खाड़ी के अमीर देशों में पानी के लिए संघर्ष
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खाड़ी के अमीर देशों में पानी के लिए संघर्ष

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Jan 5, 2013, 12:00 am IST
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खाड़ी के अमीर देशों में पानी के लिए संघर्ष

दिंनाक: 05 Jan 2013 13:38:42

मुजफ्फर हुसैन

हमारी पृथ्वी  एक छोटा उपग्रह है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके चारों ओर पानी है। अब तक वैज्ञानिकों ने जिन ग्रहों की खोज की है, वहां सबसे बड़ी तलाश इस बात की हो रही है कि वहां पानी है या नहीं? क्योंकि पानी होगा तो जीव अवश्य होंगे। लेकिन हमारी जो धरती पानी से घिरी है वही अब पानी के अभाव से त्रस्त होती जा रही है। इतना कम पानी रह गया है कि लोग कहते हैं यदि चौथा महायुद्ध धरती पर होगा तो वह केवल पानी के लिए होगा। पानी जो धरती की विशेषता है वही उसके लिए अभिशाप बन सकता है। पानी का अभाव सारी दुनिया में है। इसलिए जितना सम्भव हो पानी का उपयोग कम से कम करें।

सऊदी अरब से लेकर खाड़ी के सभी देश अपने खनिज तेल के लिए जाने जाते हैं। वहां इसका इतना बड़ा भंडार है कि वे दुनिया के सबसे अधिक अमीर लोग कहे जाते हैं। क्योंकि खनिज तेल आज की दुनिया में खरा सोना है। इसने खाड़ी के देशों को मालामाल बना दिया है। लेकिन विश्व के सबसे धनी ये देश आज अपने यहां दुनिया की सबसे सस्ती वस्तु पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तेल तो हर जगह है लेकिन पानी नहीं। खाड़ी के देशों में पानी की कीमतें जिस तेजी से बढ़ रही हैं उसका कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता है। मध्य- पूर्व में अनेक देश हैं जो अरब जगत के नाम से भी जाने जाते हैं। इसी क्षेत्र को राजनीति शास्त्र में इस्लामी विश्व से भी सम्बोधित किया जाता है। मुस्लिम विश्व के 56 राष्ट्रों में से दो तिहाई देश इसी क्षेत्र में बसते हैं। गल्फ काउन्सिल एवं आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्री जैसे चर्चित संगठन इसी भूमि पर हैं। यही वह भाग है जहां फिलीस्तीन को 1949 में विभाजित कर इस्रायल बनाया गया। इसलिए इस धरती पर हमेशा कश्मकश बनी रही है और युद्ध के बादल छाए रहते हैं। इन देशों के आस-पास समुद्र तो है लेकिन उसका पानी न तो पिया जा सकता और न ही उससे खेती हो सकती है। इस भूमि पर कुछ विश्वविख्यात नदियां बहती हैं। उनमें तुर्की, सीरिया और इराक में बहने वाली दजला और फुरात दो प्रमुख नदियां हैं।

महायुद्ध की आशंका

इन तीनों देशों में इन नदियों पर सात बांध बने हुए हैं जो इस क्षेत्र के लिए वरदान हैं। इसी प्रकार मिस्र और सूडान में नील नदी बहती है जिस पर एसुआन बांध है। इस्रायल इससे सटा हुआ है। इस कारण उसे भी पानी मिलता है और जोर्डन को भी। इस क्षेत्र में करीब 20 करोड़ लोग रहते हैं। लेकिन अब यहां जनसंख्या के साथ उद्योग और खेती का विकास हो रहा है जिस कारण पानी की अधिक मात्रा इस भाग के लिए अनिवार्य हो गई है। खाड़ी के देशों में और कुवैत तथा सऊदी अरब में समुद्र के पानी को मीठा पानी बनाकर उपयोग में लाया जा रहा है। लेकिन उसके नकारात्मक परिणामों के कारण उसे विकल्प नहीं माना जा सकता है। इस समय तो दुगुने-चौगुने दाम देकर दुनिया के अन्य देशों से अपनी आवश्यकता की सामग्री एवं अन्य अनिवार्य वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं है। पेट्रोल के स्थान पर कोई अन्य ईंधन खोज लिया गया तो फिर इस क्षेत्र की जनता का निर्वाह कैसे हो सकेगा? दैनिक 'अरब न्यूज' में पिछले दिनों इस समस्या को लेकर एक विचार प्रकाशित हुआ है जो यह बताता है कि खाड़ी के देशों में पानी के लिए महायुद्ध हुआ तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं।

इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर के चैयरमैन जुईस स्टार ने कहा है कि मध्य-पूर्व के देश सैकड़ों साल से पानी का दुरुपयोग कर रहे हैं। यहां बसे 20 करोड़ लोगों के लिए अब यह मौत और जिंदगी का सवाल है। विश्व बैंक के मध्य-पूर्व के प्रभारी विली पीटरसन का मत है कि यदि इन देशों को तबाही से बचाना है तो इस्रायल और अरब देशों को अपने रिश्ते सुधारने होंगे। उनकी आपसी कटुता उनकी मौत को आमंत्रित करने वाली सिद्ध हो सकती है। उनका कहना था कि इस्रायल और अरब देशों को पानी की समस्या हल करने के लिए क्षेत्रीय संगठन बनाना चाहिए। वास्तविकता तो यह है कि यह समस्या राष्ट्रीयता की हदबंदी से ऊपर उठकर ही सुलझाई जा सकती है।

