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धमाकों से उधड़ी सड़कें, खून से रंगे लोग, मलबे में तब्दील वाहन, चीखों से भरे अस्पताल और आंसुओं में डूबा देश।
दिलसुख नगर में कई घरों का उजाला छीन लेने वाले दोहरे धमाके दर्द का सैलाब लेकर आए। साथ ही साउथ ब्लाक से आए सरकार का निकम्मापन उजागर करते शर्मनाक बयान। गुस्से और छटपटाहट में देश भर की मुट्ठियां तन गईं। तुष्टीकरण को पोसती और आतंकी साजिशों को सिराहने दबाए ऊंघती सरकार ने यह जता दिया कि कुछ भी हो, वो कुछ नहीं करने वाली।
सूचनाएं आपके पास थीं, मगर आप सोते रहे, यह बताने का क्या मतलब है? इस वक्त यह कहने का और यहां के तार वहां जोड़ने का भी क्या मतलब है कि धमाके किस घटना की प्रतिक्रिया में हुए? मुस्तैदी का दम भरने वालों की ऐसी सुस्ती क्या जनता के लिए जानलेवा नहीं है?
अगर राष्ट्रविरोधियों से निपटने की यह प्रतिक्रिया है तो क्या यह राष्ट्र को सीधे–सीधे चुनौती नहीं है? यह वक्त है उस विषवृक्ष को जड़ से उखाड़ने का, जिसकी छांह में देशद्रोही विचार और चंद सिरफिरे पल रहे हैं। यह वक्त है उन चेहरों को पहचानने का जो इंडियन मुजाहिदीन पर प्रतिबंध लगते ही श्वेत पत्र की मांग करते हैं और जंतर–मंतर पर जुटने लगते हैं। यह वक्त उन दिग्विजय सिंह से सवाल पूछने का भी है जो देश के भीतर ऐसे संगठन और उनके स्लीपर सेल होने पर ही संदेह जताते हैं।
भारत को लहूलुहान करने की साजिश में एक नाम बार–बार सामने आया….लेकिन हमारे गृहमंत्री को देशनिष्ठ संघ के शिविरों में आतंकी रंग दिखा। बाहरी 'हुक्म' से चल रहे भितरघाती उन्हें नहीं दिखे, सिमी और लश्कर उन्हें नहीं दिखे। खुफिया एजेंसियों ने सूचनाएं तो दीं, लेकिन जिम्मेदारी राज्यों की तरफ सरकाने से ज्यादा काम केन्द्रीय गृहमंत्री जी से नहीं हुआ।
देश की जनता गुस्से से उबल रही है। अब हाथ पर हाथ धरे बैठने और बेतुके बयान जारी करने वाले हमें चुभते हैं। बार-बार मिलने वाला जख्म नासूर बने इससे पहले ही बीमारी का इलाज जरूरी है। मगर यह इलाज करेगा कौन? काम बड़ा है। किसी कांपते हाथ वाले डाक्टर के बस की बात नहीं है। इसके लिए फौलादी कलेजा चाहिए। शिंदे उस कुर्सी पर बैठे हैं जिस पर कभी भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरुष बैठे थे। गृहमंत्री पद की गरिमा और इस कुर्सी की चुनौती अब उनसे संभलती नहीं दिखती। देश को जवाब चाहिए। हैदराबाद की सड़कों पर बहे खून का हिसाब चाहिए। शिंदे साहब, अगर यह जवाब और हिसाब आपके पास नहीं है तो जान लीजिए, जनता को आप जैसा गृहमंत्री नहीं चाहिए।
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