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RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 साल की यात्रा और उसके पाँच ऐतिहासिक जनसंपर्क अभियानों ने कैसे समाज में संघ की स्वीकार्यता को मजबूत किया, जानिए उन जनसंपर्क अभियानों की उपलब्धियां

by कृष्ण कुमार, उत्तर क्षेत्र सेवा प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
Jul 12, 2025, 10:00 pm IST
in भारत, संघ

भारत का राष्ट्रवादी स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 विजयदशमी के दिन नागपुर में आरएसएस की नींव रखी गई थी। एक छोटे से बीज रूप में शुरू हुए इस संगठन ने शताब्दी भर में अनेक उतार-चढ़ाव देखे और आज यह देश का प्रमुख और सतत बढ़ता हुआ सामाजिक आंदोलन बन चुका है। संघ ने शुरू से ही व्यक्ति-व्यक्ति संपर्क, सेवा कार्य और सामाजिक जागरण को अपना प्रमुख उपकरण बनाया। सौ वर्षों की इस विकास यात्रा में समय-समय पर कुछ विशिष्ट जनसंपर्क अभियान चलाए गए, जिनकी बदौलत संघ का विस्तार और समाज में स्वीकार्यता तेज़ी से बढ़ी। इन अभियानों ने राष्ट्र जागरण, सामाजिक समरसता और संगठनात्मक शक्ति को नए आयाम दिए। प्रस्तुत लेख में हम संघ की विकास यात्रा के ऐसे पाँच महत्वपूर्ण जनसंपर्क अभियानों की उपलब्धियों पर प्रकाश डालेंगे, जिन्होंने संघ के कार्य को समाज के कोने-कोने तक पहुंचाया और जिनके आधार पर आज शताब्दी वर्ष का छठा महाअभियान आकार ले रहा है।

1985 : साठवाँ वर्ष एवं व्यापक जनसंपर्क अभियान

1985 का वर्ष संघ के इतिहास में एक अहम पड़ाव था, जब संघ ने अपनी स्थापना के 60 वर्ष पूरे किए। इस अवसर पर पूरे देश में जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया गया। स्वयंसेवकों ने शहरों से लेकर दूरदराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों तक समाज के हर वर्ग से संवाद स्थापित किया। इस राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत संघ कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर संगठन का संदेश पहुंचाया और अधिकाधिक लोगों को संघ के विचारों से जोड़ने का प्रयास किया।

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इससे पूर्व 1980 में भी संघ ने एक महा जनसंपर्क किया था, जिसमें 95,000 गांवों के एक करोड़ परिवारों तक सीधा संपर्क स्थापित किया गया था। 1985 के संपर्क अभियान ने इस पहल को और व्यापक बनाते हुए संघ के कार्यों के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाई। देशव्यापी कार्यक्रमों, सभाओं और संपर्क यात्राओं के माध्यम से संघ ने जनता के बीच अपनी मौजूदगी मज़बूत की और संगठन के प्रति विश्वास का दायरा विस्तृत किया। यह अभियान संघ के विस्तार की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने भविष्य के अभियानों की नींव रखी।

1989 : डॉ. हेडगेवार जन्मशताब्दी वर्ष का संपर्क एवं सेवा अभियान

1989 में संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर 1988-89 में एक वृहद जनसंपर्क अभियान चलाया गया, जिसने अभूतपूर्व सफलताएं दर्ज कीं। संघ स्वयंसेवकों ने ग्राम, नगर से लेकर महानगरों तक व्यापक जनसंपर्क करते हुए लगभग 76,000 सभाएं कीं और 15 करोड़ लोगों तक सीधा संपर्क स्थापित किया। यह संघ के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा जनसंपर्क प्रयास था, जिसके जरिये करोड़ों लोगों को डॉ. हेडगेवार के जीवनदर्शन और संघ के लक्ष्य से अवगत कराया गया। संघ ने इस अभियान के दौरान समाज सेवा कार्यों के लिए 11 करोड़ रुपए का निधि संग्रह भी किया। इस धनराशि से डॉ. हेडगेवार स्मारक सेवा समिति द्वारा विभिन्न सेवा प्रकल्प चलाए गए। जन्मशताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों ने न सिर्फ लोगों को संघ के आदर्शों से जोड़ने का काम किया, बल्कि सेवा के माध्यम से संघ की छवि एक परोपकारी सामाजिक संगठन के रूप में भी मजबूत की। 1989 का यह अभियान संघ की विचारधारा के प्रसार और संगठनात्मक शक्ति को नई ऊंचाइयों पर ले गया। करोड़ों देशवासियों ने प्रथम सरसंघचालक को श्रद्धांजलि देते हुए राष्ट्रनिर्माण में सहभागिता का संकल्प लिया, जिससे संघ की जनस्वीकृति और बढ़ी।

