जगत से शृंखला टूटती है, तब काव्य की रचना  होती है - डॉ. मृदुल कीर्ति  
Tuesday, May 30, 2023
  • Circulation
  • Advertise
  • About Us
  • Contact Us
Panchjanya
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • जी20
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • राज्य
    • Vocal4Local
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • लव जिहाद
    • ऑटो
    • जीवनशैली
    • पर्यावरण
    • Podcast Series
SUBSCRIBE
No Result
View All Result
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • जी20
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • राज्य
    • Vocal4Local
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • लव जिहाद
    • ऑटो
    • जीवनशैली
    • पर्यावरण
    • Podcast Series
No Result
View All Result
Panchjanya
No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • G20
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • संघ
  • My States
  • Vocal4Local
  • Subscribe
होम साक्षात्कार

जगत से शृंखला टूटती है, तब काव्य की रचना  होती है – डॉ. मृदुल कीर्ति  

आस्ट्रेलिया में रह रहीं डॉ. मृदुल कीर्ति को फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में 2023 का विश्व हिंदी सम्मान दिया गया।

डॉ. क्षिप्रा माथुर by डॉ. क्षिप्रा माथुर
May 22, 2023, 12:58 pm IST
in साक्षात्कार
डॉ. मृदुल कीर्ति

डॉ. मृदुल कीर्ति

Share on FacebookShare on TwitterTelegramEmail

आस्ट्रेलिया में रह रहीं डॉ. मृदुल कीर्ति को फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में 2023 का विश्व हिंदी सम्मान दिया गया। भारतीय ज्ञान ग्रंथों के काव्यानुवाद की उनकी जीवन साधना को यह पहचान उस समय मिली है, जब भारतीय शिक्षा प्रणाली और समाज की ओर भी यह जागृति है कि अपने मूल में लौटना ही अपने भविष्य को गढ़ना है। भारत के आर्ष ग्रंथों को लोक-भाषा में लाने की इस अथक साधना और जीवन-सार पर डॉ. क्षिप्रा माथुर ने उनसे बातचीत की, जिसके संपादित अंश यहां  प्रस्तुत हैं-

आर्ष ग्रंथों के काव्यानुवाद पर आपको जो सम्मान मिला, उसे पाकर कैसा लगा? 
आर्ष ग्रंथों को पढ़ने के बाद भारतीय संस्कृति को काव्य रूप में लिखने का सरल-सरस कार्य सार्थक होता जा रहा है। इस सम्मान में भारतीय ग्रंथों की ओर पुन: लौटने का आह्वान है। गृहस्थ रहते हुए मैं 18 महाग्रंथों के काव्य अनुवाद के बारे में सोच भी कहां सकती थी। लेकिन दिव्य चेतना प्रवाहित होती गई और मैं यह करती गई। आरंभ हुआ, परम उत्कर्ष वेद सामवेद से। सामवेद के काव्य अनुवाद के बाद नौ उपनिषद्- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मांडूक्य, श्वेताश्वर, भगवद्गीता, अष्टावक्र गीता, पतंजलि योग दर्शन, विवेक चूड़ामणि और इस समय जो दर्शन का सर्वोत्कृष्ट उत्कर्ष है, सांख्य, उसका अनुवाद अभी पूरा हुआ है। कुछ भी सोचा हुआ नहीं था, बस निरंतरता में दिव्य शक्ति उतरती चली गई।
   सकल परम प्रभु की प्रभुताई
       मैं कछु नेकु न नेकहूं कीना
       प्रतिपालक मोहे आपुहि दीना
       मैं बस केवल हाथ पसारा
       कृपा सिन्धु दें अपरम्पारा।

