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क्या हों आर्थिक विकास के मापदण्ड?-डा. बजरंग लाल गुप्तसुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री, क्षेत्र संघचालक, उत्तर क्षेत्र, रा.स्व.संघगतांक में हमने जी.डी.पी. एवं प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. को विकास के मापदंड रूप में स्वीकार किए जाने के कुछ दोषों व कमियों को बताया है।(क) जी.डी.पी. की अभी तक कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं बन सकी है। इसकी गणना में क्या शामिल किया जाए और क्या नहीं- अभी तक इस प्रश्न का कोई संतोषजनक हल नहीं निकल पाया है।(ख) विभिन्न देशों की जी.डी.पी. की गणना करते समय अमौद्रिक क्षेत्र की बहुत-सी वस्तुएं गणना से छूट जाती है। स्व-उपभोग तथा बाजार में विनिमय के लिए न लाई जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं की राष्ट्रीय आय में ठीक से गणना नहीं हो पाती। उदाहरण के लिए, भारत जैसे देशों के गांवों में आज भी बहुत सारा लेन-देन मुद्रा के बिना ही होता है। किसान अनाज के बदले कपड़ा, बर्तन, लकड़ी का सामान व अन्य सेवाएं प्राप्त कर लेता है। इसी तरह किसान अपनी उपज का एक बड़ा भाग स्व-उपभोग के लिए भी रख लेते हैं। ये सब वस्तुएं बाजार में बिक्री के लिए प्रस्तुत ही नहीं की जाती, अत:इसी प्रकार अवैतनिक सेवाओं की गणना भी राष्ट्रीय आय में नहीं हो पाती। उदाहरण के लिए: खाना बनाने, कपड़ा धोने, सफाई करने आदि का काम जब कोई नौकरानी वेतन लेकर करती है, तब तो ये सेवाएं राष्ट्रीय आय का अंग बन जाती हैं। किन्तु यही सेवाएं गृहणियों द्वारा की जाने पर वे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं हो पाती। एक जैसी ही सेवाओं का उत्पादन होने पर भी एक स्थिति में वे राष्ट्रीय आय में शामिल होती हैं जबकि दूसरी स्थिति में नहीं। इस कठिनाई का अभी तक कोई संतोषजनक हल नहीं ढूंढा जा सका है।(ग) विभिन्न देशों की जी.डी.पी. की गणना उन देशों की मुद्रा में होती है। अत: विभिन्न देशों की जी.डी.पी. की तुलना करते समय उन्हें किसी एक मुद्रा में व्यक्त करना पड़ता है और इसके लिए विदेशी विनिमय दर का सहारा लिया जाता है। किन्तु कोई भी विदेशी विनिमय दर यह काम ठीक से नहीं कर पाती।(घ) अल्पविकसित देशों में जी.डी.पी. के आंकड़े अपर्याप्त, अपूर्ण एवं अविश्वसनीय होते हैं। अत: ऐसे आंकड़ों के आधार पर विकास का सही माप हो ही नहीं सकता।3. प्रति व्यक्ति उपभोग – कुछ विद्वानों का मत है कि विकास का अंतिम लक्ष्य लोगों के रहन-सहन व जीवन स्तर में वृद्धि करना होता है और रहन-सहन का स्तर उपभोग के लिए उपलब्ध वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा पर निर्भर करता है। अत: प्रति व्यक्ति उपभोग का स्तर आर्थिक विकास का सर्वोत्तम मापदंड है। किन्तु इस माप की भी अपनी एक कठिनाई है। प्रत्येक देश को भविष्य में अधिक उत्पादन करने के लिए पूंजी-संचय व बचत की आवश्यकता होती है और इसके लिए उपभोग को कम करना पड़ता है। यदि कोई देश अपने उपभोग को कम करके बचत व पूंजी निर्माण में वृद्धि कर रहा होगा तो प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर को विकास का मापदंड मान लेने पर उस देश का आर्थिक विकास नहीं माना जाएगा। दूसरी ओर, यदि एक देश वर्तमान में अपने उपभोग स्तर में तो काफी वृद्धि कर लेता है किन्तु उसकी बचत व पूंजी निर्माण कम हो जाता है, तो इससे भविष्य में उसके कुल उत्पादन में कमी आने की संभावना उत्पन्न हो जाएगी। किन्तु प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर के मापदंड के अनुसार उस देश का आर्थिक विकास हुआ है, यह कहा जाएगा।4. आर्थिक कल्याण- कुछ विद्वानों के अनुसार आर्थिक कल्याण ही आर्थिक विकास का सर्वोत्तम मापदंड हो सकता है। आर्थिक कल्याण का विचार करते समय हम केवल यह नहीं देखेंगे कि क्या और कितना उत्पादन किया जा रहा है, बल्कि इसके अंतर्गत यह भी देखेंगे कि यह किस प्रकार पैदा किया जा रहा है और इसका बंटवारा किस प्रकार हो रहा है। आर्थिक कल्याण में यह भी ध्यान में रखना होगा कि देश में जिन-जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है उनका तुलनात्मक महत्व कितना है? इस प्रकार इसमें हमें मूल्यात्मक निर्णय (वेल्यू जजमेंट) लेने होंगे। इसी तरह उत्पादन की सामाजिक लागत का भी विचार करना होगा। यद्यपि आर्थिक कल्याण का मापदंड विकास का अधिक उपयुक्त मापदंड है किन्तु फिर भी अभी तक अर्थशास्त्रियों ने इसका व्यवहार में प्रयोग नहीं किया है। इसका कारण उन्होंने यह बताया है कि मूल्यात्मक निर्णयों, न्यायपूर्ण वितरण, सामाजिक लागत आदि ऐसी बातें हैं जिनकी व्यवहार में गणना करना बहुत कठिन है, अत: आर्थिक कल्याण को अव्यावहारिक मानकर छोड़ दिया गया है।