|
हरियाणा में गत दिनों हरियाणा जन कांग्रेस (हजकां) विधायकों के मामले में विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा के निर्णय से हर किसी को ठेस पहंुची है। प्रदेश की जनता ने इसे गंभीरता से लिया है और विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को स्पष्ट रूप से हुड्डा सरकार को बचाने के लिए नियमों और मर्यादा की अनदेखी करार दिया है। लोगों का मानना है कि विधानसभा अध्यक्ष ने जिस तरह हजकां के टिकट पर जीतकर आए 5 विधायकों के संबंध में निर्णय सुनाया है वह न तो उचित है और न ही उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों पर खरा उतरता है। हां, इससे प्रदेश की अल्पमत वाली हुड्डा सरकार की मजबूरी जरूर झलकती है जो किसी न किसी कारण से फैसले को लंबित कर कार्यकाल पूरा करने की कोशिश में है। जहां हजकां प्रमुख कुलदीप विश्नोई उच्चतम न्यायालय में इस निर्णय को चुनौती देने की बात कह रहे हैं वहीं उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा किया है। उनका कहना है कि यह फैसला विधानसभा अध्यक्ष का न होकर राज्य सरकार का है, जिसे विधानसभा अध्यक्ष ने मात्र सुनाया ही है। प्रदेश के सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी इस फैसले से असहमति जताई है और राजनीतिक दबाव व हुड्डा सरकार को बचाने की कोशिश करार दिया है। उल्लेखनीय यह भी है कि उच्च न्यायालय ने जिन पांच विधायकों को स्वतंत्र मानने की बात कही है, विधानसभा अध्यक्ष ने उन पांचों विधायकों को कानूनी रूप से कांग्रेसी घोषित कर दिया और इस मामले में उनके समक्ष दायर सभी 14 याचिकाओं की अनदेखी कर दी। उन याचिकाओं में हजकां प्रमुख कुलदीप विश्नोई ने 9 दिसंबर, 2009 को 5 याचिकाएं, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के अशोक अरोड़ा ने 2 फरवरी, 2010 को तीन याचिकाएं, शेर सिंह बडशामी ने 4 फरवरी, 2010 को 3 याचिकाएं तथा अजय सिंह चौटाला ने 23 फरवरी, 2010 को तीन याचिकाएं दाखिल कर दल-बदल करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इन सभी याचिकाओं को रद्द कर दिया।
विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा ने कानून को ताक पर रखकर कहा कि हजकां (बीएल) के पांच विधायकों ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय किया है और सभी पक्षों की सुनवाई व गवाहों के बयान के बाद वे कानूनन इस विलय को सही मानते हैं। उन्होंने कहा कि इस विलय का फैसला पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरमोहिन्द्र सिंह चढ्ढा ने किया था, किन्तु उनके निर्णय को कभी चुनौती नहीं दी गई। 29 पन्नों के फैसले में विधानसभा अध्यक्ष ने भारत के संविधान की दसवीं सूची, जो विधायकों के दो-तिहाई बहुमत के साथ किए गए विलय की अनुमति प्रदान करती है, का हवाला देकर अपनी साख बचाने की कोशिश की है और प्रावधानों के अनुरूप हजकां (बीएल) का कांग्रेस के साथ विलय तर्कसंगत बताने का प्रयास किया है।
वस्तुत: यह मामला 2009 के विधानसभा चुनावों से जुड़ा है, जब हजकां से पार्टी प्रमुख कुलदीप विश्नोई सहित 6 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे जिनमें से 5 विधायकों-दादरी से सतपाल सांगवान, हांसी से विनोद भ्याना, असंद से जिलेराम शर्मा, नारनौल से राव नरेंद्र सिंह तथा समालखा से धर्म सिंह छोकर ने मिलीभगत कर 9 नवम्बर, 2009 को कांग्रेस की सरकार बनाने में सहयोग देने की बात कही जिसे दलबदल कानून के अंतर्गत पार्टी प्रमुख कुलदीप विश्नोई ने चुनौती दी और सभी पांचों विधायकों के दल-बदल को अनुचित बताते हुए विधानसभा से उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की। सरकार की गलत मंशा को देखते हुए मामला उच्च न्यायालय में गया जहां माननीय न्यायाधीश एम.एम. कुमार की खंडपीठ ने सभी पांच विधायकों के विलय को न मानते हुए आदेश दिया कि इन्हें स्वतंत्र विधायक के रूप में जाना जाए और साथ ही विधानसभा के भीतर किसी भी प्रकार मतदान में भाग लेने के अधिकार से वंचित रखा जाए। जिसके खिलाफ मामला उच्चतम न्यायालय में ले जाया गया। उच्चतम न्यायालय में फैसले को निरस्त नहीं किया गया बल्कि विधानसभा अध्यक्ष को आदेश दिए गए कि वे तीन महीने की निश्चित अवधि में अपना निर्णय देंे। अब विधानसभा अध्यक्ष के फैसले से प्रदेश में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है और कांग्रेस सरकार की खूब किरकिरी हो रही है। बेशक हुड्डा सरकार हथकंडे के सहारे समय पूरा कर ले लेकिन जनता जाग गई है और इस बार कमजोर और लाचार कांग्रेस सरकार से निजात पाने का मन बना चुकी है।
0 दल–बदलू हजकां विधायकों पर विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय से किरकिरी
0 विधानसभा अध्यक्ष ने उच्च न्यायालय के दिशा–निर्देशों की अनदेखी के साथ जन भावनाओं का निरादर किया
0 सरकार बचाने की कोशिश में पद की गरिमा भी भूले हुड्डा
0 जनता ने पूछा : हजकां का अस्तित्व बरकरार तो कांग्रेस में विलय कैसा
टिप्पणियाँ