गृहस्थ जीवन जीते हुए यह सब कर पाना कैसे संभव हुआ? 
एक नहीं, दो नहीं, तीन तीन शरीर हैं। उस संचेतना में आज भी तीन शरीर जीती हूं। ‘स्थूल’ यानी बाहरी शरीर में काम करती हूं जो भी गृहस्थ जीवन के कर्तव्य हैं। सूक्ष्म शरीर के चार अंग हैं- मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार। इस संचेतना में रहते हुए बाहरी किसी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। तीसरा है ‘कारण शरीर’। जब तक आप उस ‘कारण शरीर’ से नहीं जुड़ेंगे, तब तक कार्य सिद्ध नहीं होगा। कुछ कारण होता है, तभी कार्य होता है। बीज होता है, तभी वृक्ष होता है। उस कारण जो किसी जन्म का भव है, वह उदित हुआ होगा, वह स्थूल से सूक्ष्म में आता था, तो मैं लिखती थी। यह बड़ी आंतरिक, अंतश्चेतना, अंतर्मन की यात्रा है। इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

इस कार्य के लिए आपको प्रेरणा कहां से मिली? इसमें क्या चुनौतियां आर्इं? परिवार से क्या सहयोग मिला? 
ऐसा नहीं था कि मुझे कोई प्रेरित कर रहा हो या कोई सहायक हो। संघर्ष भी काफी करना पड़ा। पहले तो लगता था, पता नहीं क्या कर रही हूं। कार्य सिद्ध होने के बाद लगा कि कुछ किया, जो बड़ा काम था। लेकिन जहां तक सहयोग की बात है, परिवेश से कोई सहयोग नहीं मिला। मानसिक संघर्ष भी किया। हां, बच्चों का पूरा सहयोग था। बिना कठिनाई के बड़े लक्ष्य मिला भी नहीं करते।

गूढ़ ग्रंथों को काव्य रूप में लाने से क्या उनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है? 
वस्तुत: यह क्लिष्ट ज्ञान है, दुरुह ज्ञान है। मनगर्भिता है, अर्थगर्भिता है। सांसारिक मोह-माया के आकर्षण में डूबे हुए व्यक्तियों के लिए यह बिल्कुल नीरस है। और जो नीरस हो, उसे कोई क्यों ग्रहण करेगा? श्वेताश्वर उपनिषद् में लिखा है कि आत्मा रस की भूखी होती है। वाल्मीकि रामायण संस्कृतनिष्ठ रही और तुलसी रामायण जन भाषा में लोकप्रिय हो गई। एक कहावत है- कोस कोस पर पानी बदले, दस कोस पर बानी। समय के प्रवाह के साथ भाषा और वाणी भी बदलती है। संस्कृत प्रचलन में नहीं रही तो उस भाषा में लिखे गए काव्य ग्रंथ भी पीछे चले गए। इसलिए आवश्यक है कि जो कहा जाए, आज की भाषा में कहा जाए। ग्रंथों की व्याख्या करना और काव्य में लाना दो पक्ष हैं। काव्य तृप्त करता है।

