संस्था की उन्नति के लिए हो आध्यात्मिक आस्था
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चित्रकूट के दीनदयाल शोध संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में प्रख्यात संत मोरारी बापू ने कहा
संस्था की उन्नति के लिए हो आध्यात्मिक आस्था
'मैंने बहुत सी संस्थाओं के लिए कथाएं की हैं। संस्थाओं को मैंने अपनी आंखों से देखा है। उदित होते, फलते-फूलते और अस्त होते हुए भी। लेकिन जिस संस्था के मन में आध्यात्मिक आस्था है वह संस्था दिन दोगुनी, रात चौगुनी उन्नति करती है।' उक्त उद्गार प्रख्यात संत श्री मोरारी बापू ने गत दिनों चित्रकूट स्थित दीनदयाल शोध संस्थान के सभागार में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
प्रवचन से पूर्व संत मोरारी बापू ने नानाजी देशमुख, डा. राममनोहर लोहिया एवं डा. हेडगेवार के चित्रों पर पुष्पार्चन किया। श्री मोरारी बापू ने आगे कहा कि गांधीजी इतना बड़ा कर्म करके गए, कोई खोजी उनके जीवन की पूरी यात्रा के बारे में अध्ययन करे कि उसके मूल में क्या था, तो पता चलेगा कि उनके जीवन में आध्यात्मिक आस्था थी। उन्होंने कहा कि किसी भी संस्था में दो बसें आवश्यक हैं, व्यक्ति और व्यक्ति द्वारा निर्मित या संचालित परम के प्रति अगाध आस्था। श्रद्धेय नानाजी स्थूल रूप से गए लेकिन उनकी आस्था या अध्यात्म आज भी पूर्ण रूप से विद्यमान है। इस संस्था से हमारा दिली लगाव है। इस भूमि में मुझे बिल्कुल रजोगुण नहीं दिखता है। केवल सत्व दिखता है। जो भाई-बहन प्रसिद्धि से दूर इसमें लगे हुए हैं वे सत्व बनकर उभरें ऐसी मेरी प्रार्थना है।
श्री मोरारी बापू ने कहा कि नानाजी ने एक सुचारु व्यवस्था की है। यहां लोगों में प्रबल आस्था दिखती है, जिसे और सुदृढ़ करना आवश्यक है, यह संस्था आस्था, अवस्था और व्यवस्था की त्रिवेणी है। ऋषि वशिष्ठ द्वारा भरत को कहे गए दोहे- 'सुनहु भरत भावी प्रबल, विलखि कहेउ मुनिनाथ, हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश अपयश विधि हाथ।।' का उल्लेख करते हुए मोरारी बापू ने कहा कि यह छ: वस्तु विधाता के हाथ में है। लेकिन छ: वस्तु हमारे हाथ में भी हैं। हमें भी यह सीख कर आगे बढ़ना है। हानि तेरे में हाथ में है, लेकिन कितनी ही हानि हो हम डटे रहेंगे यह हमारे हाथ में है।
स्वामी रामतीर्थ द्वारा कही पंक्ति 'बैठा हूं दर पे तेरे, कुछ करके उठूंगा या पाकर उठूंगा या मर के उठूंगा।।' का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि लाभ तेरे हाथ में, शुभ मेरे हाथ में। लाभ जहां है, वहां शुभ ही निश्चित नहीं है। लेकिन जहां शुभ है, वहां लाभ ही लाभ निश्चित है। जीवन तेरे हाथ में है, सहजीवन मेरे हाथ में है। समूह जीवन मेरे हाथ में है। मरण तेरे हाथ में है, लेकिन स्मरण मेरे हाथ में है। यश तेरे हाथ में है, लेकिन यश बांटना मेरे हाथ में है। अपयश तेरे हाथ में है, लेकिन इसे पीना मेरे हाथ में है। काम जितना भी बड़ा क्यों न हो, लेकिन फर्क अन्तिम पंक्ति में बैठे व्यक्ति को पड़ना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन उद्यमिता विद्यापीठ की निदेशक डा. नंदिता पाठक ने किया। इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक एवं वाराणसी के उद्योगपति श्री सूर्यकान्त जालान सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता एवं गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। बापू के उद्बोधन के उपरान्त सभी लोगों द्वारा डा. राममनोहर लोहिया एवं डा. हेडगेवार के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में चित्रकूट के जयप्रकाश नारायण पार्क में श्रद्धासुमन अर्पित किए गए तथा अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भी याद किया तथा उनके चित्र पर भी श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्रतिनिधि
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