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देश की राजधानी दिल्ली में एक युवती से जघन्यतम बलात्कार की घटना ने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया है। पूरा देश उद्वेलित है, आक्रोशित है, चिंतित है और सशंकित भी। देश भर में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ रहे अपराधों की अनदेखी के बीच एक छात्रा से हुए उस अमानुषिक, बर्बर, दरिंदगीपूर्ण अत्याचार ने यह सोचने पर विवश कर दिया है कि इंसान इस कदर हैवान क्यों बन रहा है? दिल्ली से ही सटे नोएडा के निठारी कांड में सुरेन्द्र कोली नामक नरपिशाच का चेहरा सामने आया था तो इस बार भी 5 दरिंदों के साथ एक नाबालिग कहे जा रहे राहुल की कारगुजारी सबसे वीभत्स और हिंसक है। दिल दहला देने वाली इन घटनाओं के बीच उ.प्र., हरियाणा, प.बंगाल आदि राज्यों से आ रही खबरों से साफ पता चलता है कि महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ता ही जा रहा है, महिलाएं देश में कहीं भी स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित नहीं पा रही हैं। आखिर इसका कारण क्या है? क्यों बढ़ रहा है महिलाओं के प्रति अत्याचार? क्या यह पुरुषवादी दृष्टिकोण का परिचायक है? क्या यह पारिवारिक संस्कारों के अभाव में हो रहा है? या यह समाज में बढ़ रही अपराधी प्रवृत्ति का परिणाम है? या रहन–सहन, खान–पान या पहनावे में हुआ परिवर्तन भी इसके लिए जिम्मेदार है? शराब और नशे की लत भी इसके लिए जिम्मेदार है या फिर चारों तरफ परोसी जा रही अश्लीलता इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर लचर कानून, कमजोर प्रशासन, भ्रष्ट पुलिस और न्यायालय में कठोर दंड के प्रावधान के न होने, देर से सजा मिलने से बेखौफ होते अपराधियों और सरकारों की संवेदनहीनता के कारण ऐसा हो रहा है? इसके साथ ही ये प्रश्न भी जाग्रत समाज को मथ रहे हैं कि आखिर इस अपराधी प्रवृति को कैसे रोकें? कैसे सुरक्षित रहे महिलाओं की अस्मत? कैसे वे समाज में सम्मान के साथ अपनी प्रभावी भूमिका निभा सकें? समाज का दृष्टिकोण ही बदलना है तो कैसे बदलें? चारों तरफ बढ़ रहे भोग, चारित्रिक पतन के इस दौर में कैसे और किस प्रकार से संस्कार दिए जाएं कि महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया स्वस्थ, सकारात्मक व सहयोगात्मक बने? इसके बावजूद यदि अपराधी प्रवृति के लोग किसी महिला की अस्मत से खिलवाड़ करने में सफल हो जाएं तो उनको किस प्रकार कठोरतम दंड दिया जाए जिससे ऐसी प्रवृति वालों के मन में भय पैदा हो? ये और इसके जैसे अनेक प्रश्न आपके और पूरे समाज के मन में उमड़–घुमड़ रहे होंगे। स्वाभाविक भी है, जहां एक ओर नवरात्र के दिनों में हम देवी की पूजा करते हैं, 9 दिन के उपवास के बाद कन्या को भोजन कराकर ही उद्यापन करते हैं, उसी समाज में स्त्री जाति के प्रति घृणित सोच और जघन्य कृत्य को कोई सभ्य समाज कैसे बर्दाश्त कर सकता है? देश भर में इस विषय पर जारी चिंतन–मंथन के बीच पाञ्चजन्य भी अपने पाठकों, समाज के प्रबुद्ध वर्ग और जन सामान्य को एक मंच प्रदान कर रहा है कि वे इस समाज को उद्वेलित करने वाले इस गंभीर विषय पर अपना दृष्टिकोण प्रकट करें। इस समस्या के कारण और निवारण के साथ ही यदि इस प्रकार के अपराध और अपराधी प्रवृति पर अंकुश लगाने के कोई सफल उपाय किए गए हों, तो वह भी बताइये। इस प्रवृति को रोकने के करणीय उपाय भी बताइये। आपके विचार अधिकतम 500 शब्दों में सीमित होने चाहिए। सबसे उत्तम व सर्वग्राही विचार व सुझाव को पाञ्चजन्य में प्रकाशित किया जाएगा, पुरस्कृत किया जाएगा। आपके विचार हमें 26 जनवरी, 2013 तक प्राप्त हो जाने चाहिए। आलेख सुस्पष्ट हों, उन पर आपका स्पष्ट पता व सम्पर्क हेतु दूरभाष क्रमांक हो। आप अपना आलेख टंकित करके ई–मेल द्वारा भी भेज सकते हैं। पता है–
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स्त्री सरोकार
द्वारा सम्पादक पाञ्चजन्य
संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवालां, नई दिल्ली-110055
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