भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों अमेरिका में हैं। वे वहां क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने गए हैं। इस मौके पर न्यूजवीक पत्रिका के कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने भारत की आतंकवाद के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” नीति को न सिर्फ विस्तार से सामने रखा बल्कि विश्व को इस नासूर के खतरों से भी परिचित कराया। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि जीरो टॉलेंस नीति भारत की आंतरिक सुरक्षा नीति का प्रतिबिंब है, यह वैश्विक मंचों पर भारत की कूटनीतिक स्थिति को भी स्पष्ट करता है। उन्होंने कहा कि भारत को अपने लोगों की सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है और वह इस अधिकार का प्रयोग करता रहेगा। अर्थात भारत किसी के दबाव में आकर भारत में पाकिस्तान के प्रायोजित आतंकवाद को किसी भी प्रकार बख्शने के मूड में नहीं है।
इसमें संदेह नहीं है कि भारत दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है—चाहे वह 26/11 का मुंबई हमला हो, पुलवामा की घटना या जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकी हमले हों। इन सब जिहादी कृत्यों के पीछे पाकिस्तान की भारत के विरुद्ध परोक्ष युद्ध करते रहने की राज्य नीति ही है। ऐसी ही जिहादी घटनाओं ने भारत को आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया है और मोदी सरकार की यह नीति असरदार साबित हो रही है। जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं में अत्यंत कमी आई है, घाटी के पत्थरबाजों पर प्रभावी लगाम लगी है और कश्मीर विकास की राह चल रहा है। जम्मू कश्मीर को लेकर भारत की ओर से अब बस एक ही काम बचा है और वह है पाकिस्तान के कब्जे वाले इस प्रदेश के हिस्से को वापस लेकर देश को पुन: अखंड बनाना। इसीलिए अब भारत किसी भी प्रकार के आतंकवाद के प्रति कोई सहानुभूति दिखाने या समझौता करने को तैयार नहीं है।
1990 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद के उभार के बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। 2001 में संसद पर हमले के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग की मांग तेज की थी। फिर साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक भारत की सक्रिय सुरक्षा नीति के उदाहरण प्रस्तुत करन गई थीं।

विदेश मंत्री जयशंकर का उक्त बयान स्पष्ट संदेश देता है कि भारत पाकिस्तान और उसके सहयोगी जिहादी मानसिकता के देशों के प्रति किसी भी प्रकार की उदारता नहीं दिखाने वाला है और विश्व में उनके कारनामे उजागर करके रहने वाला है। जयशंकर ने कल उस साक्षात्कार में कहा, “हम अपने लोगों की रक्षा का अधिकार रखते हैं। भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपने नागरिकों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है और हम इस अधिकार का प्रयोग करना जारी रखेंगे।”
बेशक, जयशंकर ने इस बयान के माध्यम से भारत की ओर से तीन स्पष्ट संदेश दिए हैं। एक, भारत अपनी सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। दो, भारत चाहता है कि उसके सहयोगी देश, विशेषकर क्वाड समूह के सदस्य देश, उसकी सुरक्षा चिंताओं को समझें और समर्थन दें। और तीन, भारत ने साफ जता दिया है कि आतंकवाद के प्रति वैश्विक नीति में बदलाव की आवश्यकता है। जयशंकर ने यह भी कहा कि पीड़ितों और अपराधियों के बीच नैतिक समानता का तर्क नहीं दिया जाना चाहिए।
भारत का यह रुख केवल घरेलू सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का भी हिस्सा है। क्वाड जैसे मंचों पर भारत की सक्रियता यह दर्शाती है कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। चीन की विस्तारवादी सोच से उपजी आक्रामकता और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति भारत की यह नीति दृढ़ता का संदेश देती है। क्वाड के अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ सहयोग भारत को रणनीतिक बढ़त देता ही है।
जयशंकर के उक्त बयान से यह बात भी साफ उभर कर आती है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ सख्ती के साथ-साथ आर्थिक विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों को भी प्राथमिकता देता है। भारत संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों के खिलाफ लगातार आवाज उठाता रहा है। साथ ही, भारत ने हाल के वर्षों में अपनी खुफिया, साइबर सुरक्षा और सैन्य क्षमताओं को काफी मजबूत किया है।
जयशंकर के इस संदेश को केवल एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं माना जा सकता, इसके उलट यह भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा रणनीति का हिस्सा स्पष्ट करता है। यह बताता है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करेगा, बल्कि सक्रिय रूप से आतंकवाद के स्रोतों को समाप्त करने की दिशा में काम करेगा। साथ ही, यह बयान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह याद दिलाता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल एक देश की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की जिम्मेदारी है।
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