काव्य रचना में क्या अनुशासन का भी पालन करना पड़ा? इसकी क्या प्रक्रिया रही? 
   शंकराचार्य की कृति ‘विवेक चूड़ामणि’ का श्लोक है-
       जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमत: पुंस्त्वं ततो विप्रता
       तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम्।
       आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थिति:
       मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतै: पुण्यैर्विना लभ्यते।।
इसका सार यह है कि पहले तो मनुष्य जन्म दुर्लभ, फिर ज्ञान दुर्लभ, फिर अध्यात्म में रुचि होना दुर्लभ। उसके बाद आध्यात्मिक काव्य में रुचि तो और भी दुर्लभ है। ऋग्वेद में एक मंत्र है, जिसका अर्थ यह है कि ईश्वर भी अपने आप को व्यक्ति काव्य के माध्यम से व्यक्त करता है। काव्य में अध्यात्म, ऋषियों के आर्ष ग्रंथों, उनके मंत्रों, सूक्तों, कारिका, छंदों, श्लोकों को जब काव्य में लाते हैं तो आप एक सूक्त चुनते हैं। एक बहुत बड़ी शर्त यह है कि उसे एक मीटर के अंदर ही आपको समाहित करना पड़ता है। जैसे-आपने कोई छन्द लिया। उसमें पहले 16 मात्राएं लेंगे, फिर उसमें 14 मात्राएं होंगी, फिर 16-14 के चार चरण होंगे। इन सब नियमों का संवहन करते हुए, व्याकरण की विधाओं को मानते हुए, जिसमें कहीं अनुप्रास आता है, कहीं यमक, कहीं श्लेष, इन छन्दों को, रसों को डालते हैं। यह बहुत क्लिष्ट विधा होती है, जिसमें आपका अपना कुछ नहीं, उन्हीं का सब होता है। इसके लिए ऋषियों के वैचारिक शरीर में प्रवेश करना पड़ता है। उनके कहे, उनके लिखे हुए को आत्मसात करना, फिर संस्कृत भाषा से छंदों का मंथन है और उसे हिंदी भाषा के सीमित मीटर में लाना, यह कठिन विधा है।
कौन देता लेखनी कर में थमा?
       कौन फिर जाता हृदय तल में समा?
       कौन कर देता है उन्मन चित्त को संसार से?
       कौन तज नि:सारता, मुझको मिलाता सार से?
       कौन भूमा तक मेरे मन मूल को है ले चला?
       कौन गहकर बांह जग से तोड़ता है शृंखला?
अर्थात् जगत से जब शृंखला टूटती है, तब ऐसे काव्य की रचना होती है।

भारतीय संस्कृति को काव्य रूप में लिखने का सरल-सरस कार्य सार्थक होता जा रहा है। इस सम्मान में भारतीय ग्रंथों की ओर पुन: लौटने का आह्वान है। गृहस्थ रहते हुए मैं 18 महाग्रंथों के काव्य अनुवाद के बारे में सोच भी कहां सकती थी। लेकिन दिव्य चेतना प्रवाहित होती गई और मैं यह करती गई। आरंभ हुआ, परम उत्कर्ष वेद सामवेद से। सामवेद के काव्य अनुवाद के बाद नौ उपनिषद्- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मांडूक्य, श्वेताश्वर, भगवद्गीता, अष्टावक्र गीता, पतंजलि योग दर्शन, विवेक चूड़ामणि और इस समय जो दर्शन का सर्वोत्कृष्ट उत्कर्ष है, सांख्य, उसका अनुवाद अभी पूरा हुआ है। कुछ भी सोचा हुआ नहीं था, बस निरंतरता में दिव्य शक्ति उतरती चली गई। 

आपने ब्रज भाषा में गीता लिखी है। इस भाषा में औपचारिक शिक्षा लिए बिना यह काम कैसे किया? 
वासुदेव के उपदेश उनकी भाषा में नहीं हैं, जबकि भाषा हर जगह बोली जाती है। यह अवधी में है, खड़ी बोली में है, लेकिन ब्रज भाषा में नहीं है। यह सच है कि मैं कभी ब्रज के आसपास भी नहीं गई। पतंजलि योग में एक सूत्र है- भव प्रत्यय। जो पहले हो चुका है। गीता में भी वासुदेव कहते हैं, ‘‘किसी का भी योग कभी नष्ट नहीं होता। अगले जन्म में यात्रा उसके आगे से ही शुरू होती है। मेरी बस इसी में रुचि रही है। आज तक और कुछ नहीं रुचता, बस कर्तव्य, कर्म और ग्रंथों में डूबे रहना, यही मेरा संसार है। दूसरी बात, जब तक आप मन, वचन, कर्म से शुद्ध नहीं होते, तब तक वासुदेव आपके हृदय में रुकेंगे ही नहीं। फिर आप ग्रंथों का अनुवाद कैसे कर सकते हैं? अंतर्मन की शुद्धता, वैचारिक शुद्धता और अंतर्बोध का दिव्यता से जुड़ाव आवश्यक है। पतंजलि योग में भी चित्त वृत्ति निरोध की बात है। इसके बिन ज्ञान बाहर नहीं आता है।

