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शासकों को खुश करने के लिए लिखे गए इतिहास से निजात पाने का समय आ गया : अमित शाह

अमित शाह ने कहा, “मैं देश के इतिहासकारों से अपील करता हूं कि वे हमारे हजारों साल पुरानी संस्कृति के इतिहास को तथ्यों और प्रमाणों के साथ लिखें और उसे गर्व के साथ दुनिया के सामने पेश करें।”

by WEB DESK
Jan 2, 2025, 10:39 pm IST
in भारत
अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री

अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री

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नई दिल्ली (हि.स.)। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को देश के इतिहासकारों से भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति के इतिहास को तथ्यों और प्रमाणों के साथ लिखने का आह्वान करते हुए कहा कि अब शासकों को खुश करने के लिए लिखे इतिहास से निजात पाने का समय आ गया है।

अमित शाह आज दिल्ली के डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में `जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख : सातत्य और संबद्धता का ऐतिहासिक वृतांत’ पुस्तक के हिन्दी और अंग्रेजी संस्करण का विमोचन करने के बाद संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इतिहास बहुत व्यापक और कटु होता है। 150 साल का एक कालखंड ऐसा था जब इतिहास का मतलब दिल्ली दरीबा से बल्लीमारान तक और लुटियन से जिमखाना तक सीमित था। उन्होंने कहा कि इतिहास यहां बैठकर नहीं लिखा जाता है। शाह ने कहा कि शासकों को खुश करने के लिए लिखे गये इतिहास से निजात पाने का समय अब आ गया है।

अमित शाह ने कहा, “मैं देश के इतिहासकारों से अपील करता हूं कि वे हमारे हजारों साल पुरानी संस्कृति के इतिहास को तथ्यों और प्रमाणों के साथ लिखें और उसे गर्व के साथ दुनिया के सामने पेश करें।” उन्होंने कहा कि इतिहासकारों ने जो किया वो किया लेकिन अब हमें कौन रोक सकता है? देश आजाद है और देश के विचारों के अनुसार सरकार चल रही है। अब हमारा काम है कि हम तथ्यों और प्रमाणों के साथ अपने दृष्टिकोण से देश का प्रतिनिधित्व करें।

कश्मीर से भारत के जुड़ाव के प्रश्न को बेमानी बताते हुए शाह ने कहा कि इस पुस्तक से ये बात सिद्ध हो गई है कि भारत के कोने-कोने में मौजूद संस्कृति, भाषा, लिपि, आध्यात्मिक विचार, तीर्थ स्थलों की कला, व्यापार और वाणिज्य पिछले 10 हजार साल से कश्मीर में उपस्थित था और वहीं से देश के बहुत से हिस्सों में पहुंचा। उन्होंने कहा कि जब एक ग्रंथ कश्मीर और झेलम की बात करते हैं तो कोई नहीं कह सकता कि कश्मीर किसका है। उन्होंने जोर देकर कहा, “कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग पहले भी था, आज भी है और हमेशा रहेगा। इसको कोई कानून की धाराओं से अलग नहीं कर सकता।”

शाह ने औपनिवेशिक शासन के दौरान प्रचारित मिथकों को चुनौती देते हुए एक भू-सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में भारत की अनूठी पहचान पर प्रकाश डाला और कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो एक भू-सांस्कृतिक देश है और इसकी सीमाएं संस्कृति के कारण परिभाषित होती हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी, गांधार से ओडिशा तक और बंगाल से लेकर गुजरात तक हम अपनी संस्कृति के कारण जुड़े हुए हैं।

उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में सभी तथ्यों को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। पुराने मंदिरों के खंडहरों में मौजूद कलाकृतियां यह सिद्ध करती हैं कि कश्मीर भारत का ही हिस्सा है। नेपाल से लेकर अफ़गानिस्तान तक की बौद्ध यात्रा का भी कश्मीर अभिन्न अंग है। बौद्ध धर्म से लेकर ध्वस्त मंदिरों तक, संस्कृत के प्रयोग तक, महाराजा रणजीत सिंह के शासन से लेकर डोगरा शासन तक, 1947 के बाद हुई गलतियों और उनके सुधार तक, 8 हजार साल का पूरा इतिहास इस पुस्तक में समाहित है।

इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि लंबे समय से देश में चल रहे मिथक को इस पुस्तक के माध्यम से तथ्यों और प्रमाणों के साथ तोड़ कर सत्य को ऐतिहासिक दृष्टि से स्थापित करने का काम किया गया है।

पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते अमित शाह।

अनुच्छेद 370 और 35-ए, वो अनुच्छेद थे जो कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने में बाधा डालते थे। प्रधानमंत्री मोदी के दृढ़ संकल्प ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया। इससे देश के बाकी हिस्सों के साथ-साथ कश्मीर का भी विकास शुरू हुआ। अनुच्छेद 370 ने घाटी में अलगाववाद के बीज बोए जो बाद में आतंकवाद में बदल गए। अनुच्छेद 370 ने एक मिथक फैलाया कि कश्मीर और भारत के बीच संबंध अस्थायी है। दशकों तक वहां आतंकवाद था और देश देखता रहा। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद आतंकवाद 70 प्रतिशत कम हो गया है। कांग्रेस हम पर जो चाहे आरोप लगा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने 80,000 करोड़ रुपये का पैकेज जारी किया। हमने न केवल आतंकवाद को नियंत्रित किया, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में सरकार ने घाटी से आतंक के इको-सिस्टम को भी ध्वस्त कर दिया।

उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री मोदी को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाकर कश्मीर की भाषाओं को नया जीवन देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा है कि कश्मीर में बोली जाने वाली हर भाषा को महत्व दिया जाना चाहिए और उसे शामिल किया जाना चाहिए। यह साबित करता है कि किसी भी देश का प्रधानमंत्री देश की भाषाओं के प्रति कितना संवेदनशील हो सकता है।

इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के अध्यक्ष प्रो. राघवेंद्र तंवर और नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) के अध्यक्ष मिलिंद मराठे आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।

Topics: #kashmirकश्मीरअमित शाहAmit Shahइतिहासhistory
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