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संस्कृत के शाश्वत उपासक, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय को आचार्य पद से अलंकृत करने वाले, मृदुभाषी, सरल व्यक्तित्व के धनी विद्वान प्रो. महावीर अग्रवाल को राज्य में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया है। संस्कृत, योगदर्शन ही नहीं हिन्दी के भी मूर्धन्य विद्वानों मंे उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी एक अलग पहचान है। संस्कृत के विकास एवं संवर्धन को लेकर पाञ्चजन्य संवाददाता मनोज गहतोड़ी ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत हैं वर्ता के प्रमुख अंश। –सं.
श्व् आपके कुलपति नियुक्त होने से संस्कृतप्रेमियों में उत्साह एवं खुशी का वातावरण है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
द्ध मैं समझता हूं कि मुझे कुलपति के दायित्व के माध्यम से संस्कृत की सेवा करने का एक बहुत अच्छा अवसर परमात्मा ने दिया है और मेरा पूर्ण प्रयत्न रहेगा कि सबकी जो अभिलाषा है संस्कृत इस देवभूमि उत्तराखण्ड में आम आदमी तक पहुंचे उसको साकार करने के लिये मैं खरा उतर सकूं।
श्व्स्थापना से ही उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के किसी विद्वान कुलपति की कमी महसूस कर रहा था?
द्ध मैंने तो लगभग 40-41 वर्षो से संस्कृत माता की ही गोद में विचरण किया है, इसी की गोद में बैठकर संस्कार प्राप्त किये शिक्षा प्राप्त की और इन सारे वर्षो में संस्कृत माता की ही सेवा की और उसने इतना आशीर्वाद दिया है कि मैं अपने आपको बड़ा भाग्यशाली समझता हूं और बचा हुआ सारा जीवन इसी संस्कृत माता की सेवा में समर्पित करना चाहता हूं।
श्व्संस्कृत के विकास एवं संवर्धन के लिये क्या योजनायें आपके मन में हैं ?
द्ध पिछले दिनों में संस्कृत के विकास, विस्तार और संवर्धन के लिये हमने प्रयत्न किया तो उत्तराखण्ड की दूसरी राजभाषा संस्कृत घोषित की गयी। अब उसे मूर्तरूप देने की आवश्यकता है। संस्कृत विश्वविद्यालय का स्वरूप निखारने की आवश्यकता है, वहां का वातावरण संस्कृतमय बने, संस्कृत के उच्चकोटि के विद्वानों का वहां निरन्तर आवागमन होता रहे और हमारे विद्यार्थी उससे लाभान्वित होते रहें। शोध की दृष्टि से भी मैं ये मानता हूं कि उच्च स्तर का शोधकार्य इस विश्वविद्यालय में होना चाहिये। उत्तराखण्ड की प्राचीन विद्वता की परंपरा यहां के मनीषियों ने साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद, योग के क्षेत्र में जो कार्य किया है वह सारी दुनिया के सामने आना चाहिये इस दृष्टि से हम प्रयत्न करेंगे।
श्व् संस्कृत रोजगारपरक कैसे बने? इसमें छात्रों के लिये रोजगार के अवसर कहां हैं?
द्ध संस्कृत भाषा को रोजगारपरक बनाना यह मेरी चिन्ता का प्रथम बिन्दु है। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद यदि छात्र को रोजगार नहीं मिलता, जीविका नहीं मिलती तो वह हताश, निराश तथा निरुत्साहित हो जाता है। इसलिए हम ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करेंगे कि उन पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्र स्नातक समाजोपयोगी-राष्ट्रोपयोगी होकर बाहर आए और अच्छे संस्थान, प्रतिष्ठान उनको आमन्त्रित करें और कोई भी हमारा छात्र आजीविका विहीन न रहे। इस प्रकार के पाठ्यक्रमों का निर्माण हम शीघ्र करेंगे।
श्व् विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सुधार के लिये क्या जरूरी कदम उठायेंगे?
द्धसबसे पहले तो हमारे यहां अध्यापकों की बहुत कमी है। अध्यापकों, कर्मचारियों, छात्रों की संख्या बढ़ाने की दृष्टि से प्रयत्न करेंगे। जो साधन छात्रों को अध्ययन के लिये चाहिये विशाल पुस्तकालय हो, इन्टरनेट की सुविधा हो, बैठने के लिये अच्छा फर्नीचर हो, कक्ष हों, छात्रावास का निर्माण हो सब दृष्टि से हमने बहुत जल्दी इन चीजों को पूरा करने के तेज प्रयास शुरू कर दिये हैं। छात्रों को साधन का लाभ मिलेगा तो निश्चय ही छात्रों की जिज्ञासा और एकाग्रता शिक्षा के प्रति बढ़ेगी। पढ़ने-पढ़ाने का वातावरण बनेगा।
श्व्संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी हो रही है संस्कृत शिक्षा में छात्रों का रुझान कैसे बढ़े?
द्ध इसके लिये तो एक ही उपाय है कि छात्रों को जब विश्वास हो जायेगा हमारी शिक्षा अच्छी बन रही है, हम अच्छे पाठ्यक्रम पढ़ रहे हैं, जिससे हमें रोजगार मिलेगा, समाज में सम्मान, प्रतिष्ठा मिलेगी, स्वाभाविक है छात्रों का संस्कृत में रुझान बढ़ेगा। केवल उसे पाठ-पूजा तक ही सीमित नहीं रखेंगे, कर्मकाण्ड भी हो, ज्योतिष भी हो लेकिन उसके साथ-साथ जो आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान की धाराएं हैं उनके साथ भी छात्रों को जोड़ने का प्रयास किया जायेगा जिससे स्वाभिमान व आत्मविश्वास का भाव हमारे छात्रों में उत्पन्न हो सके।
श्व् विज्ञान के युग में संस्कृत शिक्षा आधुनिक तकनीक से कैसे जुड़ेगी?
द्धसारे ज्ञान-विज्ञान का भण्डार तो संस्कृत में ही है। हमारे वेदों में सारे संसार का ज्ञान-विज्ञान छिपा हुआ है जिसके मूल में संस्कृत ही है। संस्कृत का किसी तकनीक से कोई मुकाबला नहीं है संस्कृत तो समूचे ज्ञान-विज्ञान तथा भाषाओं की जननी है। आधुनिक तकनीक की जो विधायेंे हैं, उनका हम छात्रों को उपयोग करने का मार्गदर्शन देंगे, जिससे वह समूचे विश्व में आधुनिक तकनीक द्वारा इस ज्ञान को फैला सकें।
श्व्आमजन तक कैसे पहुंचेगी संस्कृत?
द्ध यहां यह कहना गौरवपूर्ण होगा कि प्रदेश के महामहिम राज्यपाल ने भी संस्कृत के प्रति अपना प्रेम दिखाया है। उनका भी यही संदेश है कि संस्कृत भाषा विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों से बाहर आमजन तक पहुंचे हमें उसी के अनुरूप कार्य कर इसे आमजन तक पहुंचाने का प्रयास करना है। बड़े स्तर पर शोध कार्य, संगोष्ठियां, सेमीनार आयोजित कर हम इसे आमजन की भाषा बनायेंगे।द
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