ज्ञान ग्रंथों में क्या आकर्षण है? जीवन का सार क्या है? 
शंकराचार्य ने कहा है-‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या।’ लेकिन यह हिरण्यमय जगत है। उपनिषद् के तीसरे श्लोक में ही श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘यह जगत जैसा दिख रहा है, यह आपकी दृष्टि का सत्य है, यह तथ्य, तत्व और सत्व का सत्य नहीं है। जो शाश्वत नहीं है, वह सच है ही नहीं। जिसका क्षय है, जिसका विनाश है, जो परिवर्तनशील है, उसे जगत मिथ्या कहते हैं। बरगद का बीज बहुत छोटा होता है, लेकिन इसका वृक्ष विशाल और बहुत पसरा हुआ होता है। तत्वदर्शी बीज में ही वृक्ष को देख लेता है। जिसे सत्य, तत्व, शाश्वती की प्यास है, वह इधर आएगा। हर युग में सत्य तो एक ही है- सूरज पूरब में उगता है और पृथ्वी घूमती है। जिज्ञासु, बीज में वृक्ष को देखने की दृष्टि रखेगा। वृक्ष बीज का विस्तार है और बीज वृक्ष का सार। यह तत्व दृष्टि जिसे आती है, वह सत्य की खोज में निकल पड़ता है और वही तत्ववेत्ता कहलाता है। सांख्य योग दर्शन में सत्कार्यवाद आता है। बिना कारण के कार्य नहीं हो सकता। कारण क्या है- बीज और कार्य क्या है-वृक्ष। यही मोक्ष है। निष्काम कर्मयोग यही है। जब तक कामना रहेगी, कारण रहेगा और पसारा लेता रहेगा। जन्माष्टमी के दिन अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जब इसका विमोचन किया, तब उन्होंने कहा, ‘‘मृदुल, गीता तो तुमने लिखी दी। अब इसे एक वाक्य में बताओ।’’  कठिन प्रश्न था। मैं अनगढ़ क्या कहती, लेकिन वासुदेव ने उत्तर दिया, ‘‘श्रीकृष्ण जगत से कह रहे हैं कि तुम परिणाम की इच्छा करते हो और मैं इच्छा का परिणाम जानता हूं।’’ सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुए।

 आपने इतने ग्रंथों को काव्य रूप दिया। इनमें आपका सबसे प्रिय कौन-सा है? 
अष्टावक्र गीता परम कोटि का वैराग्य है। यह निर्बीज करने और निर्जीव रहने की कला है। वैदिक, आर्ष, भारतीय ज्ञान परम्परा एक ही बात कहती है, अप्प दीपो भव। पतंजलि के तीसरे सूक्त में कहा गया है- तदा द्रष्टु: स्वरूपेऽवस्थानम्। अर्थात् अपना ही स्वरूप देख लो। कब देख लो? जब जीवन अनुशासित हो अर्थात् अथ योग अनुशासनम्। अनुशासन यानी वाणी, विचार, व्यवहार, आचरण, जीवन शैली। चित्त की वृत्तियों के स्वरूप जानने होंगे, तब आप निर्धारण कर पाएंगे। देखना होगा कौन-सी अवस्था है? मूढ़, क्षिप्त, विक्षिप्त या एकाग्र। तब आता है ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध।’ चित्त की अवस्था निरुद्ध हो जाती है। दुनिया का जो भी प्राणी है, उसने अपने विचारों से स्वयं को गढ़ा है।

