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अंक-सन्दर्भ, 30 मार्च,2008पचांगसंवत् 2065 वि. – वार ई. सन् 2008वैशाख कृष्ण 14 रवि 4 मई, 2008वैशाख अमावस्या सोम 5 “”वैशाख शुक्ल 1 मंगल 6 “””” 2 बुध 7 “””” 3 गुरु 8 “”(अक्षय तृतीया)”” 4 शुक्र 9 “””” 5 शनि 10 “”लड़ेंगे हम जीतेंगेओलम्पिक की ज्योति का, नहीं जमा कुछ रंगतिब्बत वालों ने कहा, अंतिम दम तक जंग।अंतिम दम तक जंग, लड़ेंगे हम जीतेंगेशांति-अहिंसा की मशाल प्रज्ज्वलित करेंगे।कह “प्रशांत” जब तक होगा संघर्ष तुम्हारातिब्बत वालों, साथ तुम्हारे भारत सारा-प्रशांततिब्बत के साथ खड़े होंआवरण कथा “आहत तिब्बत” में तिब्बत तथा तिब्बती लोगों की व्यथा-कथा की जानकारी हुई। तिब्बत में चीनी दखल, वहां के लोगों के चीनियों द्वारा सामूहिक नरसंहार आदि के पीछे कुछ हद तक भारत सरकार भी जिम्मेदार है। 1947 से पहले तक भारतीय सेनाएं तिब्बत की सुरक्षा के लिए रहती थीं। नेहरू जी के हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे ने तिब्बत को उसकी स्वतंत्रता के अपहरण का तथा भारत को 1962 के चीनी हमले का “उपहार” दिया। तिब्बत की स्वतंत्रता हेतु संघर्षशील जनता को नैतिक, आर्थिक समर्थन देना हर राष्ट्रवादी भारतीय का कर्तव्य है। आज भी चीन के विस्तारवादी रवैये में परिवर्तन नहीं आया है।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)वास्तव में कम्युनिस्टों का एक ही ध्येय है, अपने विचारों का विस्तार करना। जहां-जहां उनका लोकतांत्रिक तरीके से भी विरोध हुआ है वहां-वहां उन्होंने उस विरोध को बेरहमी से कुचला है, फिर वह चाहे केरल हो, नन्दीग्राम हो या फिर तिब्बत। भारत सरकार को अपनी नीति बदलनी होगी और तिब्बत को आजाद करने के लिए तिब्बतियों का सहयोग करना होगा। वर्षों से तिब्बती विभिन्न देशों में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं।-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)तिब्बत की राजधानी ल्हासा में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाली जनता पर चीन की कम्युनिस्ट सरकार के इशारे पर बर्बरतापूर्वक अत्याचार किया गया। इसकी जितनी भी भत्र्सना की जाए, कम है। चीन के इरादे ठीक नहीं हैं।-निदेश गुप्तकृष्णगंज, पिलखुवा (उ.प्र.)श्री देवेन्द्र स्वरूप का विचारोत्तेजक आलेख “चीनी दैत्य के जबड़े में फंसा तिब्बती मेमना” तिब्बत में आजादी के लिए एक बार फिर भड़के तिब्बतियों के आक्रोष का भावपूर्ण वर्णन है। पं. नेहरू के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने के बाद उसे चीन का हिस्सा स्वीकार करके उस तिब्बत के साथ विश्वासघात किया जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं भावनात्मक रूप से भारत के साथ पूरी तरह जुड़ा था। तिब्बत की आजादी की मांग कर रहे आन्दोलनकारियों का चीन ने जिस बर्बरता से दमन किया है उसे पूरी दुनिया ने देखा है और उसकी निंदा की है। परन्तु भारत सरकार और उसके सहयोगी वामपंथी चुप्पी साधे रहे, शर्म आनी चाहिए-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)अन्तरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर चीन ने तिब्बत पर कब्जा जमाया था। किन्तु दुर्भाग्य यह है कि आज तक न तो संयुक्त राष्ट्र संघ और न ही अन्य किसी शक्तिशाली देश ने चीन की इस नीति का विरोध किया। तिब्बत शान्तिप्रिय बौद्धों का देश है, शायद इसीलिए उसकी सहायता के लिए कोई देश सामने नहीं आता। यदि तिब्बत मुस्लिम या ईसाई राष्ट्र होता तो क्या विश्व समुदाय का उसके प्रति यही रवैया होता?-प्रमोद प्रभाकर वालसांगकरद्वारकापुरम, दिलसुखनगर, हैदराबाद (आं.प्र.)