पानी बना हथियार

जोर्डन नदी जोर्डन और इस्रायल के लिए जीवन रेखा है तो मिस्र की नील नदी के अभाव में तो उत्तर पश्चिम अफ्रीका के देशों के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस्रायल में ऐसे असंख्य कुएं हैं जिनमें फिलीस्तीन से भूगर्भ में पानी बह कर आता है। फिलीस्तीन इस्रायल को इस पानी से वंचित कर देना चाहता है। इस्रायल के कब्जे वाली गाजा पट्टी में जो पानी आता है उसमें समुद्र का पानी मिला हुआ है। यह भीतरी स्रोतों से आता है या फिर इस्रायल की तांत्रिक करामात से। यह पानी पीने के योग्य नहीं होता है। इसलिए यहां के लोगों का स्वास्थ्य भी खतरे में है और इस पानी को कृषि के उपयोग में नहीं लिया जा सकता है। इस आंख-मिचौनी से सैकड़ों स्थानीय लोग संकट में हैं। इसे याद रखना होगा कि पानी को हमेशा युद्ध में हथियार के लिए उपयोग किया जाता रहा है। पानी की अनिवार्यता को टाला नहीं जा सकता है। लेकिन जिस प्रकार का पानी यहां मिलता है उससे तो लोग मर जाना बेहतर समझते हैं। इस क्षेत्र में अल्जीरिया के पूर्वी किनारे, ट्यूनेशिया से लेकर यमन तक पानी का संकट है। इस्रायल अपना केवल 20 प्रतिशत पानी खेती बाड़ी के लिए उपयोग करता है। किस फसल को कितना पानी देना चाहिए उसकी बूंदों का हिसाब रखा जाता है। इस्रायल ने इस मामले में अच्छी प्रगति की है। कम पानी में अधिक खेती करना यह उसकी सूझबूझ का परिचायक है। इसलिए दुनिया के अन्य देश जहां पानी की कमी है, वे इस तकनीक को इस्रायल से प्राप्त करते हैं। भारत ने भी इस मामले में इस्रायल को अपना आदर्श बनाया है। इस्रायल के पास बहुत कम पानी है, लेकिन फिर भी वह खेत में जो कुछ उगाता है वह 21वीं शताब्दी में चमत्कार है। लेकिन मुस्लिम राष्ट्रों के दबाव के कारण जो लाभ भारत को लेना चाहिए वह अब तक नहीं ले सका है। अब तो विदेशी विश्वविद्यालय भारत में धड़ल्ले से आ रहे हैं। अच्छा हो कि भारत इस मामले में इस्रायल का हाथ पकड़े और अपने यहां उसके विशेषज्ञ बुलाकर भारत में जिन खाद्य पदार्थों की कमी है, उसे इस्रायल की सहायता से अपने विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल कर ले। पिछले दिनों विश्व बैंक ने जोर्डन और सीरिया के सीमावर्ती देशों में बांध बनाने की पहल की है, लेकिन यहां इस्रायल ने अधिक मात्रा में पानी की मांग की है इसलिए यह योजना खटाई में पड़ी हुई है।

तुर्की से होकर दो नदियां बहती हैं। इस पर बांध बनाने के लिए राष्ट्र संघ 20 अरब डालर की लागत से एक पाइप लाइन बिछा रहा है जिसका नाम अमन पाइपलाइन दिया गया है। दजला और फुरात नदी पर तुर्की ने तीन, सीरिया और इराक ने दो बांध बनाकर अपनी समस्या हल की है। लेकिन इनमें किसी प्रकार का आपसी सहयोग नहीं है। एक तो पानी का अभाव और दूसरा आपसी विवाद खाड़ी के देशों को पानी के लिए महायुद्ध की ओर धकेल रहे हैं। प्रतीक्षा  केवल समय की है। पाठकों को याद दिला दें कि मध्य-पूर्व के देशों में लड़ाई का सबसे बड़ा शस्त्र पानी रहा है। युद्ध के समय पानी के स्रोतों पर कब्जा करके सामने वाले पक्ष के लिए पानी की पूर्ति बंद कर दी जाती थी। इस कारण न केवल मनुष्य बल्कि उनके घोड़े तक बिना पानी के तड़प-तड़प कर मर जाते थे। इराक स्थित करबला के युद्ध में इमाम हुसैन एवं उनके परिवार पर इसी तरह से पानी बंद कर दिया गया था। जिसके परिणामस्वरूप इमाम हुसैन और उनके 72 परिवारजन एवं साथी बिना पानी के ही लड़ते-लड़ते शहीद कर दिए गए थे, जिनकी याद में आज भी प्रतिवर्ष मोहर्रम मनाया जाता है।

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