आर्ष ग्रंथों से उपजे जीवन-संकल्पों के बारे में बताएं।
आज मनसा, वाचा, कर्मणा, इन सच्चरित्र बातों का अभाव है और भौतिकता हावी है। सभी ब्रांडेड कपड़े पहनना चाहते हैं। लेकिन रोटी तो गेहूं से ही बनेगी। भले ही कहीं यह 200 रुपये, कहीं 20 रुपये में मिले। आधार तो वही रहेगा। ब्रांडेड कपड़े पहन कर आप अपने पैसों से कंपनी का प्रचार कर रहे हैं। लेकिन कुछ संकल्प भी होने चाहिए। जैसे- चमड़े का उपयोग न करें। ऐसा करके अपने स्तर पर किसी पशु को तो बचा ही सकते हैं। मैं दहेज के खिलाफ रही। बच्चों की शादी में एक धागा भी दहेज में नहीं लिया। आप स्वयं से शुरू कीजिए। कुछ संकल्प अच्छे होते हैं। जैसे अभी हिंदी पराई होती जा  रही है। घर-घर में हिंदी वर्णमाला सिखाई जाए, ऐसा अभियान आपके माध्यम से चले। सही उच्चारण और वैज्ञानिकता के साथ हिंदी सिखाई जाए तो यह अभियान जन-आंदोलन का रूप ले लेगा।

काव्यानुवाद में वृहद् व्याख्या का स्वातंत्र्य कितना है?
‘विवेक चूड़ामणि’ के श्लोकों के अनुवाद में ढाई-तीन महीने लग गए। एक तरफ वृहद् व्याख्या और एक ओर अनुवाद की सीमा। दोहे में 13-11-13-11 और अंत में लघु में लाना।
     रत शरीर पोषण मगर 
       आत्म तत्व की चाह 
       पार करत नत पकड़ जस
       काष्ठ बुद्धि से ग्राह 
इसका अर्थ समझने के लिए गहरे उतरना पड़ेगा। शरीर के पोषण में लगे रहकर आत्म तत्व की चाह उसी प्रकार है कि भवसागर में जीव जा रहा है, डूबते-डूबते उसे लकड़ी मिली, जिसे पकड़ कर किनारे आ गया। जीव आनंदित हुआ, लेकिन देखा कि जिस लकड़ी को पकड़ कर भवसागर पार किया वह तो मगरमच्छ था। इंद्रियों के पोषण में लगे लोग भवसागर को उसी तरह पार करते हैं जैसे मगरमच्छ के ऊपर बैठे हों।

    आज मनसा, वाचा, कर्मणा, इन सच्चरित्र बातों का अभाव है और भौतिकता हावी है। सभी ब्रांडेड कपड़े पहनना चाहते हैं। लेकिन रोटी तो गेहूं से ही बनेगी। भले ही कहीं यह 200 रुपये, कहीं 20 रुपये में मिले। आधार तो वही रहेगा। ब्रांडेड कपड़े पहन कर आप अपने पैसों से कंपनी का प्रचार कर रहे हैं। लेकिन कुछ संकल्प भी होने चाहिए। जैसे- चमड़े का उपयोग न करें। ऐसा करके अपने स्तर पर किसी पशु को तो बचा ही सकते हैं। मैं दहेज के खिलाफ रही। बच्चों की शादी में एक धागा भी दहेज में नहीं लिया। आप स्वयं से शुरू कीजिए। कुछ संकल्प अच्छे होते हैं। जैसे अभी हिंदी पराई होती जा  रही है। घर-घर में हिंदी वर्णमाला सिखाई जाए, ऐसा अभियान आपके माध्यम से चले। सही उच्चारण और वैज्ञानिकता के साथ हिंदी सिखाई जाए तो यह अभियान जन-आंदोलन का रूप ले लेगा। 

