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केन्द्र सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति के संबंध में प्रैस वक्तव्य जारी कर भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री श्री बैजनाथ राय ने कहा कि 21 वर्ष पूर्व सरकार ने आर्थिक नीति में अमूल-चूल परिवर्तन कर उदारीकरण, निजीकरण वैश्वीकरण की नीति अपनाई। क्योंकि उस समय देश कर्ज के मकड़जाल में फंस गया था। उससे बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता बताकर देश की नीति को उक्त रूप में बदला गया। उन्होंने कहा कि नीति बनाते समय देश को यह आश्वासन दिया गया था कि इस नीति के बाद देश में बेरोजगारी-बेकारी-महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा और देश रामराज्य की ओर बढ़ जाएगा। किन्तु 21 वर्ष बाद फिर सरकार देश को बता रही है कि देश पर फिर आर्थिक संकट आया है और उससे निपटने के लिए भारतीय बाजार, भारतीय बीमा कम्पनी, बैंक और यहां तक कि मजदूरों-कर्मचारियों की खून-पसीने की कमाई और बुढ़ापे का सहारा पेंशन में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करना आवश्यक है। श्री राय ने कहा कि सरकार 21 वर्ष पूर्व अपनाई गई आर्थिक नीति की ईमानदारी से समीक्षा करने के लिए तैयार नहीं दिखती। आखिर इस नीति का परिणाम क्या निकला? क्या बेरोजगारी कम हुई, महंगाई घटी, गरीबी पर काबू पाया जा सका, देश कर्ज के मकड़जाल से बाहर निकला? उन्होंने कहा कि अब तो गरीबी और अमीरी की खाई अधिक हो गई है। वहीं सरकार को वर्तमान सभी समस्याओं का हल निजीकरण में ही दिखता है। एक समय देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने जहां सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को वर्तमान भारत के मंदिर कहा था और इनके माध्यम से जहां देश के विकास का सपना देखा था, वहीं बेरोजगारी और क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करने का माध्यम भी माना था। वर्तमान सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को बर्बाद करने पर अमादा है। श्री राय ने कहा कि सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति पूरी तरह भयावह है। प्रतिनिधि
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