बिहार में जातीय उन्माद पैदा कर राजद के सत्तासीन होने के सपने पर पटना उच्च न्यायालय ने अल्पविराम लगा दिया है। गत 6 माह से महागठबंधन के नेताओं द्वारा लगातार जातीय उन्माद वाले वक्तव्य दिए जा रहे थे। जातिगत जनगणना के प्रथम चरण के शुरू होते ही राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर ने रामायण पर विवादित बयान दिया। दूसरे चरण के प्रारंभ होने पर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री उपाख्य बागेश्वर बाबा के बिहार प्रवास पर बेतुके बयानों की होड़ लग गई। राज्य के दो दो मंत्रियों ने अपने दम पर उन्हें कार्यक्रम करने पर रोक देने की धमकी तक दे डाली। सवर्णों और विशेषकर ब्राह्मणों पर उल्टे पुल्टे बयान दिए जाने लगे। लगता था कि जातीय उन्माद के लहर पर महागठबंधन 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 का बिहार विधान सभा चुनाव में अपनी नैया पार कराने का जुगाड़ लगा रहा है। परन्तु पटना उच्च न्यायालय ने इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
पटना उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि जाति आधारित गणना पर अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाती है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने एक साथ 5 याचिका पर सुनवाई कर यह फैसला सुनाया है। अपने फैसले में जाति आधारित जनगणना के तहत अब तक जुटाए गए डेटा को शेयर करने और इस्तेमाल करने पर भी पाबंदी लगा दी है। पटना उच्च न्यायालय का यह अंतरिम आदेश है। अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।
पटना उच्च न्यायालय का मानना है कि जाति आधारित सर्वे एक प्रकार की जनगणना है। जनगणना करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकार जाति आधारित जनगणना नहीं करा सकती है। यह मौलिक अधिकार से जुड़ा मसला है। सर्वे और जनगणना में अंतर होता है। सर्वे में किसी खास समूह का डाटा एकत्रित कर उसका विश्लेषण किया जाता है, जबकि जनगणना में प्रत्येक व्यक्ति का विवरण इकट्ठा किया जाता है। जाति आधारित सर्वे एक प्रकार की जनगणना है और इसका अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे लगातार सही ठहराते रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले अपने पैतृक गांव कल्याण बिगहा जाकर जातिगत जनगणना के दूसरे चरण की शुरुआत की थी। मुख्यमंत्री बार बार 1931 की जातिगत जनगणना का उद्धरण देते हैं। परंतु उस समय बिहार में सिर्फ 83 जातियां थीं। तथाकथित प्रगतिशील, स्वयंभू समाजवादी और वामपंथी दल समाज में जातिगत भेद के लिए ब्राह्मण को दोषी मानते हैं। लेकिन समय समय पर जातियों को अपने हिसाब से बांटने की साजिश कांग्रेस और समाजवादी व वामपंथी विचारधारा के राजनैतिक दल ही करते रहे हैं। 7 जनवरी, 2023 से प्रारंभ हुई जातिगत जनगणना में 214 जातियों का सर्वेक्षण हो रहा है। इसमें मुस्लिमों की 29 जातियां हैं। इसमें किन्नर को भी एक जाति माना गया है। जेपी आंदोलन से निकले राजनेता ही जाति उन्माद फैला रहे हैं। जबकि जेपी ने ‘जाति तोड़ो, समाज जोड़ो’ का नारा दिया था।
पूर्व विधान पार्षद और स्तंभकार हरेंद्र प्रताप पांडेय जातिगत जनगणना के स्वरूप पर सवाल उठाते हैं। उनका मानना है कि जिस प्रकार 1990 में आरक्षण के पक्ष – विपक्ष में सामाजिक विभाजन और सामाजिक कटुता का दंश देश ने झेला था, वैसा ही माहौल फिर से बनाने की कोशिश हो रही है।
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