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उ.प्र./ इलाहाबाद
वर्तमान परिवेश में संयुक्त परिवार की कल्पना स्वप्न जैसी लगती है। लेकिन ऐसे अनेक लोग भी हैं जो इन सपनों को साकार रूप देकर समाज को आइना दिखा रहे हैं कि दो-तीन-पांच नहीं अपितु 90 लोगों का परिवार भी चलाया जा सकता है। साझे चूल्हे से भोजन और एक छप्पर के नीचे सबको प्यार के साथ रखकर कर यश, कीर्ति और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। पावन भूमि प्रयाग से 90 किमी. दूर कोरांव तहसील के बहरैचा गांव के केदारनाथ भुर्तिया भी धन्य हैं। वे आज भी उस परिवार में चट्टान जैसे हैं जिसमें 90 लोग एक ही चूल्हे पर बना खाना खाते हैं और एक ही व्यवस्थापक राकेश के अनुरूप कार्य करते हैं।
परिवार के मुखिया केदारनाथ भुर्तिया अब 99 वर्ष पूरे करने वाले हैं। वे बताते हैं, ह्यबचपन में ही पिता की मृत्यु हो गई थी। हम पांच भाइयों में हम सबसे बड़े थे। मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया और जब तक मां जीवित रहीं गृहस्थी मां देखती थीं। बड़े होने के कारण बाहर की जिम्मेदारी हमारी थी। एक-एक कर सबकी शादी होती गयी, लेकिन शादी के बाद भी हम पांचों भाइयों में कोई मतभेद नहीं आया। पिताजी ने विरासत में 45 बीघा जमीन छोड़ी थी, सो सारा परिवार खेती में लगा रहता था। एक साथ खेती करने का हम सभी को फायदा मिला। हमने आस-पास बिकने वाली भूमि खरीदनी शुरू की और आज गर्व से कहते हैं कि हमारे भाइयों और बच्चों की मेहनत एवं लगन ने हमें 125 बीघे भूमि का मालिक बना दिया है?ह्ण
घर गृहस्थी, खेती, पशुपालन व अनेक कार्यों का विभाजन कैसे करते थे? इस सवाल के जवाब में केदारनाथ के भाई राजमन बोल पड़ते हैं, ह्यभैया ने जो बंटवारा किया, उसे सब मानते हैं। जो जानवर की व्यवस्था देखता है उसे चारा, पानी से लेकर गोबर तक हटाना पड़ता है। जो खेती की व्यवस्था देखता वह बुवाई, सिंचाई और कटाई सब देखता है। हां, अब पशुओं की संख्या बढ़ गयी है तो गाय और भैंस के लिए अलग व्यक्ति एवं खेती के लिए कई लोग लगाये गये हैं। साथ ही 2 ट्रैक्टर हैं, उनकी जिम्मेदारी अलग लोगों के पास है।ह्ण
केदारनाथ पांच भाइयों में सबसे बड़े हैं। इनके चार बेटे, दूसरे भाई रामनरेश के दो बेटे, राजधर के कोई बच्चा नहीं, राजमन के दो बेटे तथा विलासमुनि, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, के एक बेटी है। केदारनाथ के परिवार में इस समय चार पीढि़यां मौजूद हैं, लेकिन केदारनाथ को अभी भी पांचवीं पीढ़ी देखने की लालसा है।
बच्चों की शिक्षा की बात चली तो केदारनाथ स्वयं बोल पड़े, ह्यपहले दिन स्कूल गये। पंडित जी ने दोनों हाथों पर चार-चार डंडे मारे। बस, लौटकर अम्मा से कहा, अब स्कूल न जाब। जमीन पर लकड़ी के सहारे अक्षर बना कर ककहरा सीखा।ह्ण केदारनाथ ने रामचरित मानस पढ़ना शुरू किया, जो आज तक दिनचर्या में शामिल है। सुबह उठ कर दैनिक क्रिया के बाद मानस पढ़ते हैं फिर भोजन इत्यादि।
