गुजरात के अमदाबाद में 26 जुलाई, 2008 को किए गए सिलसिलेवार बम धमाकों के 13 साल बाद फैसला आया। विशेष अदालत ने 18 फरवरी को 38 दोषियों को फांसी तथा 11 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जो मरते दम तक जेल में रहेंगे। पीड़ित परिवारों ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। जिन्हें फांसी हुई है, वे सभी प्रतिबंधित आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के आतंकी हैं। इनके निशाने पर केवल गुजरात के निर्दोष लोग ही नहीं, बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे।
इससे पहले, विशेष अदालत ने इस साल 8 फरवरी को 49 आरोपियों को दोषी ठहराया था, जबकि 28 अन्य को बरी कर दिया था। पुलिस ने देश के 8 राज्यों से इन आतंकियों को गिरफ्तार किया था। हालांकि अभियोजन ने सभी 49 दोषियों को मौत की सजा सुनाने का अनुरोध किया था। इस मामले में 9 आरोपी अभी भी फरार हैं। एक वरिष्ठ सरकारी वकील के मुताबिक, बाद में चार और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनका मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है।
आतंकियों को जुर्माना भी देना होगा
अदालत ने 48 दोषियों में से प्रत्येक पर 2.85 लाख रुपये तथा एक पर 2.88 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। साथ ही, बम धमाकों में मारे गए लोगों के परिजनों को एक-एक लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को 50-50 हजार रुपये तथा मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। इस मुकदमे पर फैसला 2 फरवरी को ही आना था, लेकिन विशेष अदालत के जज ए.आर. पटेल 30 जनवरी को कोरोना संक्रमित हो गए, इसलिए फैसला 8 फरवरी तक टल गया था। फैसला सुनाते समय अमदाबाद में साबरमती सेंट्रल जेल, दिल्ली में तिहाड़, भोपाल, गया, बेंगलुरु, केरल और मुंबई समेत आठ राज्यों की जेलों में बंद सभी आतंकी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये मौजूद रहे। इस मामले में अब तक नौ अलग-अलग जजों ने सुनवाई की। सजा सुनाने वाले विशेष जज ए.आर. पटेल ने 14 जून, 2007 को सुनवाई शुरू की थी।
35 मामलों की एक जगह सुनवाई
अमदाबाद में 26 जुलाई, 2008 को आतंकियों ने शाम 7 बजे से 8:10 बजे के बीच सिविल अस्पताल, एल.जी अस्पताल, बसों, पार्किंग में खड़ी बाइक, कारों तथा बाजार सहित कई स्थानों को निशाना बनाया था। इन धमाकों में साइकिल और टिफिन बमों का प्रयोग किया गया था। इसमें 56 लोग मारे गए थे, जबकि करीब 250 लोग घायल हो गए थे। इन धमाकों के कुछ दिन बाद सूरत में 29 बम मिले थे। इस मामले में 35 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें अमदाबाद में 20 और सूरत में 15 मामले दर्ज किए गए थे। लेकिन एक ही मामले से जुड़ा होने के कारण इनकी सुनवाई एक ही जगह शुरू की गई। विशेष अदालत सभी मामलों की सुनवाई कर रही थी। हालांकि 2009 में 78 लोगों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ था, लेकिन एक आरोपी सरकारी गवाह बन गया था। अदालत ने सितंबर 2021 में आईएम के सभी 77 आतंकियों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई पूरी कर ली थी। 2009 से 2021 के दौरान अभियोजन पक्ष ने 547 आरोप-पत्र दाखिल किए। सुनवाई के दौरान 1163 लोगों की गवाही हुई।