आपने जो काम किया है, उसे डिजिटल रूप या पाठ्यक्रम में लाने की कोई योजना है? 
साल 2000 की बात कर रही हूं। तब टाइप करती थी। काम के सिलसिले में हजार बार उठाना पड़ता था और जब लौट कर आती थी तो सब गायब मिलता था। ‘सेव’ सिस्टम स्ट्रांग नहीं था। उस जमाने में ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरीय, तैत्तरीय, श्वेताश्वर इन नौ उपनिषदों, भगवद् गीता और अष्टावक्र गीता के श्लोकों के काव्यानुवाद 20 वर्ष पहले सबको सौंप चुकी हूं। ‘कविता कोश मृदुल’ से खोजकर लाखों लोग उन्हें पढ़ चुके हैं। ऋषि-मुनियों की तरह गृहस्थ में भी संन्यस्त रहते हुए किया, तभी ये काम हो सका। ईशावास्योपनिषद् का एक ही मंत्र अपने आप में एक पूरा ग्रंथ बन जाए।  ‘त्यक्तेन भुंजीथा:’ यानी त्याग करते हुए भोग करो। दूसरा, ‘इदं न मम्’ यानी यह मेरा नहीं है। यह एक तरह से जीवन का संविधान है। जब ममता का, आसक्ति का बंधन हो जाता है, तो यह छूटता भी है। छोड़ने के साथ आपकी आसक्ति नि:शेष होगी। हां, पाठ्यक्रम के लिए पतंजलि योग दर्शन लिखने का कार्य मिला है। इसका प्रारूप बना रही हूं। इस पतंजलि योग दर्शन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विमोचन किया था। ग्रंथ एक बात है, लेकिन पाठ्यक्रम के लिए कुछ श्लोक लिए हैं, जिससे सार आ आए और कुछ छूटे नहीं।

इस धरोहर को आगे ले जाने वाला कोई पात्र मिला?
समानांतर रुचि वाला भी कोई नहीं मिला। सराहना तो बहुत मिलती है, लेकिन इसमें उतरने वाला नहीं मिलता है। ये इंटॉक्सिकेशन है, नशा, दीवानगी, फितूर है। इसके सिवाय कुछ रुचता ही नहीं है। अपनी एक प्रिय रचना सुनाती हूं।

आ गया तट
देह के तटबंध सारे खोल दो 
नेह के अनुबंध और 
आसक्तियों से बोल दो 
अब मेरा पीछा करें ना 
स्वत्व में अपने रहें 
पांच भौतिक तत्व सारे 
  गेह अब निज-निज रहें 
मैं चली शत तत्व लेकर 
असत को लेकर परे 
मैं चली अस्तित्व लेकर 
देह धरती पर धरे 
  पाप सारे, पुण्य सारे 
न्यायकर्ता तोल दो 
  आ गया तट, देह के 
  तटबंध सारे खोल दो।

    ‘पाञ्चजन्य’ का आभार! मैंने सबसे पहले जब  1988 में सामवेद का अनुवाद किया था, तब ‘पाञ्चजन्य’ ने ही पहली बार मई के अंक में इस कार्य को स्थान दिया था। ‘पाञ्चजन्य’ ने अपनी बात कहने का फिर मंच दिया, उसके लिए पुन: आभार। आखिर में पाठकों के लिए उस परिपूर्ण ब्रह्म, ईश्वर की  पूर्णता के लिए छांदोग्योपनिषद् के मंत्र का अनुवाद प्रस्तुत कर रही हूं-
       पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।

अर्थात्

       परिपूर्ण ब्रह्म है पूर्ण ब्रह्म 
       ये जगत भी प्रभु पूर्ण है, 
       परिपूर्ण ब्रह्म की पूर्णता से 
       पूर्ण जगत संपूर्ण है, 
       उस पूर्णता में पूर्ण घटकर 
       पूर्णता ही शेष है, 
       परिपूर्ण प्रभु परमेश की 
       ये पूर्णता ही विशेष है।

Topics: साधना और जीवन-सारविवेक चूड़ामणिPrasnaविश्व हिंदी सम्मानManasaMandukyaलोक-भाषाVachaShvetashwarनौ उपनिषद्- ईशKarmanaBhagavadgitaकेनIndian Knowledge Booksगृहस्थ-जीवनAshtavakra GitaकठSadhana and Jeevan-Sarभगवद्गीताPatanjali Yoga Darshanप्रश्नVishwa Hindi SammanमनसाVivek Chudamani family lifeमांडूक्यLok-Bhashaवाचाभारतीय ज्ञान ग्रंथों के काव्यानुवादश्वेताश्वरNine Upanishads- Ishकर्मणाडॉ. मृदुल कीर्तिअष्टावक्र गीताKenभारतीय ज्ञान ग्रंथभारतीय शिक्षा प्रणाली और समाजपतंजलि योग दर्शनKath
ShareTweetSendShareSend
Previous News

पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट से तीन लोगों की मौत, अवैध कारखाना चलाने और विस्फोटक एकत्रित करने वाले 34 गिरफ्तार

Next News

मुख्तार अंसारी के शार्प शूटर अंगद राय की 10 करोड़ की संपत्ति कुर्क, गैंगस्टर एक्ट के तहत हुई कार्रवाई

संबंधित समाचार

पद्म पुरस्कार 2023 : कला से बदला कैदियों का जीवन

पद्म पुरस्कार 2023 : कला से बदला कैदियों का जीवन

गृहस्थ रहते हुए समाज, राष्ट्र व ईश्वरीय कार्य करना सिखाया

गृहस्थ रहते हुए समाज, राष्ट्र व ईश्वरीय कार्य करना सिखाया

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

दिल्ली हत्याकांड : खुद को सन्नी बताता था मोहम्मद साहिल, सच्चाई जान गई थी साक्षी

दिल्ली हत्याकांड : खुद को सन्नी बताता था मोहम्मद साहिल, सच्चाई जान गई थी साक्षी

हाजी आरिफ के कब्जे में थी सिंचाई विभाग की जमीन, प्रशासन ने की कुर्क

हाजी आरिफ के कब्जे में थी सिंचाई विभाग की जमीन, प्रशासन ने की कुर्क

भगत सिंह के प्रेरणा पुरुष थे वीर सावरकर

भगत सिंह के प्रेरणा पुरुष थे वीर सावरकर

दुनिया का 5वां सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट बना भारत

दुनिया का 5वां सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट बना भारत

कटनी : मिशनरी संस्था द्वारा नाबालिग बच्चों को किया जा रहा था मतांतरण के लिए प्रेरित

कटनी : मिशनरी संस्था द्वारा नाबालिग बच्चों को किया जा रहा था मतांतरण के लिए प्रेरित

टुकड़े-टुकड़े टूलकिट

टुकड़े-टुकड़े टूलकिट

मोहम्मद साहिल ने साक्षी पर इतने वार किए कि निकल आईं आतें, सिर के कर दिए थे टुकड़े

मोहम्मद साहिल ने साक्षी पर इतने वार किए कि निकल आईं आतें, सिर के कर दिए थे टुकड़े

#JusticeForSakshi: साक्षी के दोषी साहिल को तत्काल फांसी की सजा देने की मांग, न्याय के लिए एबीवीपी ने निकाला कैंडल मार्च

#JusticeForSakshi: साक्षी के दोषी साहिल को तत्काल फांसी की सजा देने की मांग, न्याय के लिए एबीवीपी ने निकाला कैंडल मार्च

आईएसआईएस से जुड़े संदिग्ध आतंकियों ने बनाया था “27 साल” का प्लान

आईएसआईएस से जुड़े संदिग्ध आतंकियों ने बनाया था “27 साल” का प्लान

उत्‍तरकाशी : नाबालिग छात्रा को भगाकर ले जाने वाला उबेद और उसका साथी गिरफ्तार, हिंदू संगठनों का फूटा गुस्सा

उत्‍तरकाशी : नाबालिग छात्रा को भगाकर ले जाने वाला उबेद और उसका साथी गिरफ्तार, हिंदू संगठनों का फूटा गुस्सा

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • जी20
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • संघ
  • राज्य
  • Vocal4Local
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • विज्ञान और तकनीक
  • खेल
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • साक्षात्कार
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • जीवनशैली
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • संविधान
  • पर्यावरण
  • ऑटो
  • लव जिहाद
  • श्रद्धांजलि
  • Subscribe
  • About Us
  • Contact Us
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies