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होम भारत पश्चिम बंगाल

आमार बांग्ला: राजनीति का रक्तचरित्र

पश्चिम बंगाल की राजनीति का चरित्र रक्तरंजित हो चुका है। सत्तर के दशक से अब तक सत्ताधारी पार्टियां बदलती रहीं परंतु राजनीतिक हिंसा का सिलसिला जारी रहा। राजनीतिक हत्याएं होने से सत्ताधारी पार्टियां आंकड़ों को कम करके बताती हैं, इनका सच सामने लाने वाले का गला घोंटा जाता है, आज जरूरत है इन राजनीतिक हत्याओं के काले सच को सामने लाने की

by रास बिहारी
Jun 5, 2023, 10:57 am IST
in पश्चिम बंगाल
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60 वर्षों से मारकाट की राजनीति ने पश्चिम बंगाल की गौरवमयी संस्कृति और परम्परा को मिटा दिया है। कला-संस्कृति, साहित्य, ज्ञान-विज्ञान, धर्म, सिनेमा आदि क्षेत्रों में दुनिया में विशेष पहचान रखने वाला बंगाल आज राजनीतिक हिंसा, जीवित-मृत इंसानों की तस्करी, पशु-पक्षियों की तस्करी, सोना-चांदी और मादक पदार्थों की बड़े पैमाने पर तस्करी के अड्डे के तौर पर जाना जाता है।

पश्चिम बंगाल का भयावह सच दुनिया के सामने लाने की जरूरत है। पिछले 60 वर्षों से मारकाट की राजनीति ने पश्चिम बंगाल की गौरवमयी संस्कृति और परम्परा को मिटा दिया है। कला-संस्कृति, साहित्य, ज्ञान-विज्ञान, धर्म, सिनेमा आदि क्षेत्रों में दुनिया में विशेष पहचान रखने वाला बंगाल आज राजनीतिक हिंसा, जीवित-मृत इंसानों की तस्करी, पशु-पक्षियों की तस्करी, सोना-चांदी और मादक पदार्थों की बड़े पैमाने पर तस्करी के अड्डे के तौर पर जाना जाता है। अवैध हथियारों के कारखाने और जाली नोटों के कारोबार ने बंगाल को अपराधों का गढ़ बना दिया।

रास बिहारी

कटमनी, सिंडीकेट राज, रंगदारी, शारधा घोटाला, रोजवैली घोटाला, भर्ती घोटाला, पशु तस्करी घोटाला, कोयला घोटाला आदि में पकड़े गये नेताओं के कारण बंगाल आज चर्चा में है। बमों के धमाके और गोलीबारी में मरते लोगों के कारण ही बंगाल की मीडिया में चर्चा होती है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और 12 वर्षोंसे राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पार्टी के नेताओं की नजर में बंगाल दुनिया का ‘सबसे शांतिपूर्ण राज्य’ है। ‘शांतिपूर्ण राज्य’ में लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकायों और पंचायत चुनावों में हजारों लोग मारे गये हैं और लाखों घायल हुए हैं। इस तरह का सच सामने लाने वाले ममता बनर्जी को बर्दाश्त नहीं हैं। समुदाय विशेष के पक्ष में खड़ी रहने वाली ममता बनर्जी सच सामने आने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर राज्य का माहौल बिगाड़ने का आरोप मढ़ देती हैं।

राजनीतिक हिंसा का सिलसिला
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की परम्परा पुरानी है। देश की आजादी के बाद की बात करें तो 1967 में नक्सलवाद के उभार और राजनीतिक अस्थिरता के कारण पश्चिम बंगाल में वर्षों तक अराजकता रही। 1972 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने शांति और कानून-व्यवस्था का राज स्थापित करने के लिए नक्सलियों की आड़ में विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं का सफाया कराया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रे की सलाह पर ही देश में आपातकाल थोपा था। 1977 में वाम मोर्चा की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने 1972 से 1977 के दौरान 1100 से ज्यादा कार्यकर्ताओं के मारे जाने के आरोप लगाए थे। पश्चिम बंगाल में 1977 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। 1977 में वाम मोर्चा सरकार ने भी राजनीतिक हिंसा को बढ़ावा दिया।

2021 के विधानसभा चुनाव बाद राजनीतिक हिंसा में मारे गये भाजपा कार्यकर्ताओं के मामलों की जांच उच्च न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई को सौंपी गई है। सीबीआई ने 50 से ज्यादा मामलों में चार्जशीट अदालत में जमा की है।