राम लखन के बेटे पुष्पराज बताते हैं कि उन्होंने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़ाई बीए. एलएलबी. तक की, लेकिन परिवार के दायित्वों और पिता रामलखन की सेवा करने के लिए वकालत नहीं की। रामलखन पिछले 7-8 वर्षों से ह्यपार्किन्सनह्ण बीमारी से पीडि़त हैं और वह चारपायी पर हैं। शिव लखन के बेटे मनोज कुमार ने बीए. बीएड. किया है और वह मध्य प्रदेश में किसी स्कूल में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। मनोज कुमार इस परिवार के पहले सदस्य हैं जो नौकरी में हैं। पुष्पराज बताते हैं, ह्यदूसरी पीढ़ी के लोगों ने थोड़ी बहुत पढ़ाई की थी, लेकिन तीसरी और चौथी पीढ़ी पढ़ाई के प्रति सजग है। आज हमारे कई बच्चे शहरों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं।ह्ण
आय-व्यय का काम एक व्यक्ति देखता है। पहले यह दायित्व राम लखन के पास था, लेकिन बीमारी के कारण अब यह काम राजमन के बेटे राकेश देख रहे हैं। इस कठिन दायित्व का निर्वहन कैसे करते हैं? इस सवाल के जवाब में राकेश बताते हैं कि किसी को फालतू पैसा या दैनिक जेब खर्च नहीं दिया जाता है। पैसा मांगने वाले को उसकी आवश्यकता के अनुरूप पैसा दिया जाता है।
परिवार की तीन पीढि़यों के दर्जन भर लोगों ने परिवार के अविभाजित रहने के दो मुख्य कारण बताये जिसे सुनकर शायद आज हर कोई चौंक जाये? जी हां, टीवी और दहेज। आधुनिकता के इस दौर में यह परिवार दहेज और टीवी दोनों से दूर है। दरअसल भुर्तिया समाज में दहेज का प्रचलन नहीं था। बदलते परिवेश में भी यह परिवार आज भी दहेज को पाप मानता है। घर में आने वाली बहुएं, चाहे अमीर परिवार से आयें या गरीब, सबकी प्रतिष्ठा व सम्मान एक जैसा है। ह्यहमारी बहुओं में दहेज का घमंड नहीं है, इस कारण के रूप में स्थान दिया गया है।
पुष्पराज भोजन के विषय में बताते हैं कि चार से पांच महिलाएं खाना बनाती हैं, परिवार के लोग अपनी-अपनी थाली लेकर जाते हैं और रसोई से खाना लेकर अपने-अपने कक्ष में जाकर खाते हैं। वैसे ज्यादातर कोशिश यही होती है कि ज्यादा से ज्यादा सदस्य साथ बैठकर खाना खाएं। बर्तन परिवार की महिलाएं धोती हैं।
आज भी इस परिवार में खाने की पसन्द या नापसंद का कोई अर्थ नहीं है। रसोई में पका खाना ही सबकी पसन्द होता है। जानवरों की व्यवस्था पुरुषों के पास है, लेकिन गोबर से उपले बनाने का काम महिलाओं का है, जिनमें एक निर्धारित समय के बाद बदली हो जाती है।
कौन सा मंत्र है जो संयुक्त परिवार को विभाजित नहीं होने देता? यह पूछने पर सबके मुंह से रामचरित मानस की यह चौपाई निकलती है- जहां सुमति तहं संपति नाना, जहां कुमति तहं बिपति निदाना।ल्ल
समाज में संयुक्त परिवार की मिसाल बने केदारनाथ के परिवार के कुछ पूर्वज और निकट संबंधी मध्य प्रदेश में रहते हैं, वहां पिछड़े वर्ग में सम्मिलित है, नौकरी पेशे में उससे वहां लाभ भी पाते हैं। उ.प्र. में भूर्तिया सामान्य वर्ग में आते हैं। पुष्पराज कहते हैं कि यदि यहां भी हमें म.प्र. की तरह इस वर्ग में रखा जाता तो दो-चार भाई सरकारी सेवा में आ जाते। सरकारी सेवा में आ जाने पर आय का नियमित साधन हो जाता क्योंकि खेती तो मौसम पर निर्भर है। कभी-कभी तो खेती से लागत तक नहीं आती है। डर लगता है कि कभी फाके की नौबत न आ जाय। सरकार छोटे-छोटे परिवारों को तमाम सुविधाएं तथा सहायता देती है। लेकिन संयुक्त परिवारों के लिए वह कुछ नहीं करती है। बड़े परिवार में तो शिक्षा और चिकित्सा पर ज्यादा खर्च होता है।