‘कुरान का फैसला मानेंगे’फांसी की सजा पाने वाले सिमी के 6 आतंकी भोपाल की जेल में हैं। इन्हीं में से एक है सफदर नागौरी, जो बम धमाकों का मास्टरमाइंड है। उसने कहा है, ‘‘हमारे लिए संविधान मायने नहीं रखता। हम कुरान का फैसला मानते हैं।’’ उज्जैन निवासी नागौरी पर देशभर में 100 से अधिक मामले दर्ज हैं। उसके खिलाफ 1997 में महाकाल पुलिस थाने में पहला मामला दर्ज किया गया था। 11 दिसंबर, 2000 को उसे भगोड़ा घोषित किया गया था। 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद वह भूमिगत हो गया। बता दें कि भोपाल की जेल में अभी सिमी के 24 आतंकी बंद हैं। सफदर नागौरी और जाहिद शेख, दोनों पर विस्फोटक जुटाने और प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी की अवैध गतिविधियों के लिए धन जुटाने के आरोप हैं। वहीं, कपाड़िया ने फर्जी दस्तावेजों के जरिये सिम कार्ड हासिल किए थे और होटलों में ठहरने के लिए इनका प्रयोग किया था। बम धमाके में शामिल आतंकी अपना हुलिया बदलते रहते थे, ताकि गवाह उन्हें पहचान न सकें। |
‘इन्हें छोड़ना आदमखोर तेंदुए को छोड़ने जैसा’
फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे लोगों को समाज में रहने की अनुमति देना एक आदमखोर तेंदुए को लोगों के बीच खुला छोड़ने जैसा होगा। ऐसे लोग आदमखोर तेंदुए की तरह होते हैं, जो बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं, पुरुषों और नवजात समेत समाज के निर्दोष लोगों और विभिन्न जातियों एवं समुदायों के लोगों को खा जाता है। इसलिए दोषियों को मौत की सजा देना ही उचित होगा, क्योंकि यह मामला ‘अत्यंत दुर्लभ’ की श्रेणी में आता है। विशेष न्यायाधीश ए.आर. पटेल ने अपने फैसले में कहा कि दोषियों ने शांतिपूर्ण समाज में अशांति पैदा की और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया। उनके मन में संवैधानिक तरीके से चुनी गई केंद्र सरकार और गुजरात सरकार के प्रति कोई सम्मान नहीं है और इनमें से कुछ सरकार और न्यायपालिका में नहीं, बल्कि केवल अल्लाह पर भरोसा करते हैं। इस तरह की आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाले लोगों के लिए मृत्युदंड ही एक मात्र विकल्प है, ताकि शांति व्यवस्था कायम रखी जा सके तथा देश व नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। अदालत ने कहा कि खासकर सरकार को उन दोषियों को जेल में रखने की कोई जरूरत नहीं है, जिन्होंने कहा है कि वे अपने अल्लाह के अलावा किसी पर विश्वास नहीं करते। देश की कोई भी जेल, उन्हें हमेशा के लिए जेल में नहीं रख सकती।
मोदी की हत्या की थी साजिश
विशेष अदालत के अपने फैसले में यह भी कहा कि अमदाबाद में आतंकियों के निशाने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे। विस्फोट में घायल लोगों को जिन अस्पतालों में भर्ती किया जा रहा था, वहां आतंकियों ने इसलिए बम लगाए, क्योंकि नरेंद्र मोदी वहां घायलों को देखने जा सकते थे। विशेष लोक अभियोजक अमित पटेल के अनुसार, आतंकियों के निशाने पर केवल मोदी ही नहीं, गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, वरिष्ठ मंत्री आनंदीबेन पटेल, नितिन पटेल, स्थानीय विधायक प्रदीप सिंह जाडेजा और सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप परमार (मौजूदा मंत्री) भी थे। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे लोगों को समाज में रहने की अनुमति देना आदमखोर तेंदुए को लोगों के बीच खुला छोड़ने जैसा होगा, जो समाज के निर्दोष लोगों को खा जाता है। दोषियों को मौत की सजा देना ही उचित होगा, क्योंकि यह मामला ‘अत्यंत दुर्लभ’ की श्रेणी में आता है। |
… इसलिए उदाहरण बना फैसला
यह पहला मौका है, जब किसी अदालत द्वारा एक मामले में इतनी बड़ी संख्या में दोषियों को मौत की सुजा सुनाई गई है। इससे पहले, जनवरी 1998 में तमिलनाडु की एक टाडा अदालत ने 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। अदालत ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा कि उनका अपराध मुख्य षड्यंत्रकारियों के मुकाबले कम गंभीर था। पर यह तय है कि इन्हें मरने तक कैद में रखने से कम सजा दी गई तो ये फिर इसी तरह का अपराध करेंगे और दूसरे अपराधियों की मदद भी करेंगे। कुछ दोषियों के इस तर्क पर कि मुसलमान होने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, अदालत ने कहा कि भारत में करोड़ों मुसलमान रहते हैं और कानून का पालन करते हैं। जांच अधिकारियों ने उन्हें ही क्यों गिरफ्तार किया? अगर विस्फोट में दूसरे लोग शामिल होते तो उन्हें भी गिरफ्तार किया जाता। इसलिए उनका तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता। जांच करने वाले लोग जिम्मेदार अधिकारी हैं। अदालत का फैसला 7,015 पन्नों का है।
