क्या है पितृपक्ष, कैसे किया जाता है तर्पण, क्यों है हिंदू धर्म में इतना महत्व
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क्या है पितृपक्ष, कैसे किया जाता है तर्पण, क्यों है हिंदू धर्म में इतना महत्व

पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितरों के संतुष्ट होने से परिवार में समृद्धि बनी रहती है।

by Masummba Chaurasia
Sep 19, 2024, 11:37 am IST
in धर्म-संस्कृति
पितृपक्ष : पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का समय

पितृपक्ष : पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का समय

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पितृपक्ष हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और पवित्र अवधि है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विशेष कर्मकांड और पूजा करते हैं। यह अवधि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा के बाद शुरू होती है और अश्विन मास की अमावस्या तक चलती है। पितृपक्ष को श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें पितरों को तर्पण और पिंडदान कर उन्हें संतुष्ट किया जाता है।

पितृपक्ष का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि जिन पूर्वजों का विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं किया गया होता है, उनकी आत्माएं मोक्ष प्राप्त नहीं कर पातीं और उन्हें तृप्ति की आवश्यकता होती है। पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितरों के संतुष्ट होने से परिवार में समृद्धि बनी रहती है।

पितृपक्ष के अनुष्ठान

श्राद्ध में प्रमुख रूप से पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज का आयोजन किया जाता है। पिंडदान के द्वारा मृतकों को आहार दिया जाता है और तर्पण से पितरों को जल अर्पित किया जाता है। तर्पण मुख्य रूप से जल, चावल, दूध और काले तिल से किया जाता है। इन अनुष्ठानों के बाद ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है। इसे पितरों का भोज माना जाता है और इसे पितरों की तृप्ति के लिए आवश्यक माना जाता है।

श्राद्ध करने के नियम

श्राद्ध का आयोजन परिवार के सबसे बड़े पुत्र या पुरुष सदस्य द्वारा किया जाता है। श्राद्ध उस तिथि पर किया जाता है, जिस दिन संबंधित पूर्वज की मृत्यु हुई हो। अगर उस दिन श्राद्ध करना संभव न हो, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना अनिवार्य माना जाता है, क्योंकि यह दिन सभी पितरों के श्राद्ध के लिए विशेष होता है।

पितृपक्ष के दौरान सावधानियां

पितृपक्ष के दौरान धार्मिक और शास्त्रीय नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। इस अवधि में शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश या नए व्यापार की शुरुआत को अशुभ माना जाता है। इसके अलावा, साधारण और सात्विक आहार का सेवन करने की परंपरा है, जिसमें मांस-मदिरा का त्याग किया जाता है।

पितृपक्ष का सामाजिक और आध्यात्मिक पहलू

पितृपक्ष सिर्फ धार्मिक कर्मकांड का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक एकजुटता का प्रतीक भी है। इस दौरान परिवार के सभी सदस्य एकत्र होकर पितरों की याद में कर्मकांड करते हैं। साथ ही, यह आत्मविश्लेषण और कृतज्ञता व्यक्त करने का समय भी है। व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर, उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।

पितृपक्ष के इस पवित्र समय में श्रद्धा और समर्पण के साथ किए गए अनुष्ठान न सिर्फ पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं, बल्कि परिवार को भी आध्यात्मिक लाभ और मानसिक संतोष की प्राप्ति होती है। और पितरों का आशीर्वाद सदैव के लिए अपने परिवारजनों के ऊपर बना रहता है।

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Topics: तर्पणश्राद्धपाञ्चजन्य विशेषपितृपक्ष हिंदू धर्मपुरखे
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