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बात बेलाग
* समदर्शी
जनता है सब जानती है
दिल्ली की तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने वालीं श्रीमती शीला दीक्षित ने दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटने का दांव तो निगम पर काबिज भाजपा को मात देने के मकसद से चला था, पर मतदाताओं ने ऐसा जवाब दिया कि कांग्रेसी मुंह चुराते नजर आ रहे हैं। अभी तक दिल्ली में एक ही महापौर होता था, पर अब तीन होंगे और तीनों ही भाजपा के। दिल्ली नगर निगम के विभाजन के पीछे शीला की रणनीति थी कि पूरी दिल्ली पर नहीं, तो कम से कम उसके किसी एक हिस्से में तो कांग्रेस स्थानीय शासन पर काबिज हो ही जाएगी। राष्ट्रमंडल खेल आयोजन के कारण दिल्ली में हुए विकास कार्यों का ढोल भी इतनी जोर से पीटा गया कि भ्रष्टाचार छुप जाए। पर जनता है, सब जानती है। सो उत्तर से लेकर पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली तक निगम चुनावों में भाजपा का परचम ऐसा फहराया कि हाथ को अस्तित्व बचाने के लाले पड़ गये, पर कांग्रेसी भी गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। चुनाव प्रचार में निगम के विकास कार्यों को नकारकर राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े कार्यों को अपना विकास बताते हुए ढोल बजाने वाले कांग्रेसी चुनाव परिणामों के बाद लापता हो गए। बाद में मीडिया से मुखातिब हुए तो यह बताने के लिए कि ये तो स्थानीय चुनाव थे, इसलिए कुछ ज्यादा राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाये। पर इस स्वाभाविक सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं था कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी मतदान करने वाले तो ये ही मतदाता रहेंगे और जाहिर है कि भ्रष्टाचार और महंगाई की मार को तब भी भूल नहीं जाएंगे।
अब चौधरी का क्या होगा
एक हैं चौधरी बीरेन्द्र सिंह। 'किसानों के मसीहा' माने जाने वाले सर छोटूराम के दोहते हैं। वर्ष 2005 से '09 तक हरियाणा सरकार में नंबर दो हैसियत के मंत्री थे, लेकिन बताया जाता है कि रिश्ते में भाई लगने वाले मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने ही 2009 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के विरुद्ध उन्हें हरवा दिया। नेहरू परिवार के पुराने निष्ठावान हैं, सो बाद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव भी बनवा दिया और राज्यसभा का सदस्य भी। लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं कर पा रहे। उन्हें उत्तराखंड, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया है। उत्तराखंड में हर चुनाव में सरकार बदल जाने की परंपरा ही है, पर इस बार भाजपा के बाद वहां कांग्रेस सरकार मतदाताओं के जरिए नहीं, नापाक जोड़तोड़ से बनी। दिल्ली में विधानसभा चुनाव तो अगले साल हैं, पर हाल ही में हुए नगर निगम चुनावों में मिली पराजय का जवाब तो देना ही पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश में भी इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। जमीनी हकीकत वहां भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं है, हालांकि वहां अगली सरकार का सपना कांग्रेसी देखने लगे हैं। अगर हिमाचल में भी सपना टूट गया तो चौधरी की चौधराहट पर सबसे पहले सवाल उठाने वाले उनके रिश्ते के भाई भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ही होंगे।
हुड्डा की हसरतें
विपक्षी नेताओं से ज्यादा अपने ही दल के राजनीतिक विरोधियों को निपटाने में लगे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भले ही अपने रिश्ते के भाई की चौधराहट पर सवाल उठाने का कोई मौका न चूकते हों, पर खुद उनका मामला भी हवा हवाई है। वह खुद को किसान नेता समझते हैं और इस कोशिश में हैं कि कांग्रेस भी ऐसा मान ले। पर किसी कसौटी पर अभी तक वह खरे नहीं उतर पाये। हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस को 68 से 40 सीटों पर समेट देने वाले हुड्डा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कई जगह भाषण देने गये, पर किसी कांग्रेसी उम्मीदवार को नहीं जिता पाये। हुड्डा की दूसरी हसरत है कि उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र कांग्रेस के 'युवराज' की टीम में जगह पा जायें, ताकि स्वाभाविक रूप से हरियाणा के भावी मुख्यमंत्री बन सकें। लेकिन यह हसरत भी परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही। हाल के विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दीपेंद्र को चुनाव संयोजक के रूप में प्रचारित किया गया, पर वहीं कांग्रेस की लुटिया सबसे बुरी तरह डूबी। फिर भी दस जनपथ के दरबारियों के दरबार में पिता-पुत्र राजनीति फिलहाल तो चल ही रही है और विरोधियों को सही मौके का इंतजार करना पड़ रहा है।
दृष्टिपात
* आलोक गोस्वामी
चीन में 'क्रांति' के आसार: दलाई लामा