2001 : 75वाँ वर्ष – राष्ट्र जागरण अभियान

सहस्राब्दी के आरंभ में संघ ने अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर राष्ट्रव्यापी राष्ट्र जागरण अभियान संचालित किया। वर्ष 2000-2001 के इस अभियान का उद्देश्य संघ का संदेश हर घर तक पहुँचाना था। संघ के 75वें वर्ष-पूर्ती समारोहों को व्यापक जनसंपर्क के रूप में मनाया गया, जिसमें स्वयंसेवकों ने घर-घर संपर्क कर संघ के कार्य एवं विचार समझाए। इस दौरान विविध रैलियां, पथ संचलन, संगोष्ठियाँ और सम्मेलनों का आयोजन हुआ। विजयादशमी 2000 से गुरुपूर्णिमा 2001 तक चले इस अभियान में देश भर के लाखों स्वयंसेवकों ने भाग लेकर संघ विचारधारा का प्रसार किया।

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जयपुर में “राष्ट्र शक्ति संगम” नाम से विशाल पथ संचलन आयोजित हुआ जिसमें 51,000 गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने सहभागिता की। इसी प्रकार अलग-अलग प्रांतों में भारत माता पूजा, संगठित गांव यात्राओं जैसे कार्यक्रम चले। हालाँकि 26 जनवरी 2001 को आए विनाशकारी गुजरात भूकंप के कारण संगठन को सेवा कार्यों में जुटना पड़ा, फिर भी स्वयंसेवकों ने राहत सेवाओं के साथ-साथ अभियान की गति को जीवित रखा। राष्ट्र जागरण अभियान ने समाज में देशभक्ति और एकता की भावना को प्रज्वलित किया। इस जनसंपर्क पहल के फलस्वरूप संघ के प्रति नए वर्गों में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हुआ और संगठनात्मक विस्तार को प्रोत्साहन मिला।

2006 : श्री गुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष में सामाजिक समरसता के आयोजन

परम पूज्य श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) संघ के द्वितीय सरसंघचालक थे, जिनका दर्शन संघ के वैचारिक अधिष्ठान का आधार है। 2006 में उनके जन्म का शताब्दी वर्ष संघ ने महत्त्वपूर्ण सामाजिक आयोजनों के साथ मनाया। इस अवसर पर खंड (ब्लॉक) स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक “हिंदू सम्मेलन” और समरसता सभाओं की श्रंखला आयोजित की गई। देशभर में विभिन्न स्थानों पर हिंदू समाज के बड़े-बड़े समागम हुए, जिनमें समाज के सभी वर्गों, जातियों एवं मत-पंथों के लोगों ने सहभागिता की। पूरे वर्ष चले इन आयोजनों में लगभग 1 करोड़ 60 लाख समाजजन शामिल हुए, 13,000 संतों एवं 1,80,000 सामाजिक नेताओं ने भाग लिया। 2006 के दौरान गाँव-गाँव, खंड-खंड में आयोजित समरसता बैठकों ने समाज में फैले भेदभाव को मिटाने और एकता का संदेश देने का काम किया।

इस महाअभियान का भव्य समापन 2007 की शुरुआत में दिल्ली में एक विशाल हिंदू सम्मेलन के रूप में हुआ, जहाँ देशभर से आए स्वयंसेवकों और श्रद्धालुओं ने गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री गुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष के आयोजनों ने संघ को गाँव, कस्बे तक पहुंचाने के साथ हिंदू समाज में समरसता का वातावरण बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों ने संघ के कार्य का व्यापक प्रसार किया और समाज के हर तबके से लोगों को जोड़कर यह प्रदर्शित किया कि संगठन की जड़ें जन-जन में कितनी गहरी हैं।

2012 : स्वामी विवेकानंद सार्धशती – परिवर्तन की प्रेरणा

2012 में संघ ने महान आध्यात्मिक राष्ट्रनायक स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती (सार्धशती वर्ष) को व्यापक स्तर पर मनाया। इस अवसर पर एक विशाल राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया गया, जिसका उद्देश्य विवेकानंद के विचारों को युवाओं समेत समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचाना था। यह अभियान संघ ने अपने सहयोगी संगठनों और अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं के साथ मिलकर संचालित किया। विवेकानंद केंद्र, रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, चिन्मय मिशन, स्वामीनारायण संस्था, जैन समुदाय आदि अनेकों संगठनों ने मिलकर इस महाअभियान में सहभागिता की।

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जनवरी 2012 से जनवरी 2013 तक देश के कोने-कोने में seminars, यात्राएं, युवा सम्मेलन, प्रदर्शनी, प्रतियोगिताएं आदि आयोजित की गईं, जिन्होंने स्वामीजी के संदेश को हर नगर और ग्राम तक प्रसारित किया। इस अभूतपूर्व समन्वित प्रयास में विद्यालयों-कॉलेजों के युवा, प्रबुद्ध वर्ग (वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, सेवानिवृत्त न्यायाधीश आदि) से लेकर ग्रामीण एवं आदिवासी समाज तक, सभी को शामिल किया गया। स्वामी विवेकानंद के उद्बोधनों, चरित्र निर्माण, स्त्री-उत्थान, ग्रामीण विकास जैसे विचारों पर विशेष कार्यक्रम चलाए गए।

