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अंक-सन्दर्भ, 8 अक्तूबर, 2006
पञ्चांग
संवत् 2063 वि. –
वार
ई. सन् 2006
कार्तिक पूर्णिमा
रवि
5 नवम्बर
(कार्तिक स्नान समाप्त
श्री गुरुनानक जयन्ती)
मार्गशीर्ष कृष्ण 1
सोम
6 ,,
,, 2
मंगल
7 ,,
,, 2
मंगल
7 ,,
,, 3
बुध
8 ,,
(श्रीगणेश चतुर्थी व्रत)
,, 4
गुरु
9 ,,
,, 5
शुक्र
10 ,,
,, 6
शनि
11 ,,
बिन पानी सब त्याज्य
पानी पर हैं लड़ रहे, अब भारत के राज्य
जीवन का आधार है, बिन पानी सब त्याज्य।
बिन पानी सब त्याज्य, सिंचाई कैसे होगी
कैसे उर्वर वसुन्धरा की प्यास बुझेगी?
कह “प्रशांत” है पानी का संकट अति तगड़ा
विश्व युद्ध से पहले घर में होगा झगड़ा।।
-प्रशांत
पड़ोस में जिहाद फैक्ट्री
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री तरुण विजय की रपट “भारत के खेत, कब्जा बंगलादेश का” परिस्थिति का भयावह चित्र प्रस्तुति करती है। देश की चिन्ता न तो केन्द्र सरकार को है और न ही सेकुलर मीडिया को। बंगलादेशी घुसपैठिए भारत के खेतों पर कब्जा करें, हिन्दुओं को वहां से पलायन के लिए मजबूर करें, इनसे भला हमारी सेकुलर सरकार को क्या फर्क पड़ने वाला है। ऐसे ही जो सेकुलर पत्रकार दिल्ली में बैठकर गोधरा-गोधरा की रट लगाते हैं, वे श्रीनगर, मुर्शिदाबाद, करीमगंज, दिनाजपुर की ओर नहीं देखते?
-चन्द्रशेखर
32, मुख्य सड़क, पलवल
फरीदाबाद (हरियाणा)
देश का शायद ही ऐसा कोई कोना होगा जहां बंगलादेशी घुसपैठिए नहीं हैं। ये पहले चोरी-डकैती, लूट- मार जैसे काम करते थे पर अब आतंकवादी गिरोहों में भी शामिल हो चुके हैं। मुम्बई के श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में भी बंगलादेशी घुसपैठिए शामिल पाए गए हैं।
-अजय पौराणिक
स्टेशन रोड, रायपुर (छत्तीसगढ़)
यदि बंगलादेशी घुसपैठियों की अनदेखी हम यूं ही करते रहे तो पूरब में भी एक कश्मीर पैदा हो सकता है। फिर पूर्वोत्तर से भी हिन्दू पलायन करेंगे। जो पलायन नहीं करेंगे उन्हें जबरन भगाया जाएगा। पूर्वोत्तर में बन रही स्थिति की जानकारी क्या सरकार और गुप्तचर विभाग को नहीं है? सरकार बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ मुहिम क्यों नहीं छेड़ती?
-प्रमोद कुमारफौदार बस्ती, ठाकुरगंज
किशनगंज (बिहार)
देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है कि देशहित को प्राथमिकता देने वाले राजनेताओं का अभाव हो गया है। देशहित में क्या सही है और क्या गलत, यह भी हमारे कुछ नेता बोलना पसन्द नहीं करते। उनकी नजर सिर्फ कुर्सी पर रहती है। ऐसे स्वार्थी राजनेताओं का बहिष्कार करना होगा।
-लखनलाल गुप्ता
नेताजी सुभाष रोड, आसनसोल (प.बंगाल)
प्रेरक सम्पादकीय
सम्पादकीय “विजयादशमी और अयोध्या में दीपोत्सव” प्रेरक है। “सीधी अंगुली से घी नहीं निकलता” यह कहावत आज समाज में चरितार्थ हो रही है। श्रीराम द्वारा बहुत अनुनय-विनय करने के बाद भी जब सागर नहीं माना तब राम जी ने याचना की प्रवृत्ति का त्यागकर लक्ष्मण से कहा था, “बिनय न मानत जलधि जड़ …।” सागर ने राह दी। राम जी लंका गए और विजय प्राप्त की। उस विजय के उत्सव को आज भी पूरा देश मनाता है। फिर हमारी सरकार राम राज्य के आदर्श को क्यों नहीं मानती?
