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गीता से प्रखरतासी.के. प्रह्लाददीपक जैनविजय गोविन्दराजनराकेश खुरानारामचरणस्वामी पार्थसारथीसितम्बर की एक शाम चमचमाती बी.एम. डब्ल्यू, लेक्सस और मर्सिडीज बेंज से उतर कर न्यू जर्सी के एक उपनगर में आलीशान बंगले के बगीचे में टहलते युवा अध्यक्ष संगठन के सदस्य जब मिलते हैं तो दुनिया की चकाचौंध और भौतिक प्रगति के सारे दिखावे खुद-ब-खुद बहुत दूर चले जाते हैं। कलफ लगी कमीज और बो टाई पहने सेवक 20 के करीब संख्या में जुटे उन व्यवसायियों- जिनमें आडियो-विजुअल उपकरणों से लेकर व्यक्तिगत निखार के उत्पाद तक बेचने वाली मध्यम दर्जे की इकाइयों के अध्यक्ष थे- को शाकाहारी अल्पाहार परोस रहे थे। ये सभी मेहमान पहाड़ी के निकट बने अपने मेजबान के उस लम्बे-चौड़े आलीशान घर, जिसमें संगमरमर का फर्श चमचमाते झाड़-फानूसों की रोशनी में नहा रहा था, रोकोको के शीशे शोभा बढ़ा रहे थे, के भूमितल में बने कमरे की ओर बढ़े और अपने लम्बे कोट, चप्पलें उतारकर वहां बिछे गलीचे पर आधा गोल बनाकर बैठ गए। उस शाम के वक्ता थे वेदान्त पर भारत के सुप्रसिद्ध भाष्यकार स्वामी पार्थसारथी। उनके साथ सफेद वस्त्र पहने उनके शिष्यों का दल था। अपने निकट लगे बोर्ड पर उन 80 वर्षीय छरहरे शरीर वाले स्वामी जी ने व्यावसायिक सफलता का रहस्य अंकित किया- “कंसनट्रेशन, कंसिस्टेंसी एंड कोआपरेशन।” पूरी तरह शांत बैठे वे युवा उद्यमी सब कुछ सुन रहे थे। अपनी गंभीर आवाज में स्वामी जी ने कहा, “जब तक आप विवेक, जो दिमाग और शरीर को नियंत्रित करता है, नहीं पैदा करते तब तक आप व्यवसाय में सफल नहीं हो सकते।”कुछ दिन पहले ही व्हार्टन बिजनेस स्कूल में स्वामी पार्थसारथी ने तनाव प्रबंधन के बारे में वक्तव्य दिया था। इसी प्रवास के क्रम में उन्होंने हेज फंड प्रबंधकों और निवेशकों का न्यूयार्क के एक उपनगर में मार्गदर्शन किया। उन्होंने वहां सम्पत्ति जोड़ने की बाध्यता और आंतरिक खुशी में संतुलन के बारे में बताया। लोअर मैनहटन मुख्यालय में लेहमैन ब्रादर्स इनकार्पोरेशन के एक सभागार में भाषण के दौरान एक युवा बैंक कर्मी ने पूछा कि अपने बद्दिमाग सहयोगियों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए। स्वामी जी ने सलाह दी, “उन्हें अपने दिमाग से निकाल दो। तुम खुद अपना भाग्य बनाते-बिगाड़ते हो।” बिजनेस वीक के 30 अक्तूबर, 2006 अंक में प्रकाशित इस रपट ने अमरीकी उद्योग जगत में आ रहे इस सुखद बदलाव से परिचित कराया है।ईस्ट कोस्ट का स्वामी जी यह त्वरित दौरा एक महत्वपूर्ण नए चलन की एक छोटी सी झलक जैसा रहा। वहां बड़े-बड़े उद्योग समूह भारतीय दर्शन को अपना रहे हैं। अचानक प्राचीन हिन्दू ग्रंथों, जैसे गीता के उद्धरण प्रबंधन संस्थानों और सलाहकारों की वेबसाइटों पर प्रमुखता से दिखाई देने लगे हैं। बड़े-बड़े व्यावसायिक स्कूलों ने “आत्म संयम” की कक्षाएं शुरू की हैं जो भारतीय पद्धति से प्रबंधकों में नेतृत्व कौशल बढ़ाती हैं और काम के बोझ तले दबी जिंदगी में आंतरिक शांति की तलाश करती हें। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में जन्मे रणनीतिकार बदलाव लाने में मदद कर रहे हैं। सी.के. प्रह्लाद, राम चरण और विजय गोविन्दराजन सरीखे शिक्षाविद् और सलाहकार आज दुनिया के नामचीन व्यावसायिक पुरोधाओं में से एक हैं। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, नार्थवेस्टर्न कीलोग स्कूल आफ बिजनेस और मिशिगन्स रॉस स्कूल आफ बिजनेस जैसे संस्थानों के करीब 10 प्रतिशत प्रोफेसर भारतीय मूल के हैं। कीलोग स्कूल के डीन दीपक सी. जैन कहते हैं कि कीलोग, व्हार्टन, हार्वर्ड आने वाले वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारियों को हम भारतीय मूल्यों की जानकारी देते हैं।