नागौर के पद्मश्री हिम्मताराम भांभू अब तक साढ़ पांच लाख पौधे लगा चुके हैं। इनके बसाए जंगल में 300 से अधिक मोर और पशु-पक्षी आसरा पाए हुए हैं। भांभू वन्यजीवों के शिकार के विरुद्ध भी संघर्षरत
राजस्थान के नागौर जिले के रहने वाले 70 वर्षीय पद्मश्री हिम्मताराम भांभू पर्यावरण संरक्षण का पर्याय बन गए हैं। भांभू 1975 से अब तक साढ़े पांच लाख पौधे लगा चुके हैं, इनमें से साढ़े तीन लाख पेड़ बन चुके हैं। उन्होंने छह हेक्टेअर का 11 हजार वृक्षों वाला एक जंगल भी लगाया है। इसमें 300 मोरों समेत कई तरह के पक्षी विहार करते हैं। पर्यावरण में उल्लेखनीय योगदान के लिए भांभू को पद्मश्री सम्मान मिला है।
भांभू का जन्म 1952 में नागौर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर सुखवासी गांव में हुआ। संयुक्त परिवार में पले-बढ़े भांभू को पौधे लगाने की प्रेरणा अपनी 95 वर्षीया दादी से मिली। भांभू ने पांच्यजन्य से विशेष बातचीत में बताया- ‘मैं जब 18 वर्ष का था, तब पीपल का पौधा उखाड़कर लाया, दादी ने इसे एक सार्वजनिक मंदिर के चबूतरे के पास लगवाया। आज वह पीपल विशाल वृक्ष बन गया है।’ हम प्रतिवर्ष पीपल का जन्मदिन मनाते हैं। दादी कहती थीं, पेड़ लगाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है, इसी ध्येय वाक्य को मैंने गांठ बांध लिया।
भांभू आजीविका चलाने के लिए ट्रैक्टर मिस्तिरी बने, लेकिन वृक्षारोपण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं हुई। वे एक पुरानी जीप लेकर नागौर जिले के गांव-गांव में पौधे बांटते थे। आगे चलकर यह काम उनका मिशन बन गया। किसानों को जागरूक करने के लिए उन्होंने 2500 से ज्यादा पर्यावरण संगोष्ठियां कीं, 3222 वन महोत्सव और 130 पर्यावरण चेतना सम्मेलन करा चुके हैं। पौधे लगाने का संदेश देने के लिए वे 1472 किलोमीटर पैदल यात्रा भी कर चुके हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में उनके कार्य के लिए भांभू को बीते 45 वर्षों में 500 से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं।
वन्यजीव संरक्षण में भी सक्रिय
हिम्मताराम ने 1999 में नागौर से 12 किलोमीटर दूर हरिमा गांव में छह हेक्टेअर जमीन खरीदी और उस पर 11 हजार पौधे लगाकर एक समृद्ध जंगल तैयार कर दिया। यहां 300 मोर और पशु-पक्षी प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं। जंगल के चारों और कंटीली बाड़ है। वे पक्षियों के लिए प्रतिदिन 20 किलो चुग्गा डालते हैं और 300 जगह परिंदों के लिए पानी भरते हैं। जंगल में रेंगने वाले जीवों को भी शरण मिल रही है।
दुनिया में सर्वप्रथम पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था। जम्भेश्वर का जन्म 571 साल पहले नागौर से 40 किलोमीटर दूर पीपासर में हुआ था। उन्होंने 29 नियमों की आचार संहिता बनाई थी। इनमें दो आचार संहिताएं पर्यावरण को समर्पित थीं। एक, हरे पेड़ों को कोई नहीं काटेगा, दूसरी, मूक जीव को कोई परेशान नहीं करेगा। जम्भेश्वर के सिद्धांतों पर चलते हुए खेजड़ी में 365 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया था।
हिम्मताराम 1992 से पीपुल फॉर एनिमल संस्थान के साथ जुड़कर वन्यजीव संरक्षण में भी सक्रिय हैं। उन्होंने शिकारियों के खिलाफ 28 मुकदमे दर्ज करवाए। घायल वन्यजीवों की सेवा में भी भांभू की टीम तत्पर है। अब तक 2500 वन्यजीवों का उपचार करवाकर जंगल में छोड़ चुके हैं।
भांभू ने बताया कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का फिल्म प्रभाग भांभू की कहानी पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बना रहा है। हिंदी और अंग्रेजी भाषा में बनने वाली यह फिल्म पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए देशभर में दिखाई जाएगी।
हम गुरु जम्भेश्वर के उपासक हैं
भांभू भगवान जम्भेश्वर को अपना गुरु मानते हैं। उन्होंने दुनिया में सर्वप्रथम पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था। जम्भेश्वर का जन्म 571 साल पहले नागौर से 40 किलोमीटर दूर पीपासर में हुआ था। उन्होंने 29 नियमों की आचार संहिता बनाई थी। इनमें दो आचार संहिताएं पर्यावरण को समर्पित थीं। एक, हरे पेड़ों को कोई नहीं काटेगा, दूसरी, मूक जीव को कोई परेशान नहीं करेगा। जम्भेश्वर के सिद्धांतों पर चलते हुए खेजड़ी में 365 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया था।
भांभू कहते हैं कि आज ‘सात ज’ पर ध्यान देनें की जरूरत है। इनमें जल- जंगल- जीव- जमीन- जैविक- जलवायु और सातवीं जनसंख्या है। हमें जनसंख्या विस्फोट को रोकना होगा।
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