1983 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष आनंद गोपाल मुखर्जी ने 1978 से 1983 के बीच पांच सौ से ज्यादा पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप लगाया था। वाम मोर्चा में 1977 में छह दल शामिल हुए थे। 1982 में भाकपा भी वाम मोर्चा में शामिल हुई। वाम मोर्चा के सबसे बड़े दल माकपा के कार्यकर्ताओं ने भाकपा, रिवोलूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक और अन्य दलों के कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या में हत्या की। 1972 का सैनबारी हत्याकांड, 1979 का मरीचझांपी नरसंहार, 1982 में 17 आनंदमार्गी साधुओं को जिन्दा जलाने की घटना और 31 मई 1993 को माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा इंडियन पीपुल्स फ्रंट के पांच उम्मीदवारों की हत्या के मामले माकपा राज में रक्तरंजित राजनीति को उजागर करते हैं। 31 मई 1998 को बासंती में आरएसपी के पांच कार्यकर्ताओं को जिन्दा जला दिया और 150 घरों को फूंक दिया गया। दो लोगों के हाथ काट दिये गये थे।

2000 में बीरभूम के नानूर में 11 लोगों की हत्या, 2007 में नंदीग्राम में 14 लोगों की हत्या, 2011 में लालगढ़ में सात लोगों को गोलियों से उड़ा दिया गया। एक रिपोर्ट के अनुसार 1979 में मारीचझांपी में बांग्लादेश के हिन्दू शरणार्थियों को खदेड़ने के दौरान 1200 लोग मारे गये। इस वर्ष मई महीने में बंगाल में विस्फोटों में 17 लोग मारे गये। पुलिस के अनुसार ये लोग अवैध तौर पर पटाखे बनाने के दौरान मारे गये। सच सामने लिये भाजपा ने इन विस्फोटों की जांच एनआईए से कराने की मांग उठाई है। पिछले साल 21 मार्च को बीरभूम जिले के रामपुरहाट में बोगटुई गांव में राजनीतिक हिंसा में दस लोगों को जिंदा जलाने की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया था। हमलावरों ने घरों में आग लगाने से पहले कई लोगों को उनके घरों के अंदर बंद कर दिया गया था। मामले की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई ने बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार किया था।

पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी समस्या राजनीतिक हिंसा ही है। राजनीतिक हिंसा की बड़ी वजह है सत्ता पर कब्जा बनाए रखने की लालसा। राजनीतिक हिंसा का हिसाब-किताब करते समय अक्सर यह उदाहरण दिया जाता है कि वाम मोर्चा के राज में 55 हजार से ज्यादा लोग मारे गये। कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस बनाने की सबसे बड़ी वजह ममता बनर्जी ने कम्युनिस्टों से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की जान बचाने में विफलता बताई थी। ममता का कहना था कि कांग्रेस अपने नेताओं, पार्टी कार्यकर्ताओं की जान नहीं बचा पा रही है। कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए ही ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 2011 में वाम मोर्चा को 34 साल बाद सत्ता से बाहर कर दिया।

सत्ता बदली, चरित्र नहीं
पश्चिम बंगाल में सत्ता तो बदली पर चरित्र नहीं बदला। राजनीतिक मारकाट जारी रही और उसे छिपाने के लिए पुलिस-प्रशासन की भूमिका पहले जैसी रही। 2021 के विधानसभा चुनाव बाद राजनीतिक हिंसा में मारे गये भाजपा कार्यकर्ताओं के मामलों की जांच उच्च न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई को सौंपी गई है। सीबीआई ने 50 से ज्यादा मामलों में चार्जशीट अदालत में जमा की है। कुछ अन्य मामलों की जांच भी सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई कर रही है। कुछ मामलों की जांच एनआईए को सौंपी गई है।

राजनीतिक हिंसा की बदौलत नेता सत्ता में आते हैं और सत्ता में आने के बाद शुरू होता है अवैध धंधों में लगे लोगों को प्रश्रय देना। रंगदारी वसूलने, सिंडीकेट चलाने, रेत, बालू, कोयले के अवैध खनन, मजदूर सप्लाई करने की ठेकेदारी समेत सभी गैरकानूनी काम सत्ताधारी नेताओं के संरक्षण में धड़ल्ले से होते हैं। विरोध करने वालों को बमों और गोलियों से उड़ा दिया जाता है। हाथ-पैर काटकर पेड़ पर फांसी लगाकर लटका दिया जाता है। ऐसा काम माओवादियों ने शुरू किया था। अब यह सत्ताधारी पार्टी के संरक्षण में गुंडे करते हैं।

