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बनारस में रंगों से नहीं बल्कि राख से खेली जाती है होली, बड़ी अनोखी है ये परंपरा

होली सिर्फ रंगों से ही नहीं खेली जाती, मथुरा-वृंदावन में फूल और लड्डुओं से होली खेली जाती है और वाराणसी में चिता की राख से होली खेलने की परंपरा है।

by Mahak Singh
Mar 20, 2024, 05:39 pm IST
in यात्रा
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होली के त्यौहार का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। होली के दिन लोग सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और एक-दूसरे को इस त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं। होली सिर्फ रंगों से ही नहीं खेली जाती, मथुरा-वृंदावन में फूल और लड्डुओं से होली खेली जाती है और वाराणसी में चिता की राख से होली खेलने की परंपरा है। बनारस की होली को ‘मसाने की होली’ के नाम से भी जाना जाता है। ये बहुत अलग तरह की होली है। ऐसे में अगर आप भी इस अनोखी होली का हिस्सा बनना चाहते हैं या देखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको वाराणसी जाना होगा। बनारस में कल यानी 21 मार्च को काशी में चिता भस्म की होली खेली जाएगी।

कैसे शुरू हुई यह परंपरा?

ऐसा कहा जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान भोलेनाथ मां पार्वती का गौना कराकर उन्हें काशी लाए थे। तब उन्होंने सबके साथ गुलाल से तो होली खेली थी, लेकिन भूत, प्रेत, जीव-जंतु आदि के साथ वे गुलाल से होली नहीं खेल पाए थे। फिर रंगभरी एकादशी के ठीक एक दिन बाद उन्होंने श्मशान में अपनी टोली के साथ मसान होली खेली, तभी से चिता भस्म होली मनाने की परंपरा शुरू हो गई।

कैसे मनाई जाती है ये होली?

मसान होली बनारस के प्रसिद्ध श्मशान घाट मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाती है। यहां सुबह से ही लोगों की भीड़ जुटने लगती है, साधुओं और शिवभक्तों की टोली भगवान शिव की पूजा और हवन करते है। भजन-कीर्तन के साथ-साथ नृत्य का भी आयोजन किया जाता है और फिर चिता भस्म से होली खेली जाती है। यहां मसान होली के उत्सव को मृत्यु को दुःख के रूप में नहीं, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति के रूप में देखा जाता है। अगर आपने पहले कभी इस होली को नहीं देखा है तो इस बार इसे देखने का प्लान बना सकते हैं। भारत के अधिकांश शहरों से वाराणसी के लिए ट्रेनें और फ्लाइट्स की सुविधा उपलब्ध हैं।

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