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बदल गए हैं मापदण्ड
भ्रष्टाचार का चला आ रहा जो सिलसिला।
देश की आर्थिक नींव को इसने दिया हिला।।
तुष्टिकरण राष्ट्र के लिए बना है भस्मासुर।
आरक्षण नफरत का बीज बोने को आतुर।।
अकर्मण्यता का कम घातक नहीं किस्सा।
अफजल की फांसी टलना साजिश का हिस्सा।।
स्वार्थ की आंधी में बदल गए हैं मापदण्ड।
अपने ही देश को कर रहे हैं खण्ड-खण्ड।।
धन लोलुपता में मारी गई है सबकी मति।
झूठी धर्मनिरपेक्षता रोक रही है प्रगति।।
मतदाता की दिक्कतों से नहीं सरोकार।
चुनाव के समय बन जाते नेता चाटुकार।।
महंगाई भी सितम पूरी तरह से ढा रही।
गरीब जनता को खून के आंसू रुला रही।।
युवा पीढ़ी आगे आए तब बात कुछ बन पाए।
और, राष्ट्र का बेड़ा गर्क होने से बच जाए।।
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