डीलिस्टिंग : "जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं", भोपाल में जुटे 40 जिलों के जनजातीय समाज के लोग
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डीलिस्टिंग : “जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं”, भोपाल में जुटे 40 जिलों के जनजातीय समाज के लोग

महारैली में गर्जना, मतांतरित हो चुके लोगों को न दें योजनाओं का लाभ

by WEB DESK
Feb 10, 2023, 07:19 pm IST
in भारत
भोपाल में डीलिस्टिंग को लेकर जुटे जनजातीय समाज के लोग

भोपाल में डीलिस्टिंग को लेकर जुटे जनजातीय समाज के लोग

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भोपाल। जो लोग जनजाति समाज की संस्कृति और पूजा-पद्धति से अलग हो गए हों, उन्हें नौकरियों, छात्रवृत्तियों में आरक्षण और शासकीय अनुदान का लाभ नहीं देने और ऐसे लोगों की डी-लिस्टिंग की मांग को लेकर जनजातीय समुदाय ने शुक्रवार को भोपाल के भेल दशहरा मैदान में डी-लिस्टिंग गर्जना महारैली निकाली। इसमें प्रदेश के जनजातीय समाज के 40 जिलों से हजारों लोग शामिल हुए। इसका आयोजन जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से किया गया। रैली में जनजातीय समुदाय ने अपने हक के लिए हुंकार भरी और कहा कि मतांतरण करने वालों को आरक्षण समेत विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं मिलना चाहिए। जनजाति नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे दिल्ली कूच भी करेंगे।

जनजातीय सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संगठन मंत्री कालू सिंह मुजाल्दा ने कहा कि मतांतरित व्यक्ति को जनजाति के अधिकार नहीं मिलने चाहिए। ऐसे लोग, जो जनजातीय कोटे से नौकरी में आए और फिर मत परिवर्तन कर वनवासी परंपराओं-पूजा पद्धतियों को छोड़ दिया, उन्हें वनवासियों की सूची से हटाएं। यानी डी-लिस्टिंग की जाए। गांव-गांव में जाकर पंच से लेकर सांसदों और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर हमने समर्थन की मांग की है।

जनजातीय समागम में जनजाति सुरक्षा मंच के उपाध्याक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि वनवासियों के लिए चल रही योजनाओं का लाभ वे लोग भी ले रहे हैं, जो मतांतरण कर चुके हैं। यह गलत है। ईसाई वनवासी नहीं हैं क्योंकि वे उन परंपराओं को नहीं मानते हैं, जिन्हें वनवासी मानते हैं। हमारा समाज प्रकृति पूजक हैं। हम बलि देते हैं, पंचभूतों की पूजा करते हैं, ईसाई नहीं। मतांतरण कर चुके लोग वनवासियों की सूची में नहीं है। उनका लाभ लेना हमारे अधिकारों पर अतिक्रमण है।

जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक कैलाश निनामा ने कहा कि डी-लिस्टिंग सिर्फ आरक्षण से जुड़ा विषय नहीं बल्कि जनजातीय समाज के स्वाभिमान का विषय है। यह जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और अस्तित्व की चिंता से जुड़ा हुआ विषय है। बाबूजी कार्तिक उरांव ने कांग्रेस सांसद रहते हुए 1967 में इस विषय पर चिंता जताई थी। आज जनजातीय समाज और पूरा देश जानना चाहता है कि आखिर वह क्या वजह थी कि जो सांसद देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर रहे थे उनके समर्थन के बाद भी यह बिल आज भी संसद में लंबित है। इस पर संसद को पुन: विचार करके इस विधेयक को लागू करना चाहिए। हमें डी-लिस्टिंग के लिए पूरे देश का समर्थन एवं सहयोग चाहिए।

जो लोग वनवासी समाज की मूल पहचान, प्रकृति को छोड़कर चले गए हैं। जहां वे जनजातीय समाज की रूढ़ि परंपराओं को नहीं मानते हैं और जनजातीय अधिकारों पर अतिक्रमण करते हैं, इन्हें डी-लिस्टिंग किए जाने की मांग उठी है, क्योंकि वे अभी भी वनवासियों को मिलने वाले लाभ का फायदा उठा रहे हैं। इससे वनवासी पीछे छूट रहे हैं।

भेल दशहरा मैदान में कार्यक्रम के बाद समुदाय के लोगों ने गर्जना महारैली निकाली। इस रैली में लोग हाथों में झंडे, बैनर लेकर डी-लिस्टिंग की मांग करते हुए आगे बढ़े। सुरक्षा इंतजाम के मद्देनजर पुलिस ने अन्ना नगर रोड पर लोगों का आवागमन बंद कर दिया। रैली अन्ना नगर चौराहे पर पहुंची, जहां बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ इसका समापन हुआ।

Topics: मतांतरण योजनाभोपाल में गर्जना महारैलीजनजातीय सुरक्षा मंचजनजातीय समाजडीलिस्टिंग
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