इन जगहों पर हुए थे धमाकेसिविल अस्पताल । एलजी अस्पताल । खाडिया । बापूनगर । गोविंदवाडी । रायपुर चकला । ठक्करबापा नगर । सारंगपुर । ईसनपुर । सरखेज । जवाहर चौक । नरोडा । नारोल सर्कल । हाटकेश्वरइन्हें हुई फांसीजिन 38 आतंकियों को फांसी हुई, उनमें गुजरात के 14, उत्तर प्रदेश के 8, महाराष्ट्र के 6, मध्य प्रदेश के 5, केरल व कर्नाटक के 2-2, हैदराबाद का एक आतंकी शामिल है। इनके नाम हैं- जाहिद शेख, इमरान इब्राहिम, इकबाल कासम, शमसुद्दीन शेख, ग्यासुद्दीन अंसारी, मोहम्मद कागजी, मोहम्मद उस्मान, यूनुस मंसूरी, मोहम्मद साजिद, अब्बास समेजा, जावेद शेख, मो. इस्माइल, कयामुद्दीन कपाडिया, मो. रफीक, शैफुर रहमान, मुफ़्ती अबु बशर शेख, मो. आरिफ, मो. सैफ शेख, तनवीर पठान, जीशान अहमद, मो. शकील लुहार, जिया उर रहमान, अफजर उस्मानी, मो. आरिफ, आसिफ शेख, मो. अकबर, फजले रहमान, तौसीफ खान पठान, कमरुद्दीन चांद मोहम्मद नागौरी, आमिल परवाज, सफदर नागौरी, आमिन शेख, मो. मोबिन, सीबली अहमद करीम, सादुली ए. करीम, अहमद बावा बरेलवी, हाफिज हुसैन और सरफुद्दीन सलीम
इन्हें उम्रकैद11 आतंकियों को उम्रकैद की सजा हुई है। इन्हें आखिरी सांस तक जेल में रहना होगा। इनमें राजस्थान के 3, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के 2-2, गुजरात, केरल, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के 1-1 आतंकी शामिल हैं। इनके नाम हैं- अतीक उर रहमान, मेहंदी हसन अंसारी, इमरान अहमद पठान, अनित खालिक सैयद, मोहम्मद सादिक शेख, मोहम्मद शफीक अंसारी, मोहम्मद अली अंसारी, रफीउद्दीन कपाड़िया, मोहम्मद अंसार नदवी, मोहम्मद नौशाद सैयद और मोहम्मद अबरार मणियार
ये हुए बरीसबूतों के अभाव में बरी होने वाले लोगों के नाम इस प्रकार हैं- जाहिद शेख, नवेद कादरी, सलीम सिपाही, मोहम्मद जहीर पटेल, हसीब रजा सैयद रजीयद्दीन नासर, उमर कबीरा, सुहेब पोट्टनिकल, अब्दुल सत्तार, मोहम्मद जाकिर, मोहम्मद मंसूर, मुबीन शेख, मोहम्मद इरफान, कामरान शाहिद, मोहम्मद यूनुस, मोहम्मद शाहिद नागौरी, ईदी सैनुद्दीन, अनवर बागवान, मोहम्मद यासीन, नासिर अहमद, शकील अहमद, नदीम सैयद, मोहम्मद शमी, असदुल्लाह असद, अहमद बेग मिर्जा, हबीब अहमद, मंजर इमाम और अफाक इकबाल
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गोधरा दंगों का बदला
अभियोजन पक्ष का तर्क था कि आईएम के आतंकियों ने गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए बम धमाके की योजना बनाई थी। 70 मिनट में साइकिल पर 21 बम धमाके किए गए थे। बम टिफिन में रखे गए थे। पहला धमाका मणिनगर के एक भीड़भाड़ वाले बाजार में हुआ। मणिनगर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसभा क्षेत्र था। इसके बाद अमदाबाद की भीड़भाड़ वाली 21 जगहों पर बम धमाके हुए। मणिनगर में कुल तीन बम विस्फोट हुए थे, जबकि पुलिस ने दो जिंदा बम भी बरामद किए थे। दो विस्फोट एल.जी. अस्पताल और सिविल अस्पताल में भी हुए थे, जहां इलाज के लिए विस्फोट में घायल हुए लोगों को लाया जा रहा था। ये धमाके कार में रखे गैस सिलेंडर से किए गए थे। इंडियन मुजाहिद्दीन ने इन हमलों की जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि उसने गोधरा दंगे का बदला लेने के लिए ये हमले किए। इन हमलों में सिमी के आतंकी भी शामिल थे। विस्फोट करने से महज पांच मिनट पहले आतंकियों ने न्यूज एजेंसियों को ई-मेल भेजा था, जिसमें बम धमाकों को रोकने की चुनौती दी गई थी।
