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अभी पिछले साल जुलाई-अगस्त में असम का बोडोलैंड जला था। उसकी आंच कर्नाटक, महाराष्ट्र, उ.प्र.तक पहुंची थी। पर लगता नहीं कि असम में सत्तारूढ़ कांग्रेस की सरकार और उसके मुख्यमंत्री तरुण गोगाई ने उससे कोई सबक सीखा है। इस बार राज्य सरकार की अनीति से न केवल जनजातीय बहुल राभा क्षेत्र जला बल्कि कांग्रेस की शह पाकर मुस्लिम, विशेषकर घुसपैठिये बंगलादेशी मुस्लिम हमलावर हो गए। एक तरफ अपनी जायज मांग के लिए प्रदर्शन कर रहे राभाओं पर पुलिस ने निशाना साधकर, खोपड़ी या सीने से बंदूक सटाकर सीधे गोली मार दी, 13 निर्दोष-निरपराध लोगों को ढेर कर दिया तो दूसरी तरफ शासन-प्रशासन की शह पाकर बंगलादेशी मुस्लिमों ने हजारों की संख्या में गांव के गांव घेर लिए, उन्हें आग के हवाले कर दिया, सैकड़ों घर जलकर खाक हो गए, 7 लोग इस हिंसा की आग में जल मरे, 6 लापता हैं, हजारों लोग विशेषकर महिलाएं बच्चे, स्कूलों में शरण लिए हुए हैं, न उनके पास खाने-पीने की सामग्री है और न ही ओढ़ने-पहनने को कपड़े।
खाकी की गोली और मुस्लिम घुसपैठियों की आग में जल मरे लोगों के बच्चे, उनकी विधवाओं की पीड़ा न राज्य सरकार को दिख रही है, न उस चुनाव आयोग को जो राभा-होजोंग स्वायत्तशासी परिषद के क्षेत्र में जबरन चुनाव करना चाहता था। और तो और 26 लोगों की मौत राष्ट्रीय मीडिया के लिए भी मानो खबर ही नहीं थी। पूरे प्रकरण के दौरान चुप्पी ओढ़े रही केन्द्र सरकार का तो कहना ही क्या। 20 दिन बीत जाने के बावजूद वे उजड़े परिवार न्याय और सहायता के लिए चीख-चिल्ला रहे हैं, हाथ पसार रहे हैं, पर उनके हाथ खाली के खाली ही हैं। यह सारी अराजकता हुई गत 10 से 12 फरवरी के बीच असम के राभा-होजोंग स्वायत्तशासी परिषद के क्षेत्र में।
राभा-होजोंग जनजाति के लोग वर्षों से अपने इलाके पर अपने हक और प्रतिनिधित्व के लिए शांतिपूर्वक आंदोलन कर थे। पर इस बीच राज्य सरकार द्वारा इसी क्षेत्र में पंचायत चुनावों की चिढ़ाने वाली घोषणा ने लोगों के सब्र का बांध तोड़ दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि उनके इस स्वायत्तशासी क्षेत्र में पंचायत चुनाव नहीं हो सकते, यह संविधान की छठी अनुसूची और स्वायत्तशासी क्षेत्र अधिसूचना का खुला उल्लंघन है, इसलिए हम इन पंचायत चुनावों का बहिष्कार करेंगे। सरकार को कराना है तो 1995 से लंबित हमारी स्वायत्तशासी परिषद का चुनाव कराए। पर राज्य सरकार और मुख्यमंत्री तरुण गोगाई ने जनता की उचित मांगों की अनदेखी की। राज्य का चुनाव आयोग भी व्यापक जनांदोलन के बावजूद 12 फरवरी को मतदान की घोषणा पर अड़ा रहा। वह भी तब जबकि पंचायत चुनावों का विरोध करने के लिए 34 संगठनों द्वारा मिलकर गठित की गई राभा-होजोंग संयुक्त आंदोलन समिति की मांग पर भाजपा, अगप सहित सभी दलों के प्रत्याशियों ने नामांकन ही नहीं भरा, भरा तो नाम वापस ले लिया, मैदान में रह गए सिर्फ कांग्रेसी और कुछ निर्दलीय। स्थिति यह थी कि 240 मतदान केन्द्रों पर एक भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं था, पंचायत के सदस्य चुने जाने हेतु 227 क्षेत्रों में किसी ने नामांकन नहीं भरा, 8 ग्राम पंचायत के लिए भी कोई सामने नहीं आया, 5 आंचलिक पंचायतों के लिए भी किसी ने नामांकन नहीं भरा। इसके बावजूद जो मैदान में थे, उनमें से 80 प्रतिशत कांग्रेसी और 20 प्रतिशत निर्दलीय। तब भी चुनाव टलता न देख राभा-होजोंग जनजातियों ने मतदान से 1 दिन पूर्व 11 फरवरी को जन कर्फ्यू की घोषणा कर दी। इस दौरान राजमार्ग बंद कर रहे लोगों पर पहले पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे फिर मामला गरमाने पर वनवासियों पर गोलियां बरसने लगीं। एक-एक कर 13 लाशें गिर गयीं।