-दिलीप शर्मा
114/2205, एम.एच.वी. कालोनी
कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)
अहमद को हटाओ
श्री प्रदीप कुमार की रपट “कांग्रेस का हाथ, दंगाइयों के साथ” ने सिद्ध किया है कि कांग्रेस का हाथ सदैव दंगाइयों के साथ ही रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है। 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस का हाथ रहा है। अब मराड के दंगाइयों को भी कांग्रेस बचा रही है। यही नहीं, दंगाइयों के कथित संरक्षक और मुस्लिम लीग के सांसद ई. अहमद को विदेश राज्यमंत्री इसी कांग्रेस ने बनाया है। न्यायमूर्ति जोसफ आयोग की रपट के आधार पर तो ई.अहमद को तुरन्त केन्द्रीय मंत्रिमंडल से निकाल देना चाहिए।
-वीरेन्द्र सिंह जरयाल
28ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)
अफजल समर्थकों को जेल भेजो
खजूरिया एस. कान्त की रपट “मैंने 42 हिन्दुओं को मारा उसके बाद गिनना छोड़ दिया” हिन्दुओं की दुर्दशा दर्शाती है। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का आतंकवादी बिट्टा ऐसी गर्वोक्ति करने के बाद भी न्यायालय से रिहा हो गया। स्पष्ट है कि राज्य सरकार ने उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं जुटाया। ऐसे में आतंकवाद कभी खत्म नहीं हो सकता। मेरे विचार से तो जो लोग अफजल को माफी की बात कर रहे हैं, उन्हें भी जेल में बन्द कर देना चाहिए।
-अभिजीत प्रिंस
इन्द्रप्रस्थ, मंझौलिया, मुजफ्फरपुर (बिहार)
सही क्या है?
कन्या भ्रूण हत्या के सन्दर्भ में श्रीमती शारदा सैनी के विचार महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने लिखा है कि “हाल ही में मेरे ससुर जी का निधन हुआ था। उनकी क्रिया पर पंडित जी गरुड़ पुराण की कथा सुना रहे थे कि माता-पिता के अन्तिम संस्कार तथा मरणोपरान्त होने वाले अन्य कर्मकाण्डों के लिए लड़का होना आवश्यक है…।” अब सवाल उठता है कि यह बात सच में गरुड़ पुराण में है या उसके किसी एक अंश को लेकर मनगढ़न्त व्याख्या की जा रही है। हमारे विद्वानों को इसकी सही जानकारी समाज को देनी चाहिए।
-बी.एल. सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट (नई दिल्ली)
एक ओर हमारे देश में कन्याओं की पूजा की जाती है, तो दूसरी ओर हम गर्भ में ही कन्याओं को मारने से भी परहेज नहीं करते। कन्या भ्रूण हत्या वास्तव में घोर पाप है। किसी भी क्षेत्र में महिलायें पुरुष से कम योग्यता नहीं रखतीं। देश की उन्नति में महिलाओं का भी उतना ही योगदान है जितना पुरुषों का। साथ ही, महिलाओं पर दो परिवारों की जिम्मेदारी होती है- मायका और ससुराल। कन्या भ्रूण हत्या के लिए यद्यपि दण्ड का प्रावधान है, फिर भी हत्याएं रुक नहीं रही हैं। यह अत्यन्त चिन्ता का विषय है। मैं समझता हूं कि जब तक समाज में जागरुकता नहीं आयेगी, विशेष रूप से महिलाओं में, तब तक कन्याओं की गर्भ में ही हत्या होती रहेगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिना मातृशक्ति के समाज अधूरा है।
-कुलदीप
190, रेलवे रोड, गाजियाबाद (उ.प्र.)
