हरित क्रान्ति का अर्थ था कि देश के ऐसे सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज कर संकर तथा बौने बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि करना। हरित क्रांति की पद्धति तीन मूल तत्वों पर केंद्रित रही।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1966-67 के मध्य हुई। इस क्रांति का जनक एम. एस. स्वामीनाथन को कहा गया। हरित क्रान्ति का अर्थ था कि देश के ऐसे सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज कर संकर तथा बौने बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि करना। हरित क्रांति की पद्धति तीन मूल तत्वों पर केंद्रित रही। पहला, उन्नत आनुवंशिकी वाले बीजों (उच्च उपज देने वाली किस्म के बीज) का उपयोग करना। दूसरा, मौजूदा कृषि भूमि में दोहरी फसल और तीसरा, कृषि क्षेत्रों का निरंतर विस्तार।
परिणाम यह हुआ कि हरित क्रांति के चलते ही भारत के कृषि क्षेत्र में अधिक वृद्धि हुई तथा कृषि में हुए गुणात्मक सुधार के चलते देश में कृषि का उत्पादन बढ़ा। देश के खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता देखने को मिली। हरित क्रांति की शुरुआत के साथ भारत आत्मनिर्भरता की राह पर पहुंच गया और आयात पर कम निर्भर हो गया। अब स्थिति यह होने लगी कि भारत ने अपनी कृषि उपज का निर्यात करना शुरू कर दिया। देश में हरित क्रांति के परिणामस्वरूप गेहूं, गन्ना, मक्का, तथा बाजरे आदि की फसलों में प्रति हेक्टेयर व कुल उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई।
रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी आदि की मांग में भी काफी वृद्धि हुई। साथ ही बहुफसली और उर्वरकों के उपयोग के कारण श्रम शक्ति की मांग में वृद्धि हुई। हरित क्रांति ने न केवल कृषि श्रमिकों के लिए बल्कि औद्योगिक श्रमिकों के लिए कारखानों और पनबिजली स्टेशनों जैसी संबंधित सुविधाओं का निर्माण करके बहुत सारे रोजगार उत्पन्न किए। भारत में हरित क्रांति से देश के किसानों को बड़ा फायदा हुआ।
इस व्यावसायिक कृषि उन्नति का सकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि वर्ष 1978-79 में 13.10 करोड़ टन का अनाज उत्पादन हुआ और इसने भारत को दुनिया के सबसे बड़े कृषि उत्पादकों में से एक के रूप में स्थापित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया। प्रति एकड़ उपज में भी वृद्धि हुई। हरित क्रांति से शुरुआती चरण में गेहूं के मामले में प्रति हेक्टेयर उपज 850 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर अविश्वसनीय 2281 किलोग्राम/हेक्टेयर हो गई। हरित क्रांति की शुरुआत ने किसानों को उनकी आय के स्तर में बढ़ाने में सहायता प्रदान की।
इस क्रांति से बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण हुआ, जिसने ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर, कंबाइन, डीजल इंजन, इलेक्ट्रिक मोटर, पंपिंग सेट इत्यादि जैसी विभिन्न प्रकार की मशीनों की मांग पैदा की। इसके अलावा, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी आदि की मांग में भी काफी वृद्धि हुई। साथ ही बहुफसली और उर्वरकों के उपयोग के कारण श्रम शक्ति की मांग में वृद्धि हुई। हरित क्रांति ने न केवल कृषि श्रमिकों के लिए बल्कि औद्योगिक श्रमिकों के लिए कारखानों और पनबिजली स्टेशनों जैसी संबंधित सुविधाओं का निर्माण करके बहुत सारे रोजगार उत्पन्न किए। भारत में हरित क्रांति से देश के किसानों को बड़ा फायदा हुआ।
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