सर्वमान्य ग्रंथचर्चा सत्र में डा. प्रमोद पाठक के लेख “बोले रघुराई” में रामायण के विभिन्न सूत्रों को रेखांकित किया गया है। रामायण हमारी सनातन संस्कृति का सर्वमान्य ग्रंथ है। बेहतर राज्य प्रबंधन हो या परिवार प्रबंधन या नीतिगत विषय हों, प्रत्येक बिन्दु पर हमें रामायण से मार्गदर्शन मिलता है। इसके साथ ही नैतिक बल एवं ऊ‚र्जा भी प्राप्त होती है।-मनोहर “मंजुल”पिपल्या-बुजुर्ग, निमाड़ (म.प्र.)कलंक का टीकातस्लीमा नसरीन के सन्दर्भ में श्री एन. देव्यांश की रपट “कहां गया शरणागत धर्म” सेकुलरों का असली चेहरा उजागर करती है। तस्लीमा को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। जाते-जाते उन्होंने कहा, “इस देश में सेकुलर होने का अर्थ है, मुस्लिम कट्टरवादियों का पक्ष लेना, जितना भी अन्याय वे करें, चुपचाप सहते जाना।” भारत की तथाकथित सेकुलर सरकार का तस्लीमा नसरीन के प्रति यह रवैया जहां एक तरफ मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए है, वहीं वामपंथियों के सोनिया सरकार पर लगातार दबाव का भी परिणाम है। तस्लीमा नसरीन का भारत से निष्कासन न तो लोकतंत्र का सम्मान है और न ही संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का।-कृष्ण कुमार भारतीयअनाज मण्डी, कलायत, कैथल (हरियाणा)सरबजीत के परिवार की साहसिक घोषणा- “आतंकवादियों के बदले सरबजीत की रिहाई नहीं चाहिए” पढ़कर गर्व हुआ। किन्तु तस्लीमा की व्यथा पढ़ी तो ग्लानि से भर गया। तस्लीमा ने भारत को अपना देश माना था। कट्टरवादियों के खिलाफ उसने आवाज उठाई थी। भारत की ओर से उसको हर प्रकार का सहयोग मिलना चाहिए था। किन्तु लगता है कि यह देश अब बदल गया है। पाचजन्य जैसे कुछ राष्ट्रवादी पत्रों को छोड़कर किसी ने भी तस्लीमा के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई।-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)यह कैसी शिक्षा?23 मार्च का सम्पादकीय “कहां ले जाएगी यह आगे बढ़ने की होड़” वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर समग्रता से विचार करने को प्रेरित करता है। श्री शंकर शरण द्वारा लिखित चर्चा चत्र लेख “भारत से विरक्त भारतीय शिक्षा” भी एक सच्चाई को दर्शाता है। कौन सी ऐसी बातें हैं जो सामान्य से अबोध बालक को, जो कक्षा 5, 6 में ही पढ़ रहा है, तनाव के कारण, निराशा-हताशा के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ रहा है? ऐसी शिक्षा प्रणाली, जो संस्कार को बेचकर विकास की बात करे, ठीक नहीं है। मुझे लगता है संस्कार- विहीन विकास विनाश की ओर ही ले जायेगा।-विश्व प्रताप36/192, अगस्त कुण्डा, वाराणसी (उ.प्र.)जरा उस मासूम की सोचेंआधुनिक शिक्षा प्रणाली जहां एक ओर रोजगार उपलब्ध कराने में सहायक है, वहीं यह छोटे-छोटे बच्चों में अनावश्यक तनाव भी पैदा करती है। जो बच्चा अभी ठीक से बोल भी नहीं पाता है उस पर भारी पुस्तकों का बोझा लाद दिया जाता है। थके-हारे विद्यालय से लौटने के बाद उसे “होम वर्क” के नाम पर बैठाया जाता है, उसे वे शब्द रटाए जाते हैं, जिनका अर्थ बड़ों को भी पता नहीं। अपने बच्चे को आधुनिक शिक्षा अवश्य दिलाएं, पर उसके कोमल मन पर कोई ऐसी बात न बैठ जाए कि उसे कोई आत्मघाती कदम उठाना पड़े। बच्चे की मानसिक एवं शरीरिक क्षमता को ध्यान में रखकर उसके साथ बर्ताव करना चाहिए।-रमण कुमार रायम.सं.-79, गली सं.- 3 एच, सन्त नगर, बुराड़ी (दिल्ली)पुरस्कृत पत्रपिछले कुछ दशकों में खाद्य पदार्थ में मिलावट करने का घृणित अपराध तीव्र गति से बढ़ा है। घी, दूध, चीनी, तेल, खोवा-मावा, मसाले आदि सभी वस्तुओं में मिलावट का सिलसिला जोरों पर चल रहा है। दूध में पानी मिलाना तो लम्बे समय से चल रहा है। अब तो सिंथेटिक दूध बाजार में बेचा जा रहा है। गाय-भैंस को प्रतिदिन आक्सीटोसिन का-मुरारी पचलंगियाद्वितीय तल, 462, सरस्वती विहार, गुरुग्राम (हरियाणा)हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.4
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