घटनास्थल पर गए थे मोदी
बम धमाकों के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटनास्थल पर जाने की इच्छा जताई थी। लेकिन तत्कालीन पुलिस कमिश्नर पी.सी. पांडेय यह कहते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की कि गांधीनगर से अमदाबाद आना सुरक्षित नहीं होगा। फिर भी अमित शाह के साथ मोदी अमदाबाद गए और पुलिस कमिश्नर कार्यालय में बैठक की। उन्होंने पुलिस अधिकारियों से कहा था, ''आप विस्फोट करने वालों को पकड़ो, यही देश की सेवा होगी।’’ इसके बाद पुलिस जांच में आतंकी माड्यूल का पर्दाफाश भी हुआ। उत्तर प्रदेश के हरदोई में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमदाबाद बम धमाकों को याद करते हुए कहा, ‘‘मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकता हूं। उसी दिन मैंने संकल्प लिया कि मेरी सरकार इन आतंकवादियों को ढूंढेगी और उन्हें दंडित करेगी। मैं इतने सालों तक चुप रहा, क्योंकि अमदाबाद विस्फोट की सुनवाई चल रही थी। आज जब अदालत ने आतंकवादियों को सजा सुनाई है तो मैं अब देश के सामने मामला उठा रहा हूं, क्योंकि कुछ राजनीतिक दल आतंकवाद के प्रति विनम्र रहे हैं। यह देश के लिए बहुत खतरनाक है।’’
आतंकी बोले- सरकारी गवाह झूठा
मौत की सजा पाए तीन आतंकियों मो. इकबाल कागजी, शमसुद्दीन शेख और कयुमुद्दीन कपाड़िया का कहना है कि सरकारी गवाह ने झूठी गवाही दी है। आरोपी से गवाह बने अयाज सैय्याद का बयान आतंकियों को सजा दिलाने में कारगर साबित हुआ। शेख का कहना है कि वह अयाज के साथ साबरमती जेल की एक ही बैरक में था। वहीं दोनों की पहचान हुई। शेख अंग्रेजी और अरबी भाषा का जानकार है, अयाज को यह मालूम था। बकौल, शेख वह खेल से लेकर अकादमिक स्पर्धाओं में अयाज को हरा देता था। इसलिए उसके प्रति अयाज के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई थी। दोनों इस्लाम के अलग-अलग सम्प्रदाय के हैं। अयाज, सुन्नी बरेलवी है, जबकि शेख गैर-बरेलवी सुन्नी है। अयाज ने बदला लेने के लिए झूठा बयान दिया है। वहीं, इकबाल कागजी ने कहा कि अयाज मान बैठा था कि वह कभी बरी नहीं हो पाएगा, इसलिए सरकारी गवाह बनकर झूठी गवाही देकर दुश्मनी निकाली। कयामुद्दीन का कहना है कि अधिकारियों की धमकी और लालच के कारण अयाज सरकारी गवाह बना।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे लोगों को समाज में रहने की अनुमति देना आदमखोर तेंदुए को लोगों के बीच खुला छोड़ने जैसा होगा, जो समाज के निर्दोष लोगों को खा जाता है। दोषियों को मौत की सजा देना ही उचित होगा, क्योंकि यह मामला ‘अत्यंत दुर्लभ’ की श्रेणी में आता है।
चार माह तक घर नहीं गए अधिकारी
शुरू में गुजरात पुलिस ने मामले की जांच कर रही थी। बाद में राज्य सरकार ने तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त आशीष भाटिया की निगरानी में अमदाबाद अपराध शाखा को जांच का जिम्मा सौंप दिया। भाटिया अभी गुजरात के पुलिस महानिदेशक हैं। अमदाबाद के संयुक्त पुलिस आयुक्त आर.वी. अंसारी के अनुसार, पूरे देश से आतंकियों को खोज कर गिरफ्तार किया गया। जांच दल में 350 पुलिस अधिकारी शामिल थे और सभी पर बहुत दबाव था। टीम ने चार महीने तक दिन-रात एक कर मामले का खुलासा किया। इस दौरान कोई घर नहीं गया। अंसारी ने बताया कि कर्नाटक से एक आरोपी को लाते समय कहा गया कि आईएम के आतंकी हमला कर सकते हैं। इसलिए अधिकारी पानी पीने के लिए भी कहीं नहीं रुके, वे 1163 किमी की दूरी तय कर सीधे अमदाबाद में ही रुके। उन्होंने कहा कि बम बनाने में अमोनियम नाइट्रेट, लकड़ी के फ्रेम, बैटरी, दीवार घड़ी आदि का प्रयोग किया गया था। इससे पहले बम बनाने में उन्होंने कभी इस तरह के सामानों का प्रयोग होते नहीं देखा।
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