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गीता जयन्ती (13 दिसम्बर) पर विशेष
कुरुक्षेत्र की पावन भूमि को किसी विवरण की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक भारतीय यह जानता है कि यह वही प्राचीन धरा है जहंा भगवान श्रीकृष्ण ने मोहग्रस्त अर्जुन को कर्म की शिक्षा देकर अधर्म से युद्घ के लिए पे्ररित किया था। प्रभु के मुख से प्रस्फुटित हुए वाक्य ह्यगीता का संदेशह्ण कहलाते हैं। आज भी यह संदेश उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों वर्ष पूर्व थे। इस पावन गीता जी की जन्मस्थली के रूप में कुरुक्षेत्र की धरती ने जो ख्याति प्राप्त की है वह अद्वितीय है। परन्तु श्री गीता जी के जन्म से पूर्व भी इस तीर्थ की ख्याति व महत्व कम नहीं था। यहंा पर महाभारत के युद्घ से पूर्व के भी अनेक ऐसे महत्वपूर्ण स्थान हैं जिनका महत्व आज भी बहुत अधिक है। यहंा के प्राचीन व विख्यात तीर्थ के रूप में ब्रह्म सरोवर का नाम सबसे पहले आता है। कहा जाता है कि इसी के तट पर भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि के चारों वर्णों की रचना प्रारंभ की थी। अत: उन्हीं के नाम पर यह तीर्थ ब्रह्म सरोवर कहलाता है।
कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से लगभग 3 कि़मी. की दूरी पर पर स्थापित इस तीर्थ की विशाल जलराशि देखते ही हर श्रद्घालु अद्भुत रोमंाच से भर जाता है। इतना विशाल सरोवर व उसमें समायी अनंत जलराशि अन्यत्र आसानी से देखने को नहीं मिलती। वामन पुराण में यहंा के महात्म का उल्लेख करते हुए लिखा गया है
चतुर्मुखं ब्रह्मतीर्थं
सरो मर्यादया स्थितम्।
ये सेवन्ते चतुर्दष्यां
सोपवासा वसन्ति च।
अष्टम्यंा कृष्णपक्षस्य
चैत्रे मासि द्विजोत्तमा:।
ते पष्यन्ति परं सूक्ष्मं
यस्मात् नावर्तते पुन:॥
अर्थात् चर्तुदशी व चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को इस तीर्थ में स्नान करके उपवास रखने वाले प्राणी को परमबह्म की प्राप्ति होती है तथा वह सदा के लिए जन्म मरण के बध्ंान से मुक्ति पा जाता है। इसी प्रकार इस तीर्थ में सूर्यग्रहण के अवसर पर स्नान करने का महत्व सबसे विशेष माना गया है। इस मौके पर यहंा स्नान करने वाले प्राणी को सहस्त्र अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है। यही कारण है कि हजारों वर्षों से सूर्य ग्रहण के अवसर पर लाखों लोग स्नान करने लिए देश भर से यहंा आ जुटते हैं। महर्षि परशुराम ने भी इस सरोवर के तट पर अनेक बार अपने पिता के तर्पण के कर्मकंाड सम्पन्न किये। माना जाता है कि गोकुल से जाने के उपरंात भगवान श्रीकृष्ण दोबारा राधाजी व अन्य गोपियों से कभी मिलने वापस नहीं आए। द्वारिका जाने के बाद वे अपनी रानियों सहित एक बार सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में आए। ऐसी पावन वेला में उनकी भेंट इसी पवित्र तीर्थ के तट पर राधा जी से हुई। अन्य गोपियों सहित माता यशोदा तथा नंद बाबा से भी वे वर्षों के अंतराल के पश्चात् इसी स्थान पर मिल पाए। इस घटना ने इस स्थान का महत्व और अधिक बढ़ा दिया। पहले के समय से ही इस स्थान की प्रमुखता के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। इसके तट के पास से ही एक प्राचीन बौद्घ स्तूप के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जिसका वर्णन प्रसिद्घ चीनी यात्री ह्वेनसंाग ने भी अपने विवरणों में किया है। अकबर के दरबारी अबुल फजल ने इस सरोवर की तुलना लघु समुद्र से की है। प्रसिद्घ लेखक अलबेरुनी ने भी इस स्थान के बारे में लिखा है। मुगल शासक तो यहंा जुटने वाली हिंदू श्रद्घालुओं की भीड़ से इतने आतंकित थे कि उन्होंने यहंा स्नान करने वाले यात्रियों से जजिया वसूलना आरंभ कर दिया जिसे मराठा शासकों ने पानीपत के तीसरे युद्घ के समय बंद करवा दिया।