फिल्मों में भी “बाल श्रमिक”
10 अक्तूबर, 2006 से बाल श्रम वैधानिक दृष्टि से अपराध घोषित कर दिया गया है। इसका प्रभाव 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों की एक बड़ी संख्या पर पड़ना स्वाभाविक है। उल्लेखनीय है कि ये बच्चे विभिन्न कार्यों में अपने दैनिक जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संलग्न हैं परन्तु इस कानून के लागू हो जाने से ऐसा संभव नहीं होगा। ये बच्चे मजबूरीवश काम करते हैं। अगर इन्हें काम नहीं करने दिया जाएगा तो ये गलत रास्ते की ओर बढ़ सकते हैं। इसलिए ऐसे बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के बाद ही यह कानून लागू हो तो अच्छा है। वहीं यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि यह कानून धनी “बाल श्रमिकों”, जो टेलीविजन, फिल्मों एवं अन्य विज्ञापनों में बिना किसी आवश्यकता के निरन्तर कार्य करते दिखाई देते हैं, के बाल्यकाल का संरक्षण करेगा अथवा नहीं?
-रत्नत्र्तु: मिश्रा
एफ-13, किदवई नगर, कानपुर (उ.प्र.)
विशेष पत्र
अनाज सड़ रहा है, गरीब भूखों मर रहा है
सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के प्राणों की हर मूल्य पर रक्षा करे। कम से कम भूख के कारण तो किसी की मौत नहीं होनी चाहिए। एक अनुमान के अनुसार दुनिया में लगभग 2,940 लाख लोग कुपोषण के शिकार हैं। यह संख्या विश्वभर की जनसंख्या का एक तिहाई है। यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो बंगलादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका सहित भारत में 2,170 लाख लोग वर्ष 2015 तक भुखमरी के शिकार हो जाएंगे। वर्ष 2000 में भारत में 2,090 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था जबकि वर्ष 1993-94 में 1,840 लाख टन। किन्तु आज जब हम जनसंख्या में एक अरब का आंकड़ा पार कर चुके हैं तो क्या खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हैं? कठोर सत्य है कि नहीं, हम आत्मनिर्भर नहीं हैं। आज हम अनाज का अतिरिक्त उत्पादन तो कर रहे हैं किन्तु प्रत्येक भारतीय की भूख मिटाने में असफल हैं। अतिरिक्त खाद्यान्न के भण्डारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण वह नष्ट हो रहा है। सरकार के पास इतने गोदाम नहीं हैं कि वह खाद्यान्न का सही तरीके से भण्डारण कर सके। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में प्रतिवर्ष लाखों टन अनाज या तो सड़ जाता है या अन्य किसी कारण से नष्ट हो जाता है। एसोसियेटेड चैम्बर आफ कामर्स के अनुसार भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में 35 प्रतिशत अनाज पूरी तरह अखाद्य बन चुका है। प्रश्न उठता है कि जब अनाज इस तरह से सड़ रहा था तो उसे उन क्षेत्रों में क्यों नहीं भेजा गया, जो अकालग्रस्त थे? क्यों नहीं यह अनाज उड़ीसा, राजस्थान अथवा बिहार के उन क्षेत्रों में भेजा गया जहां लोगों के पास अनाज खरीदने के लिए पैसा नहीं है? क्यों नहीं “काम के बदले अनाज” जैसी योजनाएं सख्ती से लागू की जा रही हैं?
-कुमारी ज्योति पाल
बी-151, गायत्री नगर, मुरादाबाद (उ.प्र.)
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