ई-उपवास : रियल जिंदगी को कहें 'हाय', रील लाइफ को कहें 'बाय'
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ई-उपवास : रियल जिंदगी को कहें ‘हाय’, रील लाइफ को कहें ‘बाय’

दरअसल यह पीढ़ी उस दौर से गुजर रही है, जहां हर व्यक्ति के हाथ में दो-दो मोबाइल फोन और सिमकार्ड हैं। लैपटॉप है और टैब भी।

by Sudhir Kumar Pandey
Aug 11, 2024, 04:24 pm IST
in भारत, जीवनशैली
मोबाइल फोन का उतना ही उपयोग करें, जितना जरूरी हो

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पटियाला में भाखड़ा नहर के पास 2 बच्चे रील बना रहे थे। एक की उम्र 14 साल और दूसरे की 17 साल थी। एक बच्चा रील बनाने के लिए भाखड़ा नहर में उतरा। पानी का बहाव तेज था तो वह डूबने लगा। इस पर दूसरा बच्चा भी उसे बचाने के लिए कूद गया। दोनों डूब गए। एक रील ने दोनों की जान ले ली। पंजाब का यह समाचार 10 अगस्त 2024 को मीडिया में आया। अभासी दुनिया में महज लाइक और शेयर के चक्कर में दो अनमोल जिंदगी इस वास्तविक दुनिया से हमेशा चली गईं। घटना पटियाला के अबलोवाल की है।

मेहनत कर चार्टर्ड अकाउंटेंट बनी एक बिटिया के साथ भी दर्दनाक घटना हुई। ववह प्रसिद्ध सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी थी। दोस्तों के साथ मुंबई के कुंभे वाटरफॉल पर पहुंची। झरने पर पहुंचकर रील बनाने लगी और इसी दौरान उसका संतुलन बिगड़ गया। वह 300 फीट गहरी खाई में गिर गई। इस रील ने एक होनहार बेटी को छीन लिया। महाराष्ट्र की यह खबर 18 जुलाई 2024 को मीडिया में आई।

राजस्थान के भीलवाड़ा से 6 अगस्त को खबर आई। मेनाल झरने पर एक युवक दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गगया। झरने में फोटो खींचने और रील बनाने के दौरान उनका संतुलन बिगड़ गया और वह 150 फीट गहरी खाई में गिर गया। रील ने यह अनमोल जिंदगी भी छीन ली। इस घटना के एक दिन पहले भी झरने के पास चार लोग रील बनाने के चक्कर में फिसल गए थे, उन्हें किसी तरह बचा लिया गया था।

दरअसल यह पीढ़ी उस दौर से गुजर रही है, जहां हर व्यक्ति के हाथ में दो-दो मोबाइल फोन और सिमकार्ड हैं। लैपटॉप है और टैब भी। अब स्मार्ट वॉच भी आ गई है। तो क्या यह कहा जाए कि इस पीढ़ी के लोग डिजिलटी कंट्रोल्ड ह्यूमन होते जा रहे हैं ? अगर ऐसा है तो आने वाली पीढ़ी का क्या होगा ? यह भी बड़ा सवाल है।

अब यह तर्क भी दिया जाता है कि सूचना के इस दौर में आगे रहने के लिए गजेट जरूरी हैं। ठीक है, गजेट्स जरूरी हैं, लेकिन इसका क्या जब मोबाइल हाथ में होता है तो दिमाग निर्देश देने लगता है कि जरा ऑन करके तो देखें, भले ही उसमें कोई अपडेट न हो। मोबाइल, टैब सामने होते हैं तो विचार आते हैं कि थोड़ा सा देख लें फिर बंद कर देंगे। दिमाग फोर्स करता है कि थोड़ा और देखूं, लेकिन जब आप अपने जीवन यानी दिल की सुनेंगे तो उसे टेबल पर रख देंगे। संयुक्त परिवार बचे-खुचे बचे हैं। एकल परिवार में यदि पांच लोगों को गिना जाए तो इतना कहा ही जा सकता है कि घर में छह मोबाइल होंगे ही। फैमिली के लोग बातें साझा करने की जगह मोबाइल पर रील देखते हैं। फेसबुक के जरिये बताते हैं कि किसी व्यक्ति ने क्या शेयर किया। इंस्टाग्राम पर क्या स्टोरी शेयर की। वाट्सएफ स्टेटस क्या लगाया है। डिजिटल स्पेस में यह ताक-झांक खुद के घर से दूर कर रही है।

नोएडा में बच्चों के एक मशहूर डॉक्टर से बात हो रही थी। वह मैक्स अस्पताल में रहे, अपोलो में भी रहे। विदेश से भी डिग्री हासिल की। डॉक्टर साहब बताते हैं कि वह डिजिटल को उतना ही स्पेस देते हैं, जितने में काम चले। बच्चों को रियल लाइफ में रखने के लिए घर में वाई-फाई भी नहीं लगवाया। वह कहते हैं कि डिजिटल को नियंत्रित करने में माता-पिता और अभिभावकों की भूमिका अहम है। इसके लिए आप बच्चे को समझाएं, उसे समय दें। बच्चे को आप तभी समय दे पाएंगे जब आप इस मोबाइल के चंगुल से बाहर निकलेंगे।

2016 में एक फिल्म आई थी डियर जिंदगी। इसमें एक गाना है – जो दिल से लगे उसे कह दो हाय हाय हाय। तो दिल की सुनें और आभासी दुनिया से दूरी बनाएं। रियल जिंदगी को हाय करें और रील लाइफ को बाय।

ये भी पढ़ें : ई-उपवास : रील की जगह रियल लाइफ को करें लाइक, खुशियों को करें डाउनलोड

Topics: मोबाइल से दूरीआभासी दुनियाdear zindagiपाञ्चजन्य विशेषई उपवासगजेट्स से दूरीरील लाइफरियल लाइफरील के नुकसानमोबाइल फोन के नुकसान
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