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हत्याओं का सच सामने लाने की जरूरत है। मार्च 2022 में पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से विधानसभा में पेश रिपोर्ट में दावा किया गया था कि राज्य में राजनीतिक हिंसा में 2011 के मुकाबले कमी आई है। गृह और पहाड़ी मामलों की रिपोर्ट में बताया गया था कि राज्य में 2002 से मई, 2011 तक 663 राजनीतिक हत्याएं हुई। जून 2011 से जून 2020 तक राजनीतिक हिंसा में 156 लोगों की मौत का दावा किया गया। 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में हुई भारी हिंसा के बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के नेता पश्चिम बंगाल में लगातार शांति का राज बता रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी के नेता, राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हिंसा को लेकर कई बार मुख्यमंत्री को घेरा था।

ममता बनर्जी के 2011 में राज्य की सत्ता संभालने के बाद 1200 से ज्यादा लोग राजनीतिक हिंसा में मारे गये। बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता सिंडीकेट, रंगदारी वसूलने, और ठेके कब्जाने के आपसी संघर्ष में मारे गये हैं। बंगाल में जारी अराजकता के बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के नेता राजनीतिक हिंसा, कटमनी, भ्रष्टाचार, महिलाओं बच्चों, जानवरों, पक्षियों, सोना-चांदी, मादक पदार्थों, जाली नोटों की तस्करी पर चुप्पी साधे हुए हैं।

8 मई 2023 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘घृणा और हिंसा की किसी भी घटना से बचने और राज्य में शांति बनाए रखने के लिए द केरल स्टोरी फिल्म दिखाने पर रोक लगा दी थी। पश्चिम बंगाल सिनेमा (विनियमन) अधिनियम, 1954 की धारा 6(1) के तहत यह रोक लगाई थी। ‘द डायरी आफ वेस्ट बंगाल’ के ट्रेलर को लेकर ही ममता सरकार ने अपने तेवर दिखा दिए। फिल्म के निर्देशक को कानूनी मामलों में उलझा दिया गया है। बंगाल पुलिस ने फिल्म के निर्देशक और निर्माता पर राज्य को बदनाम करने का आरोप लगाया है। बंगाल में सच बोलने वालों का गला घोंटने की घटनाओं को देश के सामने लाने की आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

हत्या के आंकड़ों पर पर्दा
असलियत यही है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस, वाम मोर्चा और अब तृणमूल कांग्रेस के राज में राजनीतिक हत्याओं का कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता है। ममता राज में तो राजनीतिक कारणों से हत्याएं थानों में दर्ज ही नहीं होती है। इसी कारण बड़ी संख्या में राजनीति से जुड़े लोगों की हत्याओं के बावजूद 2015, 2016 और 2017 में राजनीतिक कारणों से केवल एक-एक हत्या दर्ज की गई। 2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही 30 से ज्यादा लोग मारे गये थे। 2018 के पंचायत चुनाव में मुख्य मुकाबले में आने के बाद भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले तेज हो गये। लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 सीटों में से 18 पर जीत हासिल करने के बाद भाजपा के कई कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा के 130 कार्यकर्ताओं की हत्या होने का मुदद उठाया था।

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा, लूटमार, तस्करी, बम धमाकों, तृणमूल कांग्रेस की आपसी लड़ाई में मारकाट आदि पर बोलने वालों पर ‘बंगाल को बदनाम’ करने का आरोप मढ़ दिया जाता है। थानों में मामले दर्ज करके गिरफ्तार कर लिया जाता है। 8 मई 2023 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘घृणा और हिंसा की किसी भी घटना से बचने और राज्य में शांति बनाए रखने के लिए द केरल स्टोरी फिल्म दिखाने पर रोक लगा दी थी। पश्चिम बंगाल सिनेमा (विनियमन) अधिनियम, 1954 की धारा 6(1) के तहत यह रोक लगाई थी। ‘द डायरी आफ वेस्ट बंगाल’ के ट्रेलर को लेकर ही ममता सरकार ने अपने तेवर दिखा दिए। फिल्म के निर्देशक को कानूनी मामलों में उलझा दिया गया है। बंगाल पुलिस ने फिल्म के निर्देशक और निर्माता पर राज्य को बदनाम करने का आरोप लगाया है। बंगाल में सच बोलने वालों का गला घोंटने की घटनाओं को देश के सामने लाने की आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा पर चार पुस्तकें प्रकाशित हुई है।)

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