5. समायोजित सकल राष्ट्रीय उत्पाद माप- विभिन्न देशों के बीच तुलनात्मक अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से कुछ अर्थशास्त्रियों ने समायोजित सकल राष्ट्रीय उत्पाद को विकास के मापदंड के रूप में स्वीकार करने का सुझाव दिया है। इस माप के माध्यम से राष्ट्रीय आय के लेखों को समायोजित करने के लिए क्रयशक्ति समता की अवधारणा का प्रयोग किया जाता है। किन्तु इस मापदंड में भी राष्ट्रीय आय के माप की सभी सीमाएं तो हैं ही, उसके अलावा राष्ट्रीय आय का समायोजन करना ही कोई सरल काम नहीं है, उसकी अपनी कठिनाइयां व सीमाएं हैं।6. अन्य मापदण्ड- उपर्युक्त मापदंडों के अलावा कुछ विद्वानों ने विकास के और भी कई मापदंडों के प्रयोग का सुझाव दिया है। उदाहरण के लिए, कुल जनसंख्या में निर्धन वर्ग का प्रतिशत कम होना आर्थिक विकास का एक अच्छा मापदंड हो सकता है।पर ये सभी मापदंड एकपक्षीय हैं औरगैरआर्थिक (सामाजिक) सूचकसामाजिक सूचकों में मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं के रूप में बताया गया है। मुख्य सामाजिक सूचकों में शामिल हैं-जीवन प्रत्याशा, केलौरी-पान, शिशु मृत्यु दर, विद्यालयों में प्राथमिक कक्षाओं में भर्ती संख्या, आवास, पोषण, स्वास्थ्य तथा ऐसी ही अन्य वे सब चीजें जो मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं से सम्बंध रखती हैं।1. सामाजिक लेखा प्रणाली- इस प्रणाली को स्टोन एवं सीयर्स ने दिया था। इसी क्रम में पियट्ट एवं राउंड ने भी सोशल एकाउंटिंग मैट्रिक्स के नाम से एक सूचक दिया था। किन्तु इस प्रकार की प्रणाली की सबसे बड़ी कमी विश्वसनीय एवं उपयोगी आंकड़ों का न मिल पाना है। इसके अलावा इसमें सामाजिक विकास के सब पहलुओं को सम्मिलित कर पाना भी कठिन रहता है।2. संयुक्त सामाजिक विकास सूचक- इस सूचक का विकास सामाजिक विकास पर संयुक्त राष्ट्र के शोध संस्थान द्वारा किया गया था। प्रारंभ में 73 सूचकों को जांचा गया जिनमें से अंत में 16 सूचकों का चयन किया गया। ये सूचक हैं-? जन्म के समय जीवन प्रत्याशा ? 20,000 या उससे अधिक के क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि का प्रतिशत ? प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन पशु प्रोटीन का उपभोग ? प्राथमिक एवं द्वितीयक स्तर पर कुल मिलाकर भर्ती विद्यार्थियों की संख्या ?व्यावसायिक भर्ती अनुपात ? प्रति कमरा औसत व्यक्तियों की संख्या ? प्रति 1000 जनसंख्या पर समाचार पत्र ?बिजली, गैस, पानी आदि से युक्त आर्थिक रूप से सक्रिय जनसंख्या का प्रतिशत ? प्रति पुरुष कृषि-श्रमिक कृषि उत्पादन ? कृषि में वयस्क पुरुष श्रमिकों का प्रतिशत ? प्रति व्यक्ति किलोवाट बिजली उपभोग ? प्रति व्यक्ति कि.ग्रा. स्टील उपभोग ? प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग ? विनिर्माण कार्यों से प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद (प्रतिशत में) ? प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार ? आर्थिक दृष्टि से सक्रिय कुल जनसंख्या में वेतन एवं मजदूरी पर कार्य करने वालों का प्रतिशत।उपरोक्त सूचकों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये भी विकास के उपयुक्त मापदंड नहीं बन सकते।3. भौतिक गुणवत्ता का जीवन सूचक- विकास के इस सूचक को 1979 में मोरिस डी. मोरिस ने दिया था। इसके अंतर्गत तीन सूचकों का प्रयोग करने की बात कही गई थी- (क) एक वर्ष की आयु पर जीवन प्रत्याशा (ख) शिशु मृत्यु (ग) साक्षरता। यह सूचक भी अधूरा है। क्योंकि इसमें अनेक सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक सूचकों को शामिल ही नहीं किया गया है- जैसे सुरक्षा, न्याय, मानव अधिकार आदि।4.आधुनिक आर्थिक संवृद्धि की विशेषताओं के बारे में कुटनेट्स का विश्लेषण- कुटनेट्स ने आधुनिक आर्थिक संवृद्धि की सात मुख्य विशेषताएं बताई हैं-(क) प्रति व्यक्ति उत्पादन में तीव्र दर से वृद्धि (ख) उत्पादकता की ऊंची वृद्धि दर (ग) संरचनात्मक परिवर्तन की ऊंची दर (घ) शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण (ङ) तीव्र सामाजिक एवं वैचारिक परिवर्तन (च) आधुनिक देशों का बाहर की ओर देखने का दृष्टिकोण (छ) भौतिक एवं मानवीय पूंजी का अंतरराष्ट्रीय प्रवाह। (क्रमश:)12
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