उत्तराखंड में पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार के नेतृत्व में बनाई गई भू-कानून सुधार समिति की बैठक एक बार फिर बे नतीजा रही। भूमि सुधार के लिए इस समिति को 6 माह में अपनी रिपोर्ट देनी थी, परंतु इसका कार्यकाल बार-बार बढ़ता ही जा रहा है।
उत्तराखंड में जनसंख्या असंतुलन की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है, सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं। बाहरी लोग आकर यहां बेरोक टोक बसते जा रहे हैं, जिससे देवभूमि की संस्कृति प्रभावित हो रही है। ये बात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी विभिन्न मंचों से कह चुके हैं कि जनसंख्या असंतुलन से उत्तराखंड देवभूमि का सांस्कृतिक स्वरूप प्रभावित हो रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले यहां के युवा वर्ग ने एक आंदोलन सोशल मीडिया में शुरू किया था जिसे “उत्तराखंड माने सशक्त भू-कानून” हैशटैग की जरिए बहुत ज्यादा प्रचार मिला। जिस पर बीजेपी और अन्य पार्टियों ने नोटिस किया। धामी सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार समिति का गठन किया और ये बताने की कोशिश की थी कि बीजेपी इस मुद्दे पर संवेदनशील है।
उत्तराखंड के मूल निवासी यहां बढ़ती जा रही मुस्लिम आबादी से चिंतित हैं। असम के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी उत्तराखंड में बढ़ने के रिकॉर्ड दर्ज हुए हैं। हिमाचल राज्य से यदि तुलना की जाए तो वहां राज्य बनने के दौरान दो फीसदी मुस्लिम आबादी थी जो आज भी इसी के आसपास है, जबकि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी सोलह प्रतिशत तक पहुंच रही है और मैदानी जिलों में तो पैंतीस फीसदी तक पहुंच गई है। पहाड़ों से लोगों का पलायन हो रहा है क्योंकि वहां सरकारें बुनियादी ढांचा मजबूत नहीं कर पाई हैं। इसके लिए भी पलायन समाधान के लिए आयोग बना हुआ है उसकी बैठकें भी चल रही हैं।
पूर्व मुख्य सचिव और समिति के प्रमुख सुभाष कुमार मूलतः हिमाचल के रहने वाले हैं और उन्हें उत्तराखंड कैडर के योग्य अफसर के रूप में भी जाना जाता रहा है, लेकिन उनके तजुर्बे यहां अभी तक कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं दर्शा पाए हैं। उनके द्वारा भू-कानूनों में सुधार के लिए कुमायूं मंडल से सुझाव मांगे जाते हैं। यहां यूपी की तर्ज पर बना कुमायूं जमींदारी विनाश भूमि सुधार कानून एक्ट 1966 लागू है, जबकि गढ़वाल में जौनसार बावर जमींदारी उन्मूलन भूमि सुधार एक्ट 1956 लागू है। यानी राज्य बनाने के बाद उत्तराखंड का अपना कोई भूमि संबंधी कानून नहीं बनाया जा सका है।
उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्ती और चकबंदी भी लंबे समय से नहीं हुई है, जिसकी वजह से लोगों को ये तक पता नहीं चल पा रहा है कि उनकी जमीन किस-किस हिस्से में है। इस बात का फ़ायदा भू-माफिया उठाते रहे हैं। लचर भू-कानून व्यवस्था के चलते ही यहां अवैध कब्जे कर लोग बसते जा रहे हैं और सरकारी तंत्र बेबसी से सोया हुआ है। बार-बार ये कहा तो जाता है कि उत्तराखंड संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है, किंतु इसका स्थाई समाधान खोजने में नौकरशाही और जन प्रतिनिधियों की कोई रुचि नहीं है।
भू-कानून सुधार के लिए जब-जब बैठकें हुईं उनमें बिल्डर, उद्योगपतियों को कृत्यों को लेकर चर्चा होती है और इन पर दोनों मंडलों से मंतव्य रिपोर्ट मांगने की कार्रवाई के बाद बैठक आगे की तारीख के लिए टल जाती है। सचिव राजस्व सचिन कुर्वे के मुताबिक अगले सप्ताह फिर भूमि सुधार संबंधी बैठक होगी। उम्मीद है उसमें सकारात्मक सुझाव सामने आएंगे। राज्य के हित के लिए भू-कानून, अधिनियम में सुधार समय की भी जरूरत है।
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