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-गोपाल सच्चर
आतंकवाद ग्रस्त डोडा व जम्मू सम्भाग के अन्य क्षेत्रों में स्थिति से निपटने के लिए जनता का सहयोग लेने की प्रक्रिया आरम्भ की गई है। इसके लिए ग्राम सुरक्षा समितियों का गठन किया गया है। राज्य में लगभग 2200 से अधिक समितियां बनाई गई हैं, जिनमें 800 से अधिक केवल डोडा जिले में हैं। इन समितियों में प्राय: 10 या 11 सदस्य एवं 2 से 3 तक विशेष पुलिस अधिकारी होते हैं जो एस.पी.ओ. कहलाते हैं। एस.पी.ओ. का सीधा सम्बंध पुलिस थानों के साथ-साथ क्षेत्रों में सेना तथा अन्य सुरक्षाकर्मियों से होता है। विशेष पुलिस अधिकारियों को प्रतिमाह 1500 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक का भत्ता दिया जाता है। प्राप्त राशि को सुरक्षा समिति के सदस्य आपस में बांट लेते हैं।
ग्राम सुरक्षा समितियों का गठन सरल कार्य नहीं था, क्योंकि सरकारी शस्त्रों को सम्भालना तथा संकट में इनका उपयोग करना एक बड़ा प्रश्न था। किन्तु इसका समाधान इन क्षेत्रों में रह रहे भूतपूर्व सैनिकों ने कर दिया। उन्होंने लोगों के साथ मिलकर इस सम्बंध में महत्वपूर्ण कार्य कर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का मनोबल बनाए रखा है। प्रारम्भ में सुरक्षा समितियों के गठन के समय अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों ने बड़े उत्साह के साथ समितियों में शामिल होकर सरकारी शस्त्र लिए। कई प्रकार के दबाव तथा राजनीतिक कारणों से बहुसंख्यक समुदाय इस प्रक्रिया से दूर ही रहा। बाद में सुरक्षा समिति से जुड़े लोगों का मनोबल देखकर वे भी आगे आने लगे और बहुत से मुसलमान भी इन समितियों में शामिल हो गए।
यह सच है कि सुरक्षा समितियों के सदस्य तथा उनके परिवार उग्रवादियों के निशाने पर रहे हैं। पिछले दस सालों में राज्य में पुलिस की भारी संख्या होने के बावजूद करीब 800 पुलिसकर्मी शहीद हुए हैं। किन्तु संख्या के हिसाब से देखें तो ग्राम सुरक्षा समितियों के साथ काम करने वाले एस.पी.ओ. तथा अन्य शहीद लोगों की संख्या भी कम नहीं है। एक रपट के अनुसार लगभग 450 एस.पी.ओ. तथा 200 से अधिक ग्राम सुरक्षा समितियों के सदस्य व उनके परिवारजन उग्रवादियों के हाथों शहीद हो चुके हैं। इन ग्राम सुरक्षा समितियों के सामने कई कठिनाइयां हैं। सबसे बड़ी समस्या शस्त्रों की कमी है। उग्रवादियों के पास आधुनिक शस्त्र होते हैं जिनमें ए.के. राइफलें, अचूक निशाने वाली बंदूकें, हथगोले, राकेट लांचर आदि शामिल हैं। किन्तु ग्राम सुरक्षा समितियों के सदस्यों को केवल पुराने समय की .303 राइफलें ही उपलब्ध करवाई गई हैं। इसके बावजूद इन समितियों ने न केवल अपने गांव की रक्षा की है अपितु अनेक अवसरों पर उग्रवादियों का सामना करने में अपना सहयोग देकर सराहनीय कार्य भी किया है। पुलिस तथा सेना के अधिकारियों ने उनके काम तथा मनोबल की कई बार सराहना की है। राजग सरकार के कार्यकाल में इन समितियों की संख्या में वृद्धि की गई। एस.पी.ओ. की संख्या 15,000 से बढ़ाकर 27,000 करने की मंजूरी दी गई। राज्य का सुरक्षा सम्बंधी खर्च 1995-96 में केवल 150 करोड़ रुपया था जिसे 2001-02 तक बढ़ाकर 450 करोड़ रुपए कर दिया गया। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने डोडा जिला तथा अन्य स्थानों पर ग्रामीण लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए वादा किया था कि वह एस.पी.ओ. का भत्ता 1500 से बढ़ाकर 5000 रुपए प्रतिमास कर देगी। किन्तु सत्ता में आने के दो साल बाद भी यह कार्य पूरा नहीं किया जा सका है। आर्थिक रूप से सम्पन्न कई परिवार दूरदराज के क्षेत्रों को छोड़ जम्मू शहर तथा अन्य स्थानों पर आ गए हैं। भाजपा ने डोडा की घटनाओं व ग्राम सुरक्षा समितियों को और सुदृढ़ करने की मांग पर 7 जून से व्यापक आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है।
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