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सुनो कहानी
रत्न-जटित तकिया
लगभग 450 वर्ष पहले की बात है। दिल्ली में एक हिन्दू दर्जी था। उसकी निपुणता पूरे नगर में प्रसिद्ध थी। उसका नाम था, परमेष्ठी। वह भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था। दिल्ली के तत्कालीन मुगल बादशाह ने उसकी ख्याति सुनकर उससे दो तकिए बनवाने के लिए कीमती मखमल, सोने के तार और हीरे-मोती दिए। उन तकियों को बादशाह अपने सिंहासन पर रखने वाला था। परमेष्ठी तकिए तैयार करके बादशाह को देने चला, पर रास्ते में उसे श्रीकृष्ण का ध्यान आया और वह सब कुछ भूल गया। उसे लगा कि भगवान श्रीकृष्ण सामने ही खड़े हैं। उसे लगा कि इन सुन्दर तकियों में से एक तकिया क्यों न अपने प्रभु को समर्पित कर दे। उसी समय उड़ीसा में जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकल रही थी। परमेष्ठी दर्जी वर्षों पहले एक बार स्वयं जगन्नाथपुरी उन्हीं दिनों गया भी था, जिन दिनों वहां बड़े समारोह के साथ भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकलती है। परमेष्ठी वह दृश्य देखकर भाव-विभोर हो उठा था। उसने देखा कि जगन्नाथपुरी में जिस यात्रा के रथ के आगे मखमली वस्त्र बिछाए जा रहे थे, लेकिन एक जगह रथ के दबाव से पथ में बिछाया गया वस्त्र फट गया। यह देखकर परमेष्ठी ने अपना एक तकिया मन ही मन जगन्नाथ जी को अर्पित कर दिया। रथ आगे बढ़ते-बढ़ते दूर निकल गया। कोलाहल समाप्त होने पर परमेष्ठी को देह-दशा का भान हुआ। वह बादशाह के दरबार की ओर फिर से चल पड़ा। दरबार में जाकर परमेष्ठी ने जब बादशाह को सिर्फ एक ही तकिया दिया, तो वह आग बबूला हो उठा, पूछा- दूसरा तकिया कहां है? तो परमेष्ठी ने कहा “मैंने वह प्रभु जगन्नाथ जी को भेंट कर दिया”। बादशाह ने इसे उसकी चाल समझकर उसे हथकड़ी-बेड़ी से कसकर कारागार में कैद करा दिया। भजन ध्यान में मग्न रहा। रात में उसे नींद में पता ही न चला कि उसकी हथकड़ी, कब टूटकर अलग हो गई और कारागार के द्वार का ताला भी टूटकर धरती पर जा गिरा, लेकिन वह वहां से निकला नहीं। उधर रात में ही बादशाह को सपने में किसी भयंकर चेहरे वाले आदमी ने डंडे से इतना मारा -पीटा कि वह जागकर चिल्लाने लगा। उसने सुना कि कोई गुस्से में कह रहा था कि तूने उस सच्चे आदमी को कैद कर रखा है जिसने कोई तकिया नहीं चुराया। वह कारागार गया तो देखा कि द्वार खुला है। हथकड़ी-टूटी पड़ी है और परमेष्ठी आंखें बंद किए किसी ध्यान में खोया है। बादशाह ने परमेष्ठी से अपने किए की माफी मांगी और उसे साथ ले जाकर वस्त्राभूषणों से सजाया। हाथी पर बैठाकर बहुत-सा धन भेंटकर उसे घर भेजा।
-मानस त्रिपाठी
बूझो तो जानें
प्यारे बच्चों! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?
झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-
केरल में अवतार लिया, शंकर था उनका नाम, भारत के चारों कोनों में स्थापित कीन्हें धाम।
इन चारों की यात्रा से तुम जीवन सफल बनाना, पर जाने से पहले उनका नाम हमें बताना
उत्तर : (बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारिका रामेश्वरम्)
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