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हिन्दुत्व के प्रतिमानों पर आघात का सिलसिला जारीपहले सावरकर, फिर शंकराचार्यऔर अब आडवाणी पर कीचड़ उछालासोनिया-सुरजीत राज में यह जो हो रहा हैक्या वह किसी अन्य सरकार के राज में संभव था?अभी शंकराचार्य पर आरोपों का हर दिन गंदलाया जाता सिलसिला थमा नहीं था कि लालू यादव ने श्री लालकृष्ण आडवाणी की तलाकशुदा पूर्व पुत्रवधू गौरी सभरवाल को मोहरा बना कर उन पर घृणित आरोप उछाले और लालू समर्थकों ने पटना में जहां श्री आडवाणी के पुतले पर सरेआम बाजार में बंदूक से गोलियां दागीं वहीं लोकसभा के पहले दिन लालू के सांसदों ने इस मामले को बेहद निर्लज्जता के साथ उछाला। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रकटतया लालू को “समझाने” की कोशिश की लेकिन लालू ने सोनिया-सुरजीत राज में अपने घृणित राजनीतिक व्यवहार को बिना किसी डर के प्रकट तो कर ही दिया।गौरी सभरवाल श्री लालकृष्ण आडवाणी के पुत्र जयंत से विवाह के कुछ ही समय बाद 1994 में लंदन चली गई थीं, जहां वह एक वकालत की फर्म में काम करने लगीं। दो वर्ष पूर्व गौरी का जयंत के साथ कानूनी तलाक हो गया और जयंत ने नई गृहस्थी बसा ली। इस बीच, गौरी ने श्री आडवाणी को अनेक पत्र लिखे जिनमें उनकी श्रद्धापूर्वक प्रशंसा की गई। जब वे गृहमंत्री बने तो गौरी ने लिखा कि-“आपके शपथग्रहण समारोह में आ पाती तो वह मेरे लिए गौरव और खुशी का अवसर होता।” गौरी सभरवाल जयंत आडवाणी से अलग होने के बाद भी अपने नाम के साथ आडवाणी नाम जोड़ती रहीं और अपनी फर्म के लिए व्यापारिक सौदे पाने हेतु इस प्रकार के पत्र लिखती रहीं कि जिनमें कहा जाता था कि वह आडवाणी जी की एकमात्र पुत्रवधू हैं। उस गौरी सभरवाल को अचानक लंदन से दिल्ली किसने बुलाया यह सब जानते हैं। गत 27 नवंबर को गौरी अचानक प्रेस क्लब में पत्रकारों से मिलीं और उन्हें हाथ से लिखी एक चिठ्ठी की प्रतियां दीं जो पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और रा. स्व. सं. के सरसंघचालक श्री कुप्. सी सुदर्शन जी को संबोधित की गई थीं और जिनमें इस प्रकार के घृणित आरोप लगाए गए थे कि जिनके बारे में लिखते हुए भी शर्म आए।उल्लेखनीय है कि पत्रकारों को यहां रेल मंत्रालय के प्रचार प्रभारी उर्फ लालू यादव के सलाहकार ने फोन करके बुलाया था और कहा था कि वे जरूर आएं, उन्हें एक धमाकेदार खबर मिलेगी। हालांकि घोर भाजपा विरोधी द हिंदू, स्टेट्समैन, हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अंग्रेजी अखबारों ने गौरी के उस पत्र को महत्व देना स्वीकार नहीं किया और उसके बारे में कुछ नहीं लिखा परंतु कुछ अखबारों ने पत्रकारिता के तमाम मापदंडों को धता बता कर इस मामले को छापा।उल्लेखनीय है कि सोनिया गांधी के बारे में जार्ज फर्नांडीस और सुब्राहृण्यम स्वामी तथ्यों सहित भी कुछ बातें कहते हैं तो उसे दबा दिया जाता है। श्री आडवाणी पर उछाले गए घृणित आरोपों के संदर्भ में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सकारात्मक भूमिका की बात जरूर की जानी चाहिए लेकिन उसका अर्थ क्या निकलता है? लालू यादव कभी आडवाणी जी पर 1947 में हुई जिन्ना की हत्या का आरोप मढ़ते हैं, एक ऐसा आरोप जो कभी पाकिस्तानी भी नहीं लगाते। तो कभी बाबरी ढांचे के ढहाने में आडवाणी जी की भूमिका को लेकर विदेशी पत्रिका टाइम्स के संवाददाताओं की गवाही की मांग करते हैं। यह स्थिति साफ बताती है कि सोनिया-सुरजीत राज में हिंदुत्व के प्रतिमानों की चरित्र हत्या का अनियंत्रित सिलसिला चल पड़ा है। लोग पूछते हैं कि क्या यह अन्य सरकार के होते हुए संभव हो सकता था?-प्रतिनिधि14
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