दलाई लामा को लगता है कि चीन सरकार एक और 'सांस्कृतिक क्रांति' से बचने के लिए चीन और तिब्बत में राजनीतिक सुधार की राह पकड़ सकती है। ऐसे संकेत दिखाई दे रहे हैं। दलाई लामा अभी हाल में होनोलूलू गए थे, वहीं पर उन्होंने चीन में बदलाव के संकेत दिखने की बात कही थी। उन्होंने सावधान करते हुए यह भी कहा कि अभी भी उस तिब्बत में बंदूक पूजने वाले मौजूद हैं, जहां मार्च 2011 से अब तक 30 से ज्यादा आंदोलनकारियों ने आत्मदाह किया है, जिनमें ज्यादातर बौद्ध लामा हैं। दलाई लामा ने कहा कि 2008 में जैसे सांस्कृतिक क्रांति के चलते संकट पैदा हुआ था उसी के लौटने के आसार हैं। तब सैकड़ों लोग गायब हो गए थे या मार डाले गए थे। उन्होंने कहा कि वक्त आ गया है जब चीनी शासन को तिब्बती प्रदर्शनों के कारणों की जांच करनी चाहिए। उन्होंने तिब्बत में तैनात अधिकारियों को माओ की सोच पर चलने वाले बंदूक पूजकों की संज्ञा दी। तिब्बती धर्म गुरु को ये सुभीते आसार वेन जिया बाओ के उस बयान में दिखे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन के आगे बढ़ने का रास्ता आर्थिक और राजनीतिक ढांचागत सुधारों से होकर जाता है। वेन के अनुसार, राजनीतिक सुधार फौरन नहीं किए गए तो सांस्कृतिक क्रांति की घातक उथल-पुथल फिर से हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि वेन ने यह वक्तव्य 14 मार्च को प्रधानमंत्री के नाते अपनी आखिरी प्रेस वार्ता में दिया था। वेन के उक्त बयान और सरकारी भ्रष्टाचार पर कार्रवाई होने ने संकेत दिया है कि चीनी नेतृत्व किसी तरह के बदलाव पर गंभीरता से विचार कर रहा है। l
पाकिस्तान और ईरान को
चीन ने दिए परमाणु हथियार
अमरीकी संसदीय रपट का खुलासा
चीन ही है जिसने पाकिस्तान और ईरान को परमाणु हथियार और मिसाइल तकनीकें मुहैया कराई हैं। अमरीकी संसद की रपट ने यह खुलासा करके चीन की मंशाओं को लेकर तमाम देशों के मन में बसे संदेह की पुष्टि कर दी है। संसदीय अनुसंधान सेवा द्वारा तैयार इस रपट के अनुसार, बुश प्रशासन ने 20 मर्तबा चीन की विभिन्न संस्थाओं पर पाबंदी लगाई थी, जिनमें सरकारी संस्थाएं भी थीं। 80 पृष्ठ की इस रपट में अमरीकी नीतिकार पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को तकनीक उपलब्ध कराने के मुद्दे पर चीन पर पाबंदी लगाने के बारे में सोच रहे थे, जबकि उधर बीजिंग एक और परमाणु अप्रसार का वादा कर रहा था। l
पढ़ोगी तो मारी जाओगी
अफगानिस्तान में फिर उभरा कट्टरवादी फरमान
17 अप्रैल को कुंदूज (अफगानिस्तान) में लड़कियों के लिए एक स्कूल में 150 बच्चियां यकायक उल्टियां करने लगीं, उनके सिर दर्द से फटने लगे, जान हलक में आ गई, इतनी कि फौरन अस्पताल में भर्ती कराया गया। बताया गया कि स्कूल की पानी की टंकी में कट्टरवादी तालिबानी सोच के लोगों ने जहर घोल दिया था। ये वही मजहबी कट्टरवादी बताए जा रहे हैं जो लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने के खिलाफ हैं। तालिबानी नहीं चाहते कि लड़कियां पढ़ें, क्योंकि उनके मुताबिक, 'यह इस्लाम के खिलाफ' है। यही वजह थी कि 1996 -2001 के तालिबानी राज में लड़कियों के लिए शिक्षा पर पाबंदी थी। लेकिन उसके बाद भी तालिबानी तत्व रह-रहकर ऐसी हरकतें करते रहे। स्कूल जाने वाली लड़कियों के चेहरों पर तेजाब फेंका गया, और दूसरे तरीकों से डराया-धमकाया गया।
उत्तरी ताखर सूबे के शिक्षा विभाग के प्रवक्ता जान मोहम्मद नबीजादा का कहना है कि हो न हो, पानी में जहर ही मिलाया गया था और यह हरकत लड़कियों को पढ़ाने के विरोधी कट्टरवादी तत्वों की है। हैरानी की बात तो यह है कि किसी भी सरकारी अधिकारी ने सीधे-सीधे किसी गुट का नाम नहीं लिया कि कहीं जान के लाले न पड़ रहा है।
जेल से भगा ले गए आतंकी
उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की एक जेल पर धावा बोलकर तालिबानी बंदूकधारी तकरीबन 400 कैदियों को भगाकर ले गए और जेल के पहरुए टापते रह गए। अफगान सीमा के पास बन्नू शहर की जेल पर 15 अप्रैल को भोर में 100 से ज्यादा आतंकियों ने हमला बोलकर इस दुस्साहस को अंजाम दिया। अत्याधुनिक हथियारों से लैस इन आतंकियों ने विस्फोटकों से जेल का बड़ा दरवाजा तोड़ डाला और पहरेदारों से भिड़ गए, जेल के एक हिस्से को आग के हवाले कर दिया। भागे कैदियों में से 20 तो सौ टके तालिबानी लड़ाके थे जिनमें से एक पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हत्या की असफल कोशिश के जुर्म में कैद था। बन्नू वही शहर है जिसके ठीक आगे पाकिस्तान का वहशियाना कायदों पर चलने वाला उत्तरी वजीरिस्तान का कबीलाई इलाका है। तालिबानी और अलकायदा के आतंकी इसी इलाके में दुबके रहते हैं और अमरीकी ड्रोन भी यहां उनकी खोज में मंडराते रहते हैं। यहां के तालिबानी, जिनके तार अफगानी तालिबान से जुड़े हैं, पुलिस, सरकारी कर्मचारियों और सैनिकों को निशाना बनाते रहते हैंl
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