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'जाति–जनजातियों में न कोई बड़ा है और न कोई छोटा। समस्त सृष्टि जगन्नाथमय और भगवानमय है। सबके अंदर परमात्मा का दर्शन किया जा सकता है। यह जनजातीय दर्शन है। यह भारत का आध्यात्मिक दर्शन है। जाति-जनजातियों को अपने साथ-साथ समस्त जनों व प्रकृति की भी चिंता करनी चाहिए'। उक्त विचार रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल ने गत दिनों भुवनेश्वर (ओडिशा) में जाति-जनजाति सांस्कृतिक समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि देश पर जब बाह्य आक्रमण हुए थे तब साधु-संत और जनजातियों के कारण ही हिन्दू समाज बच सका। जाति-जनजातियों के मुखियाओं का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि गांवों के विवादों को कचहरी में न जाने दें उनका समाधान गांव में बैठकर ही करें। डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति में बालिकाओं को देवी कहा जाता है। इसलिए इनका उत्थान किस प्रकार हो यह चिंता जाति-जनजातियों के मुखियाओं को करनी होगी। बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत में संत-महात्मा व वेदों में कही गई बातें अब देश की सीमा से बाहर प्रचारित हो रही हैं। 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' अब अमरीकी संसद में कहा जा रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री अरुण पंडा ने कहा कि विभिन्न जाति व जनजातियों के बीच समरसता व समन्वय पैदा करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें 110 जाति-जनजाति व उपजाति के मुखिया सम्मिलित हुए हैं।
कार्यक्रम को पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्री सुदर्शन नायक, तिब्बत की निर्वासित सरकार के गृहमंत्री श्री दलमा गायरी ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के अ.भा. प्रचार प्रमुख श्री मनमोहन वैद्य, धर्म जागरण समन्वय विभाग के अ.भा. प्रमुख श्री मुकुंदराव पणशीकर, उत्कल प्रांत के प्रांत प्रचारक श्री जगदीश खाड़ंगा विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन भी किया गया।पंचानन अग्रवाल
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