इस अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि समाज के हर तबके ने, पार्टी, जाति, संप्रदाय की सीमाएं तोड़कर, विवेकानंद को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लिया। कहा जाता है कि यह संघ की विकास यात्रा का एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इस अभियान के बाद देशभर में अनुकूल वातावरण बन गया, लोगों की सोच में राष्ट्रवादी परिवर्तन दिखाई देने लगा और सामाजिक-राजनैतिक जीवन में एक नयी जागृति की लहर दौड़ पड़ी। वस्तुतः 2012-13 का यह विवेकानंद सार्धशती अभियान पिछले सभी प्रयासों का सौवां प्रहार सिद्ध हुआ, जिसने समाज की चेतना को झकझोर कर सकारात्मक परिवर्तन की नींव रखी।

2025 : शताब्दी वर्ष का छठा महाअभियान

अब 2025 में संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है और इस ऐतिहासिक मौके को संघ एक महान जनसंपर्क एवं विस्तार अभियान के रूप में मना रहा है। संघ का स्पष्ट मत है कि ऐसे अवसर उत्सव मनाने के साथ-साथ आत्मचिंतन व पुनःसमर्पण के लिए होते हैं। वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के मार्गदर्शन में शताब्दी वर्ष को समाज-समाज तक संघ का संदेश पहुंचाने हेतु योजनाबद्ध किया गया है। जुलाई 2025 में दिल्ली में संपन्न अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक में शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय हुई। तय किया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मंडल स्तर और शहरी क्षेत्रों में बस्ती स्तर पर विशाल हिंदू सम्मेलनों का आयोजन किया जाएगा, जिनमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित होगी। इन सम्मेलनों के केंद्र में सामाजिक एकता और सद्भाव, उत्सवों के सांस्कृतिक पहलू तथा “पंच परिवर्तन” (पांच सूत्रीय परिवर्तन) जैसे विषय रहेंगे। साथ ही 11,360 खंडों/नगरों में सामाजिक सद्भाव बैठकें आयोजित की जाएंगी, ताकि समाज में समरसता और एकात्मता का संदेश गहरा उतरे।

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संघ ने यह भी निर्णय लिया है कि शताब्दी वर्ष में एक व्यापक घर-घर संपर्क (गृह संपर्क) अभियान चलेगा, जिसमें प्रत्येक गांव और बस्ती के अधिकतम घरों तक स्वयंसेवक पहुँचकर संपर्क करेंगे। संघ का लक्ष्य है कि हर पेशे, हर भूभाग और हर समुदाय के बीच पहुँच बनाकर समग्र सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा दिया जाए। विजयदशमी 2025 से शुरू होकर विजयदशमी 2026 तक चलने वाले इस शताब्दी समारोह काल में संघ अपना मूल कार्य – चरित्रनिर्माण व संगठन विस्तार – तेज़ गति से आगे बढ़ा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, संगठन ने पहले ही पिछले एक वर्ष में 10,000 से अधिक नई शाखाओं का प्रारंभ करके अपनी जड़ों को और गहरा किया है। शताब्दी वर्ष के दौरान 58,000 से अधिक मंडलों और 44,000 से अधिक बस्तियों में होने वाले आयोजन संघ कार्य को हर गली-मोहल्ले तक ले जाने का माध्यम बनेंगे। यह छठा महाअभियान संघ की पिछली पांच विकास यात्राओं का तार्किक विस्तार है, जिसका उद्देश्य “हर घर संघ, हर मन संघ” की भावना को साकार करना है।

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अंतत हम यह कह सकते है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौ वर्ष की यात्रा इन जनसंपर्क अभियानों से अभिप्रेरित रही है जिन्होंने संगठन को देशव्यापी विस्तार और समाज में व्यापक स्वीकार्यता दिलाई। 1985 से 2012 तक के अभियानों ने जहां करोड़ों भारतवासियों को संघ के विचार से जोड़ा, वहीं समाज को सेवा, समरसता और राष्ट्रभक्ति के सूत्र में पिरोया। इन अभियानों की बदौलत संघ एक नगण्य बीज से विशाल वटवृक्ष बना जिसकी छाया तले अनेक आनुषंगिक संगठन और सेवा कार्य फल-फूल रहे हैं। आज शताब्दी वर्ष का अभियान इन पूर्ववर्ती प्रयासों की विरासत को आगे बढ़ाते हुए संघ के “विस्तार एवं विकास” के नए अध्याय लिखने को उद्धत है। लक्ष्य है एक संगठित, आत्मविश्वासी एवं सशक्त भारत का निर्माण, जिसमें “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना के साथ देशवासी कंधे से कंधा मिलाकर परम वैभवशाली राष्ट्र के निर्माण में जुटें। संघ के पिछले पाँच जनसंपर्क अभियानों की गौरवगाथा यह दिखाती है कि संगठित और सतत प्रयासों से जनमन को जीता जा सकता है और राष्ट्रहित में अभूतपूर्व परिवर्तन लाए जा सकते हैं। शताब्दी वर्ष का महाअभियान इसी सूत्र को आगे बढ़ाते हुए अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर है – यह केवल संघ के लिए ही नहीं, अपितु पूरे राष्ट्र के लिए एक नए युग की शुरुआत का संकेत है।

(यह लेखक के अपने निजी विचार है)

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