हल्द्वानी। हिंसा प्रभावित बनभूलपुरा क्षेत्र में बीते दिनों जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अरशद मदनी गुट के नेताओं ने दंगे के दौरान मारे गए पांच मुस्लिमों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये के सहायता चेक सौंपे। घायलों को भी आर्थिक मदद और जरूरतमंदों को राशन किट वितरित किए। जमीयत के दो गुट हैं, एक अरशद मदनी का और दूसरा पूर्व राज्यसभा सदस्य डा महमूद मदनी का गुट। बताया जाता है कि इन दोनों गुटों में आपस में नहीं बनती। महमूद मदनी के पिता असद हुसैन मदनी कांग्रेस से राज्यसभा रहे हैं। उनकी मृत्यु के बाद उनके चाचा अरशद मदनी ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अपना गुट बना लिया। अरशद मदनी दारुल उलूम मदरसा देवबंद के हदीस के प्रोफेसर है। वे अक्सर हिंदू विरोधी विवादित बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं, जबकि महमूद मदनी अपने पिता की विरासत को संभालने वाले मुस्लिम स्कॉलर माने जाते हैं।
अशोक चिन्ह के लेटर पैड का दुरुपयोग
हल्द्वानी बनभूलपुरा हिंसा मामले में पहले दिन महमूद मदनी का एक पत्र 8 फरवरी को दुबई से जारी किया गया। ये पत्र असली है या हिंसा के आरोपी अब्दुल मलिक गैंग द्वारा इसे मीडिया में जारी किया गया? इस बारे में अब पड़ताल किए जाने की जरूरत है।
महमूद मदनी का राज्यसभा का कार्यकाल 2006 से 2012 तक रहा तो क्या तब से अबतक यानि 12 सालों तक वह राज्यसभा के अशोक चिन्ह प्रिंट लेटरपैड, हाथ से “एक्स “लिख कर इस्तेमाल कर रहे हैं ? दूसरा वो इस लेटर पैड पर अपने आप को जमीयत का अध्यक्ष भी लिख रहे हैं। इसके अलावा क्या देश के गृह मंत्री को लिखे पत्र में, पत्रांक संख्या आदि नहीं डालेगा ? फिर पत्र को मीडिया में ठीक कार्रवाई के वक्त क्यों जारी करेगा? इस तरह के कई सवाल हैं। कहा जा रहा है कि उस वक्त मदनी दुबई में थे और यह उनके दुबई कैंप कार्यालय से जारी किया गया। इस पत्र की सच्चाई पर सवाल उठे हैं और इसका जवाब महमूद मदनी ही दे सकते हैं।
अरशद मदनी गुट की सक्रियता
दूसरी ओर हल्द्वानी हिंसा मामले में पहले महमूद मदनी गुट सक्रिय रहा और वो हिंसा के दो दिन बाद हल्द्वानी पहुंचा, जहां प्रशासन ने कर्फ्यू क्षेत्र में जाने की इजाजत नहीं दी। ये भी जानकारी में आया है कि हिंसा का मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक, महमूद मदनी के गुट का है। उधर, कर्फ्यू खुलने के बाद अरशद मदनी गुट हल्द्वानी बनभूलपुरा में सक्रिय हो गया और हल्द्वानी पहुंचकर मौलाना मुकीम काजी के साथ मिलकर हिंसा में मारे गए पांच लोगों के परिजनों को सहायता राशि दी। ये वही मौलाना हैं, जिनका एक बयान सोशल मीडिया पर चलाकर नैनीताल डीएम पर मुस्लिम समाज ने हमला बोला था। बाद में जब उनकी पोल पट्टी खुली तो वो बचाव मुद्रा में आ गए।
मौलाना मुकीम ,अरशद मदनी गुट के जिला सदर भी हैं और वह इस घटना को अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई मानते रहे हैं। उन्होंने इस मामले को मजहबी रंग देने पर भी एतराज उठाते हुए शहर में अमन चैन बनाए रखने की बात कही और प्रशासन की कार्रवाई को भी एक तरह से सही ठहराया। हिंसा से पहले और बवाल के बाद हल्द्वानी बनभूलपुरा मामले में यह कहा गया कि मस्जिद तोड़ी गई, मदरसा तोड़ा गया, जबकि हकीकत ये थी न तो वहां मस्जिद थी न मदरसा था। ये अब्दुल मलिक की साजिश थी कि सरकारी जमीन कैसे कब्जाई जाए। जहां जुमे की सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी जाती हो, वो मस्जिद नहीं मानी जाती, और जो मदरसा बताया गया उसका कहीं पंजीकरण नहीं। जो पांच-दस बच्चे आते थे, उनका दाखिला पहले से ही सरकारी स्कूल में हो रखा था। वहां जो मदरसा मौलवी बिठाए गए वो खुद कह रहे थे कि हम तो यहां किसी के कहने पर आए। मदरसा, दारुल उलूम देवबंद के अधीन भी नही था, जिसको लेकर कोई बहस भी नहीं की गई।
उधर हल्द्वानी हिंसा मामले में समाजवादी पार्टी के नेता अब्दुल मतीन का बयान भी सामने आया है कि उनका भाई जावेद ,अब्दुल मलिक का साथी नहीं है। मलिक उनके भाई रऊफ सिद्दकी की हत्या की साजिश में नामजद रहा है। यानि उन्मादी भीड़ का नेतृत्व अलग-अलग गुट कर रहे थे। राजनीति भी इस फसाद में पूरी तरह से सक्रिय थी और मुस्लिम संगठन भी प्रशासनिक कार्रवाई को मजहबी रंग देने में लगे हुए थे, जबकि मसला एक भू माफिया के खिलाफ सरकारी जमीन कब्जाने का था जिसे नैनीताल प्रशासन खाली करवा रहा था। बहरहाल हल्द्वानी बनभूलपुरा मामले में जमीयत-उलेमा- ए-हिंद के दोनों गुट सक्रिय तो हुए हैं, लेकिन उनके बीच विरोधाभास की राजनीति भी दिखाई दे गई है।
टिप्पणियाँ