पहले के समय में जब भी सूर्यग्रहण का समय निकट आता था, कुरुक्षेत्र में मास पूर्व ही विभिन्न क्षेत्रों के लोग आने लगते थे। सुबह शाम घाटों पर भजन कीर्तन होने लगते। मंदिरों में कई सप्ताह तक रौनक बनी रहती। चारों तरफ का वातावरण भगवत नाम से गुंजाएमान रहता। परन्तु अब आवागमन के साधनों के विकास से लोग जल्दी से यहंा पहुंच कर जल्दी ही वापस भी चले जाते हैं। सूर्यग्रहण का जो मेला दस से पंद्रह दिवस तक चला करता था, अब केवल एक या दो दिनों तक सिमट गया है। यह सब समय परिर्वतन के कारण ही है। मेले में देश भर से आए व्यापारियों की बड़ी-बड़ी दुकानें सजा करती थीं वे अब नदारद हो गई हैं। परन्तु इन सब से तीर्थ की महत्ता कम नहीं हो जाती। वर्तमान में बह्मसरोवर का स्वरूप अत्यंत मनोहारी तथा संुदर है। इस विशाल तीर्थ के सरोवर को दो भागों में विभक्त किया गया है। एक भाग की लंबाई 1800 फुट तथा चौड़ाई 1500 फुट है, वहीं दूसरा भाग 1500 लंबा व इतना ही चौड़ा है। सरोवर पूर्णत: लाल पत्थर से पक्का बनाया गया है। जिसमें चारों तरफ गहराई में जाने से बचाने के लिए रेलिंग लगी है। इसकी गहराई 15 फुट है। सरोवर के चहुं ओर बड़ा प्लेटफार्म तथा बरामदे आराम करने व सामान रखने के लिए बने हुए हैं। एक छोटी नहर द्वारा भाखड़ा नहर का जल इस सरोवर में आता है। सरोवर की सफाई का कार्य हर समय चलता रहता है। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा यहंा का सारा प्रबंध देखा जाता है। ऐसा विशाल पक्का सरोवर विश्व के गिने चुने सरोवरों में से एक है। इसे इस स्वरूप में लाने का श्रेय भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा को दिया जाता है। कहा जाता है कि एक बार वे सूर्य ग्रहण के अवसर पर यहंा स्नान करने के उद्देश्य से आए। परन्तु सरोवर में केवल कीचड़ देख कर उनका मन विचलित हो उठा। कीचड़ को माथे से लगा कर उन्होंने इस तीर्थ के कायाकल्प का प्रण लिया। उसी समय से वे देश के विभिन्न भागों से धन संग्रह में जुट गए। तत्पश्चात् कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड का गठन हुआ और कुछ ही वर्षों में भारतीय अस्मिता के प्रतीक बन चुके इस तीर्थ का जीर्णोंद्घार हो गया। हिंदू धर्म की अनेक संस्थाओं ने मिल कर जिस प्रकार इस तीर्थ के विकास के लिए प्रयत्न किये यह हमारी संास्कृतिक एकजुटता तथा कर्मठता को दर्शाता है।
सरोवर के मध्य में एक छोटे द्वीप पर सुंदर मंदिर में भगवान सर्वेश्वर का लिंग स्थापित है। कहा जाता है कि इसे भगवान बह्मा ने स्वयं स्थापित किया था। इसी प्रकार दोनों सरोवरों के बीच में एक संुदर बाग जिसे पुरुषोत्तमपुरा बाग कहा जाता है बना हुआ है इसमें मंा कात्यायिनी मंदिर, हनुमान मंदिर तथा चंद्रकूप स्थापित है। चंद्रकूप को द्रोपदी कूप भी कहते हैं। कहा जाता है कि द्रोपदी इसके जल से स्नान किया करती थीं। यहीं बाग के मध्य में एक विशाल रथ पर अर्जुन को गीता का ज्ञान प्रदान करते हुए भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की गई है। इस स्थान पर आकर मन को असीम शंाति का अनुभव होता है। सरोवर के आसपास प्राचीन समय से ही कई मंदिर व आश्रम विद्यमान हैं। जिनसे आने वाली मंत्रों व भजनों की आवाजें वातावरण को और अधिक आध्यात्मिक रूप दे देती हैं। यहंा आसपास के प्रमुख स्थानों में गीता भवन, गोडि़या मठ, बिड़ला मंदिर, दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, जयराम आश्रम, काली कमली मंदिर, गुरुद्वारा प्रमुख हैं। सरोवर के पूर्वी तट पर अभी हाल ही में तिरुपति मंदिर ट्रस्ट, आन्ध्र प्रदेश की तरफ से तिरुपति मंदिर की शैली में ही मंदिर निर्माण आरंभ किया गया है। यह भव्य मंदिर बह्मसरोवर की छटा में और अधिक वृद्घि कर देगा। जो भी यात्री प्रथम बार इस स्थान के दर्शन हेतु आता है वह इस सरोवर की भव्यता देख कर दंग रह जाता है। अभी हाल ही में सरोवर के मध्य विषाल तिरंगे को भी स्थापित किया गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग (जी़टी़ रोड) के पास ही स्थित भारतीय अस्मिता के प्रतीक इस तीर्थ के दर्शन प्रत्येक भारतीय को अवश्य करने चाहिए।
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