देश में कुछ लोग मानसिक महामारी से पीड़ित हैं। चायनीज वायरस को जो लोग फैला रहे थे, उनके बचाव में उन लोगों ने ‘इस्लामोफोब’ का बहाना खोज लिया। एक अजीब सा माहौल बनाया गया। अब वे संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया को लेकर एक दिन निर्धारित करना चाहते हैं, जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया है।
एक अप्रत्यक्ष शत्रु से लड़ते हुए भारत के अंदर स्थितियां कुछ ऐसी हो चली हैं, जिसमें बड़े से बड़े देश का राष्ट्राध्यक्ष भी घुटने टेक दे। इसके बावजूद भारत बहुत ही मजबूती से लड़ रहा है और आगे भी बढ़ रहा है। आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा और घनत्व के हिसाब से एक जटिल देश भारत ने चायनीज वायरस से लगातार लड़ाई लड़ी और दुनिया के सामने उदाहरण पेश किया। यह बात भी कुछ लोगों की आंख की किरकिरी बन गया था।
कोरोना महामारी जब चरम पर थी तब मोना बिन्त फाहद ने अपने ट्वीट में जो लिखा, उसका सार यह है, ‘‘भारत में मुसलमानों की तकलीफों के पीछे आरएसएस है, जिसे वर्तमान सरकार का समर्थन प्राप्त है’’। इसके साथ ही उसने यूएन, यूरोपियन यूनियन और ओआईसी से निवेदन किया कि ‘आरएसएस को आतंकवादी संगठन मानकर काली सूची में डाल दें।’
उस दौरान मोहम्मद मजहर नामक एक युवा का ट्वीट। इसमें उसने दुबई के लोगों को उकसाने के लिए लिखा है, ‘‘सोनू निगम, जो इन दिनों दुबई में हैं, को अजान की आवाज से समस्या है, उनकी इस समस्या का समाधान कर दें।’’
तब्लीगी जमात के प्रवक्ता मुजीबुर्रहमान को पत्रकार मीनाक्षी जोशी द्वारा ट्वीटर पर दिया गया करारा जवाब
देश के अंदर ‘अल्लाह की एनआरसी’; ‘मोदी की चाल’ तो कहीं ‘दीन के लोगों को कोरोना नहीं होता’ जैसी बातें इस तेजी से फैलीं कि यह अपने आपमें भारत के अंदर एक महामारी बन चुकी है, मानसिक महामारी! जब इस देश के लोगों ने हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई को चरितार्थ करने के हर प्रयास किए तब कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इस विश्वास को तोड़ने में लगे थे। भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ मुसलमान कभी अरबी शेखों के पग नहीं पखारता है, लेकिन एक सोच ऐसी डाली गई जिसमें इस देश के मुसलमानों को इस देश की संस्कृति से इतर जाकर ऐसा महसूस कराया गया जैसे यह धरती उनके लिए कोई युद्धक्षेत्र है जिसे उन्हें जीतना है। ऐसा दिखाने का प्रयास किया जाता है जैसे देश के अल्पसंख्यक आबादी में अकेले वही हैं, जबकि वे इस देश के दूसरे बड़े बहुसंख्यक हैं।
तब्लीगी जमात का मामला कुछ वैसा ही था, जहां ऐसी ही सोच के लोगों के जमावड़े ने पूरे देश में चायनीज वायरस का दंश फैला दिया। लेकिन उससे भी खतरनाक वह सोशल मीडिया था, जहां इस प्रकार के जहर को हवा दी गई। कोई मेरठ के बाजारों में घूमता हुआ दिखाई दिया, तो कोई देश के प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए, किसी को मास्क मात्र ‘एक कपड़े का टुकड़ा’ लगता था, तो किसी को यह ‘अल्लाह की एनआरसी’ लगती थी। पढ़े-लिखे लोगों को इसमें यदि तब्लीगियों की गलती लगती भी थी तब भी वे सरकार को ही दोषी ठहराते हुए कहते कि आखिर सरकार क्या कर रही थी? जबकि प्रशासन और सरकार द्वारा हर गली, मोहल्ले में यह घोषणा की जा रही थी कि कोई भी विदेशी यदि छुपा हुआ है तो उसको हमारे हवाले कर दें, हम उनका इलाज करेंगे।
अब नया चलन शुरू हुआ। विदेशों में, और विशेष रूप से खाड़ी देशों में नौकरी कर रहे एक विशेष समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया। ‘इस्लामोफोबिया’ नाम का एक ऐसा शब्द उछाल कर उन सभी लोगों की नौकरियों को समाप्त करने का प्रयास किया गया, जिन्होंने गलत को गलत कहने का साहस किया था। उन भारतीयों के एकाउंट्स को सोशल मीडिया पर रिपोर्ट किया गया, जिन्होंने तब्लीगी जमात और मौलाना साद के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई थी।
प्रख्यात गायक सोनू निगम द्वारा पांच वक्त की अजान पर किया गया आग्रह, और उसके बाद उनका सिर कलम करके लाने वाले को इनाम दिए जाने की घोषणा करने वाले मौलाना की खबर याद होगी। सोनू का इतना कहना था कि, ‘क्या ईश्वर से आप लाउडस्पीकर पर अजान देने से ही जुड़ सकते हैं? कहा जाता है कि देश में सबको अपने मत-पंथ पर चलने का अधिकार है, ठीक भी है, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आपके अधिकारों के साथ क्या आपको अपनी जिम्मेदारियों का आभास है?’ इसके बाद सोनू को परेशान करने के लिए ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया मंच से आह्वान किया गया।
क्या मुस्लिमों को यह महसूस होता है कि यदि उनके किसी कार्य से लोगों को तकलीफ होती है तो वे उसका समाधान निकालें? यह प्रश्न सभी के मन में है, बस सोनू निगम ने यह बात स्पष्ट रूप से बोली, जिसके बाद इतना अधिक दबाव बनाया गया कि उनको अपना एकाउंट हटाना पड़ा। स्वयं वह जिस क्षेत्र में काम करते हैं उसी क्षेत्र का बुद्धिजीवी वर्ग इस पूरी घटना पर शांत था। यह वर्ग आज भी शांत है, जैसे वह कोई मूकदर्शक हो। स्पष्ट है कि यदि आप हमारे किसी गलत कार्य के विरुद्ध बोलेंगे, तो आपका यही अंजाम होगा।
ऐसा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है जैसे देश के अंदर ‘इस्लाम विरोधी’ लहर चल रही है। सवाल यह है कि किसी की गलतियों को उजागर करना इस्लाम विरोधी कैसे? दुनिया में जब चायनीज वायरस जैसी भयंकर बीमारी चल रही है तब इस देश में कुछ लोग भगवान के रूप में कार्य कर रहे चिकित्सकों पर थूकते हैं, पत्थर मारते हैं, तब प्रश्न और गंभीर हो जाता है कि इस प्रकार की जाहिलियत आखिर फैली कैसे?
सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि सभी प्रकार की सुविधाएं देने के लिए जिस प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा किया जाता है, वही प्रधानमंत्री जब आपके स्वास्थ्य के लिए एक आग्रह करता है तो आप उसको ही नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं? तालाबंदी को निरंतर असफल बनाने के प्रयास होते हैं और मुख्यत: उन जगहों पर जहां एक विशेष समुदाय के लोगों की आबादी अधिक है। भारत एक बड़े संकट से जूझ रहा है। सावधान रहें, जाहिलियत से दूर रहें।
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