लौटाया।
स्वामी जी ने आत्मग्लानि में धंसे भारतीय समाज को बाहर निकाला। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म में पैदा हुआ हूं जिसने सदियों से दुनिया को राह दिखाई । चेतनाहीन समाज को चैतन्य करना उनका सबसे बड़ा योगदान है। स्वामी विवेकानंद के विचारों तथा शिक्षा ने राष्ट्रीय जीवन व संस्कृति को काफी प्रभावित किया। भारतीय क्रांतिकारियों की अनेक पीढि़यां 20 वीं सदी के प्रारंभ से ही उनके जोशीले भाषण तथा लेखन से व्यवहारत: उठ खड़ी हुईं और दृढ़ बनीं। सुप्रसिद्घ इतिहासकार यदुनाथ सरकार के अनुसार, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का यदि किसी एक व्यक्ति को श्रेय है, तो वह है विवेकानंद फिर चाहे वो आन्दोलन अहिंसात्मक हो अथवा क्रांतिकारी। महर्षि अरविन्द को क्रान्ति व योग की प्रेरणा देने वाले भी विवेकानंद जी ही थे। देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी से लेकर जितने बड़े नेता हुए, जिन्होंने देश को सबकुछ माना, उनके जीवन की प्रेरणा स्वामी विवेकानन्द ही थे। छोटे-छोटे समूहों के साथ अनौपचारिक वार्तालाप के दौरान विवेकानंद ने राजनैतिक स्वतंत्रता का आदर्श अपने देशवासियों, विशेषत: युवाओं के सामने, उनके तात्कालिक लक्ष्य के रूप में रखा। क्रांतिकारी ब्रह्मबांधव उपाध्याय ने बताया कि, सन1901 में उनकी ढाका यात्रा के दौरान जब युवाओं का एक समूह उनसे मिला और परामर्श लिया, तो उन्होंने कहा, बंकिमचन्द्र को पढ़ों और देशभक्ति व सनातन धर्म का अनुकरण करो। सबसे पहले भारत को राजनैतिक रूप से स्वतंत्र कराया जाना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद का आह्वान भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत क्रांतिवीरों के लिए एक मिशन बन गया। नि:संदेह स्वतंत्रता आंदोलन, जो कि महर्षि अरविंद के क्रांतिकारी विचारों से लेकर बाल गंगाधर तिलक की तीक्ष्ण राजनीति और महात्मा गांधी के उदारवादी अभियान तक विविध रूपों में सक्रिय था, स्वामी विवेकानंद के भारत माता की भक्ति के विचार से प्रभावित था।
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