बहरैचा? किसके यहां जाना है? बड़ी आबादी वाला गांव है। एक नाम के कई-कई लोग हैं? हमने कहा, केदारनाथ जी के यहां जाना है। अरे केदारनाथ भुर्तिया के यहां जाना है? उनको तो सब जानते हैं। बस 5 कि.मी. आगे सड़क पर ही उनका मकान है, किसी से पूछेंगे तो वह आपको बता देगा। उस कुर्ता-पायजामा पहने व्यक्ति की बात सुन कर हमें थोड़ा संतोष हुआ कि अब घर खोजने में दिक्कत नहीं आयेगी। हम आगे बढ़ने को हुए तो उन सज्जन ने कहा, रुकिए हम भी उधर ही चल रहे हैं। बातचीत थोड़ी आगे बढ़ी तो पता चला कि मिलने वाले वे सज्जन धीरेन्द्र शुक्ल हैं, जो बहरैचा से 6 कि.मी. आगे पंवारी गांव के प्रधान हैं। उस परिवार के बारे में कुछ जानते हैं? इस सवाल पर वह बोले, ह्यअरे आप सिर्फ उनका बड़ा परिवार जानकर शहर से आये हैं लेकिन यहां वह परिवार संयुक्त ही नहीं बहुत ही सभ्य, सम्मानित और संस्कारी परिवार के रूप में जाना जाता है। लोग उस परिवार का बहुत सम्मान करते हैं, गांव के लोग आज भी केदारनाथ जी से धार्मिक कथाएं सुनने जाते हैं।ह्ण चाय वाला गुड्डू भी अपनी बात रखता है, ह्यअरे साहब, इतने लोग अइहैं लेकिन कबहु केहु से लड़ाई नही भय।ह्ण कुछ देर बाद हम केदारनाथ जी के दरवाजे पर थे। बच्चों ने बिना कुछ बोले कुर्सियां रखीं। अभी हम अपना परिचय देते उससे पहले ही पानी और मिठाई की प्लेट सामने थी, जो
उस परिवार के संस्कारों की पहली झलक थी।
ह्यप्यार और संस्कार हैं परिवार के आधारह्ण
केदारनाथ भुर्तिया संयुक्त परिवार के मुखिया हैं। जीवन के 99 वर्ष पूरे करने जा रहे केदारनाथ अवस्था और अस्वस्थता के चलते अधिकांश समय चारपायी पर लेटे रहते हैं, लेकिन मानस के साथ-साथ अखबार पढ़ने के शौकिन इस बुजुर्ग ने काफी देर तक धार्मिक कथाओं के साथ-साथ गुजरे जमाने के किस्से सुनाये। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के अंश-
े इस परिवार के संयुक्त होने का श्रेय किसे देते हैं?
सब कुछ भगवान की देन है, जिसने आज तक हमारे भाइयों, बच्चों को सुमति, सद्बुद्धि दी है। क्रोध व ईर्ष्या से दूर रखा है।
े क्या कभी परिवार में विभाजन के स्वर उठे?
नहीं! ऐसा कभी नहीं हुआ, छिटपुट मामले तो आये लेकिन कुछ घंटों में खत्म भी हो गये।
े संयुक्त परिवार के पीछे मूलमंत्र क्या है?
आपस में बातचीत बंद न हो। प्यार, स्नेह मेल-जोल बनाये रखें, परिवार चलता रहेगा।
े संयुक्त परिवार से क्या फायदा या नुकसान हुआ?
कोई नुकसान नहीं है। सबका गुजारा, सबकी सेवा सारा काम आराम से चलता
रहता है।
े जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या हैं?
ह्यबड़े भाग मानुष तन पावाह्ण। ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया, जिसके कारण जीवन में कुछ करने का अवसर आया। मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूं।
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