अगले दिन यानी 12 फरवरी को पंचायतों का मतदान होना था। मतदान के दिन वैसे भी सुरक्षा कड़ी रहती है, अतिरिक्त पुलिस बल तैनात रहता है, उसमें हिंसा की संभावना कम होती है। पर असम के इस क्षेत्र में जो कुछ हुआ उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। चुनाव समर्थक और चुनाव विरोधियों के बीच संघर्ष की आड़ लेकर कामरूप, ग्वालपाड़ा और यहां तक की बरपेटा से नाव पर सवार होकर एक हजार से अधिक लोग राभा-होजोंग स्वायत्तशासी परिषद के अन्तर्गत आने वाले उरांगपारा गांव पहुंचे। लगा कि वे चुनाव समर्थक कांग्रेसी हैं, पर वे सबके सब मुस्लिम थे, अधिकांश बंगलादेशी। 12 फरवरी की सुबह 10 बजे अचानक इस भीड़ ने उरांगपारा गांव के घरों को आग लगानी शुरू कर दीं। एक-एक कर 50 घर धू-धूकर जल उठे क्योंकि अधिकांश कच्चे, बांस और फूस के बने हुए थे। इन घरो में जलकर मरे 7 लोगों की लाशें मिलीं, 6 अभी तक लापता हैं। 110 से अधिक परिवार अपना सब कुछ लुटाकर गराइमारी स्कूल में शरण लिए हुए हैं। पर पंचायत चुनाव की आड़ में, समर्थक और विरोधियों के लिबास में बंगलादेशी घुसपैठियों ने अपने षड्यंत्र को अंजाम देना शुरू किया-'इस क्षेत्र से हिन्दुओं, जनजातियों को भगाओ ताकि हम, बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिये बस सकें'। इसीलिए देखते ही देखते यह भीड़ फुतरीपार और मिलानपार गांव की ओर बढ़ चली। 12 बजे तक ये दोनों गांव भी राख हो गए और 216 परिवार खुले आसमान के नीचे आ गए। फिर धावा बोला हिन्दू बंगाली बहुल कृसानी गांव पर, यहां 100 घर जला दिए। गोविंदपुर गांव को भी स्वाहा कर दिया। पर अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे राभा और होजोंग समुदाय की आवाज दिल्ली दरबार तक पहुंची ही नहीं, क्योंकि वे हिन्दू जो हैं।
…और बढ़ती गई पीड़ा
थ्असम में बहुत कम जनसंख्या वाली प्राचीन जनजातियां हैं राभा और होजोंग
थ्इनके विकास व संरक्षण के लिए 1995 में स्वायत्तशासी क्षेत्र घोषित किया गया।
थ्पर 18 साल बाद भी कामरूप व ग्वालपाड़ा जिले के बीच सीमा का निर्धारण नहीं
थ्राभा-होजोंग स्वायत्तशासी परिषद का भी चुनाव नहीं, विधिवत् गठन नहीं
थ्इसकी मांग के लिए हो रहे शांतिपूर्ण आंदोलनों की अनदेखी
थ्स्वायत्तता नीति के विपरीत कांग्रेस सरकार ने पंचायत चुनावों की घोषणा की
थ्1983 में भी जनभावनाओं के विपरीत हितेश्वर सैकिया सरकार ने विधानसभा चुनावों की घोषणा की थी, परिणामस्वरूप, हिंसा में 3000 मरे।
थ्इस बार चुनाव की आड़ में बंगलादेशी घुसपैठियों ने गांव खाली कराने के लिए आगजनी और हिंसा का तांडव रचा।
हिंसा का मंजर
पुलिस की गोली में मारे गए 13 (7 पुरुष 6 महिला)
दंगाइयों द्वारा जलाकर मारे गए 7
लापता 6
प्रभावित गांव 13
कुल घर जले 450
प्रभावित परिवार 600
प्रभावित लोग 2500
शरणार्थी शिविर 6
दिल्ली ब्यूरो के साथ बासुदेब पाल
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