मोगा नरसंहारः संघ के 25 स्वयंसेवकों ने बलिदान देकर खालिस्तानी आतंकियों की तोड़ी थी ‘कमर’

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WEB DESK

पंजाब के मोगा स्थित शहीदी पार्क में 34 वर्ष पहले आतंकी हमले में बलिदान हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 25 स्वयंसेवकों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष की भांति रविवार को समारोह आयोजित किया गया। समारोह में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोमप्रकाश और पंजाब भाजपा के अध्यक्ष अश्विनी शर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे। संघ के पंजाब प्रांत के धर्मजागरण प्रमुख रामगोपाल जी मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम में बलिदानियों को पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके पहले शहीदी पार्क में बलिदानी स्वयंसेवकों की स्मृति में यज्ञ भी किया गया। इस दौरान समाज-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के कई प्रमुख लोग मौजूद रहे।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहा है संघ
चाहे खालिस्तानी आतंकी हों, जिहादी आतंकवादी हों, नक्सली हों या फिर दुश्मन देशों की कोई गुप्तचर एजेंसियां, इस सभी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपना सबसे बड़ा दुश्मन माना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि देश में जब भी या जहां भी किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि हुई है, संघ के स्वयंसेवक अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे हैं।

दरअसल, पंजाब जब दंगों और आतंकवाद से जूझ रहा था और पूरा प्रांत लगभग डेढ़ दशक तक जल रहा था, तब संघ ने खतरों के सामने निःस्वार्थ भाव से पंजाब के लोगों की मदद की। प्रत्येक स्वयंसेवक ने सिखों और हिंदुओं को बचाने के लिए इतनी वीरता के साथ लड़ाई लड़ी कि उन्हें जल्द ही पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों द्वारा सबसे बड़े दुश्मनों में से एक माना जाने लगा। इसी का प्रतिफल कहा जा सकता है जब मोगा में 25 जून, 1989 को संघ की शाखा पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 25 स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर देश की एकता-अखंडता को संबल प्रदान किया।

इस घटना के बारे में शहीद स्मारक से जुड़े पदाधिकारी डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि आतंकियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, लेकिन स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उनको रोकने का यत्न भी किया था, लेकन किसी की बात न सुनते हुए आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें 25 कीमती जानें गईं थीं। इस घटना ने न केवल पंजाब में हिंदू-सिख एकता को नवजीवन दिया बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी, जिससे आतंकियों के हौसले पस्त हो गए और हिंदू-सिख एकता जीत गई।

बकौल डॉ. पुरी, 25 जून, 1989 को (अब के शहीदी पार्क) रोजाना की ही तरह भारी तदाद में शहर निवासी सैर के लिए आए थे। रोजाना की तरह उस दिन भी जहां नागरिक पार्क में सैर कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शाखा भी लगी हुई थी। इस दिन शहर की सभी शाखाएं नेहरू पार्क में एक जगह पर लगी थीं। संघ का एकत्रीकरण था। सुबह 6 बजे संघ की शाखा शुरू हुई थी और अचानक 6.25 बजे स्वयंसेवकों पर आतंकियों ने आकर हमला कर दिया। हर तरफ भगदड़ मच गई। अंधाधुंध फायरिंग रुकने के बाद हर तरफ खून ही खून दिखाई दे रहा था। घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे। गोलियां लगने के कारण कई सेवकों के शरीर भी बेजान हो गए और कइयों ने अस्पताल में जाकर अंतिम सांस ली।

इस गोली कांड के दौरान 25 स्वयंसेवक बलिदान हो गए, वहीं शाखा में शामिल लोगों के साथ आसपास के करीब 31 लोग घायल भी हो गए थे। इस हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, लेकिन फिर भी संघ के स्वयंसेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान बना हुआ है।

अमर बलिदानी
इस हमले में बलिदान होने वालों में लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पंडित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवन्त सिंह शामिल हैं।

ये हुए थे घायल
इस दौरान प्रेम भूषण, रामलाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ, हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे।

निहत्थे दंपति ने आतंकियों को ललकारा
हमले के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश और छिन्दर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकड़ने की कोशिश की लेकिन एके-47 से हुई फायरिंग में उनकी भी मौत हो गई। साथ ही आतंकियों को पकड़ते समय पास के घरों के निकट खेल रहे 2-3 बच्चों में से डेढ़ साल की डिम्पल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया।

मौत के सामने डटे स्वयंसेवक
जिस परिसर में शाखा लगी थी तो अचानक पिछले गेट से भाग-दौड़ की आवाज सुनाई दी। पता चला कि वहां से आतंकी अंदर घुस आए हैं बावजूद इसके कोई भागा नहीं और उनका डटकर सामना किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकियों ने आते ही सभा में स्वयंसेवकों से ध्वज उतारने के लिए कहा, लेकिन स्वयंसेवकों से साफ मना कर दिया। इस पर आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी।

दस साल की उम्र में गोलीकांड आंखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था। रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया। जैसे ही आतंकियों ने धावा बोलकर गोलियां चलानी शुरू कीं, वह धरती पर लेट गया और जब आतंकी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकड़ने की कोशिश की। नितिन भी इसको खेल समझ कर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकड़ कर घर भेजा।

दंगा चाहने वाले भी हुए निराश
ये दिन वे थे, जब दिल्ली सहित देश के सिख विरोधी दंगों की आग में अभी तपिश जारी थी। आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिंदू-सिख एकता में दरार डालने का प्रयास किया ही, साथ में कुछ दंगा संतोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिखों ने अब लगाया है शेर की पूंछ को हाथ। संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और न ही शहर में। अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों और देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिंदू-सिख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिख पंथ के नाम पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता है।

घटना के अगले दिन लगी संघ की शाखा में स्वयंसेवक गीत गा रहे थे- कौन कहंदा हिंदू-सिख वक्ख ने, ए भारत मां दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारतमाता की बाईं और दाईं आंख के समान हैं। संघ के इस गीत को सुनकर आतंकियों ने भी माथा पीट लिया था।

मोगा बलिदानियों की याद में शहीदी पार्क
अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया गया तो उस दौरान बलिदानियों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया। इसी कार्य के अधीन मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति का भी गठन हुआ। शहीदी स्मारक की नींव का पत्थर 9 जुलाई को भाऊराव देवरस ने रखा। इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून 1990 को प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया ने किया। आज भी हर साल बलिदानियों की याद में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है।

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