आप इसे “कर्म पूंजीवाद” भी कह सकते हैं। आजकल “भावात्मक बौद्धिकता” और “सेवक नेतृत्व” जैसे विचार चलन में आए हैं। कभी “80 और “90 के दशकों में “लालच अच्छा है” की गूंज सुनाई देती थी वहीं आज वह गूंज- “ग्रीन इज गुड” यानी “प्रकृति की सुखदायी हरियाली अच्छी है” में बदलती जा रही है। कभी ईसा पूर्व छठी शताब्दी के चीनी ग्रंथ “द आर्ट आफ वार” के उद्धरण प्रबंधकों की चर्चाओं में सुनाई देते थे वहीं आज ज्यादा गहन भगवद्गीता के मूल्यों का बोलबाला है। इस साल की शुरुआत में Ïस्प्रट नेक्सटल कार्पोरेशन के एक प्रबंधक ने “प्रभावी नेतृत्व के संदर्भ में भगवद्गीता” पुस्तक लिखी थी।आज आंकड़ों में उलझे युवा प्रबंधकों के बीच गीता के मूल्यों के प्रति बढ़ता आकर्षण किसी को एक अजीब सी बात लग सकती है। गीता का एक प्रमुख संदेश है कि ज्ञानवान नेतृत्व को उचित निर्णय में आड़े आने वाले विचारों या भावनाओं पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। अच्छा नेता वही है जो स्वार्थरहित हो, खुद पहल करे और परिणाम या आर्थिक लाभालाभ के विचार से परे कर्तव्य पर ध्यान दे। जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के मुख्य कार्यकारी जेफरी इमेल्ट के सहयोगी रामचरण का कहना है, मुख्य बात है अपने से पहले उद्देश्य को रखना।आज वैश्विक व्यावसायिकता के माहौल में खुद को बनाए रखने में जुटीं कंपनियां भारतीय दर्शन में वर्णित सांसारिक दृष्टिकोण को अपना रही हैं। जहां पहले ज्यादातर उत्पादन, उत्पाद विकास और प्रशासनिक काम कंपनी के भीतर ही किए जाते थे वहीं आज बाहर के लोगों का भी उपयोग किया जा रहा है।भारत में जन्मे विचारकों ने ये सब सूत्र नहीं गढ़े हैं बल्कि वे उनके प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रह्लाद ने इस पर कई किताबें लिखी हैं कि ग्राहकों की भागीदारी से कंपनियां किसी चीज को मिलकर बना सकती हैं और गरीब के उपयोग के उत्पाद और प्रौद्योगिकी निर्मित कर सफलता अर्जित कर सकती हैं। नोकिया कार्पोरेशन से लेकर कारगिल जैसी कंपनियां तक इस विचार वे प्रभावित हैं। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर राकेश खुराना एक किताब लिख रहे हैं कि किस प्रकार अमरीकी बिजनेस स्कूल अपने मूल सामाजिक चरित्र से दूर हो गए हैं। डार्टमाउथ कालेज के प्रोफेसर विजय गोविन्दराजन, जिनकी प्रबंधन पर कई किताबें खासी चर्चित हुई हैं, अपने सिद्धान्तों को सीधे-सीधे हिन्दू दर्शन से जोड़ते हैं। वे कंपनियों को पुराना भूलकर नए विचारों के साथ भविष्य बनाने में मदद करते हैं। गोविन्दराजन कहते हैं कि उनका यह काम कर्म के विचार से प्रेरित है जिसके अनुसार आज के कर्म ही भविष्य गढ़ते हैं।भारतीय दर्शन और वर्तमान विपणन सिद्धान्त कहीं-कहीं समानान्तर हैं। ग्राहकों को बहलाने-फुसलाने की बजाय उनका सहयोग लिया जाने लगा है। अपनी वेबसाइट पर व्यापार में भगवद्गीता की प्रासंगिकता पर चर्चा चला रहे हैं कीलोग के सिख प्रोफेसर मोहनबीर साहनी। वे कहते हैं, अपने आस-पास रहने वालों के साथ मेल रखते हुए ग्राहकों की भागीदारी से नए उत्पाद बनाने पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा है। दूसरे कई बिजनेस स्कूल भी ऐसे पाठक्रम जोड़ रहे हैं जो प्राचीन ज्ञान और आधुनिक प्रबंधकों की जरुरतों को जोड़ते हैं। कोलम्बिया बिजनेस स्कूल के श्रीकुमार राव “रचनात्मकता और व्यक्तिगत सिद्धता” पढ़ाते हैं। इसमें ऐसे कई तेजी से प्रगति कर रहे प्रबंधक भाग लेते हैं जो अपने काम में बहुत सफल होने के बावजूद अब भी खुश नहीं हैं। उनकी कक्षा में भारतीय ऋषियों, दार्शनिकों के विचार और मानसिक व्यायाम दोनों का समावेश रहता है। इसमें दो राय नहीं है कि भारत और भारतीय दर्शन का दुनिया के व्यावसायिक परिदृश्य पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है। तनाव युक्त प्रबंधन से तनाव मुक्त प्रबंधन की ओर युवा प्रबंधकों का बढ़ता रुझान यही सिद्ध करता है। और भगवद्गीता के मूल्यों का बाजार के समीकरणों के साथ तालमेल प्रबंधन कंपनियों में नया चलन बना है। स्वामी पार्थसारथी के व्याख्यानों में जुटते युवा अध्यक्ष संगठन के सदस्य अमरीका में गीता के उपदेशों का प्रचार-प्रसार अपने तरीके से कर रहे हैं। (बिजनस वीक में पेट एन्गार्डियो और जेना मेक्ग्रेगर की रपट पर आधारित)21
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