पाकिस्तान के दक्षिण में स्थित मुल्तान आठवीं सदी तक अपने प्राचीन सूर्य मन्दिर व प्रहलाद पुरी के नृसिंह मन्दिर आदि के कारण देश के अत्यन्त विशाल व समृद्ध नगरो में था। ईसा पूर्व काल से आरम्भिक ईस्वी सदियों तक ग्रीक व फारसी इतिहासकारों ने इसे स्वर्ण नगरी कहा है।
भव्य सूर्य मन्दिर : सातवीं सदी के चीनी यात्री व्हेनत्सांग के इस मन्दिर की भव्यता एवं देश भर से आने वाले तीर्थ यात्रियों व मन्दिर की आय के वर्णनों के अनुसार यह स्थान तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर, तिरुवनन्तपुरम के पद्मनाभस्वामी और नाथद्वारा के श्रीनाथजी मन्दिरों से न्यून नहीं था। सिकन्दर भी इस मन्दिर की भव्यता पर सम्मोहित हो गया था। समृद्ध हाट बाजारों से युक्त मुल्तान विश्व के विशालतम नगरों में था। मन्दिर को महमूद गजनवी द्वारा 1026 में तोड़कर यहां6000 अधिकारियों व कर्मचारियों एवं लगभग 1200 परिचारिकाओं की हत्या कर दी गई या उन्हें गुलाम बना कर ले गया था।
प्रहलादपुरी का नृसिंह मन्दिर: मुल्तान का प्रहलादपुरी स्थित नृसिंह मन्दिर भी अत्यन्त भव्य था। कनिघंम, जो 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक थे, ने यह भी उल्लेख किया है कि जनश्रुति के अनुसार आठवीं सदी में अरब आक्रमण में इसे नष्ट किए जाने तक इस मन्दिर के स्तम्भ स्वर्ण मण्डित थे। डा.ए.एन.खान के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह की मुल्तान विजय के बाद हिन्दुओं ने 1818 में इस मन्दिर के पुनरुद्वार के प्रयत्न किए थे। एलेक्जेण्डर बर्नेस ने भी 1831 में प्राचीन नृसिंह मन्दिर के स्तम्भों व अवशेषों का वर्णन किया है। प्रहलादपुरी प्रहलाद व हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। यहीं भक्त प्रहलाद व हिरण्यकश्यप का महल था और भगवान नृसिंह का प्राकट्य हुआ। हिरण्यकश्यप के पिता ऋषि कश्यप से ही सूर्य सहित देवता एवं जीव सृष्टि उत्पन्न हुई थी। इसलिए यह मूल-स्थान कहलाता रहा है जिसका अपभ्रंश मुल्तान है।
इतिहास
ईसा पूर्व 515 अर्थात् 2537 वर्ष पहले एडमिरल स्काईलेक्स ने भी मुल्तान के अति विशाल व समृद्ध सूर्य मन्दिर विशाल नगर का उल्लेख किया है। हीरोडॉट्स (484-425 ईसा पूर्व) ने भी इस मन्दिर की भव्यता वर्णन किया है। ईस्वी 641 में व्हेनत्सांग व 957 ईस्वी में अल हस्ताखरी ने यहां इसी परिसर में शिव एवं बुद्ध की प्रतिमा होने का भी उल्लेख किया है। इससे सनातन वैदिक व बौद्ध मत की एकता प्रकट होती है। व्हेनत्सांग ने 641 ईसवी में व इतिहासकार अलहस्ताखरी ने 957 ईस्वी में यहां अकूत सोने, चान्दी व रत्नों के भण्डार बताए हैं। ईसा पूर्व 60-30 के बीच के इतिहास लेखक डायाडोटस (ईस्वी 95-175) और स्ट्राबो (ईसा पूर्व 63-24 ईस्वी) आदि ने मुल्तान को अथाह वैभव और उस काल के देश के सबसे बड़े नगरों में बताया है। अल बरूनी के अनुसार यह सूर्य मन्दिर 2,16,432 वर्ष पुराना माना जाता रहा है। ऐसा पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के हैदराबाद से1978 में प्रकाशित से डॉ. मुमताज हुसैन के अनुसन्धान पर आधारित पुस्तक हिस्ट्री आॅफ सिन्ध सीरीज, खण्ड 2 में उद्धृत है।
ब्रिटिश पुरात्वविदों के विवरणों के अनुसार मुल्तान के मन्दिरों में सूर्य मन्दिर व प्रहलादपुरी का भगवान नृसिंह का मन्दिर अत्यन्त विशाल, समृद्ध व प्राचीन रहे हैं। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वापर युगीन एवं नृसिंह अवतार का काल सतयुगीन होने से मुल्तान मानव सभ्यता का महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक स्थल है। |
ईसा पूर्व 326 में सिकन्दर के आक्रमण के समय मुल्तान में विष बुझा तीर लगने से वह घायल हुआ था जिससे उसने यहां भयानक आगजनी कर दी थी। सिकन्दर एवं गजनवी की आगजनी की एक मोटी राख की परत को 1861 में कनिंघम ने यहां खुदाई करा कर खोज भी लिया था।
सूर्य प्रतिमा के प्राचीन विवरण : भगवान सूर्य के इस मन्दिर में लोग अपनी आय का आधा हिस्सा तक अर्पित कर देते थे। मुस्लिम इतिहासकार इब्न बल नदीम (932-998) के अनुसार सूर्य की इस प्रतिमा की ऊंचाई 7 गज व मन्दिर की ऊंचाई 180 गज थी। इस मन्दिर को 1026 में महमूद गजनवी के ध्वस्त करने पर इसे मुल्तान के हिन्दुओं ने एक बार पुन: बना लिया था। अलबरूनी ने ग्याहरवीं सदी के उत्तरार्द्ध में अपनी मुल्तान यात्रा में वही नई काष्ठ प्रतिमा
देखी थी।
षड्यंत्रपूर्वक मुल्तान पर कब्जा
सिंध पर विजय के बाद, 713 ईस्वी में मुहम्मद बिन कासिम ने मुल्तान पर आक्रमण किया था। वह अलोर के शासक राजा चच से हारने को था। तब उसने मुल्तान की जलापूर्ति की नहर को अवरुद्ध कर मुल्तान पर कब्जा किया था। मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिन्ध व मुल्तान विजय के बाद भी 1026 तक मुस्लिम आक्रान्ताओं ने मन्दिर को दो कारणों से सुरक्षित रखा। प्रथम मन्दिर की चढ़ावे की आय जो कुल राजस्व की 30प्रतिशत थी और दूसरा आसपास के हिन्दू राजाओं द्वारा सिन्ध व मुल्तान की मुक्ति के लिए चढ़ाई करने पर इस मन्दिर व इसकी प्रतिमा को नष्ट करने का भय दिखला कर उन्हें लौटने को विवश कर दिया जाता था। इसका उल्लेख किताब अलमसीदी लेखक मुरूज अघ-घहाब ने मदीन अल जवाहिर, आई पृष्ठ 167 और किताब डी गोएजे ले. इब्न हकल (228-29) में किया है।मुहम्मद गौरी ने 1175 में मुल्तान पर आक्रमण कर दिया था। कालांतर में अहमदशाह अब्दाली (1747) ने मुल्तान को जीतकर अफगानिस्तान में सम्मिलित कर लिया था।
इसके बाद पेशवानीत स्वराज परिसंघ अर्थात मराठाओं ने रघुनाथ राव और मल्हार राव के नेतृत्व में मुल्तान के किले पर स्वराज परिसंघ का भगवा ध्वज फहराने में सफलता अर्जित कर ली थी। बाद में 1818 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने इसे अफगानों से छीन लिया था जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
पौराणिक व प्राचीन वाङमय में मुल्तान
महाभारत में मुल्तान अर्थात कश्यपपुरा त्रिगर्त की राजधानी था और बाद में श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारा इसे अपनी राजधानी बनाए जाने से यह साम्बपुर भी कहलाता था। एलेक्जेण्डर कनिंघम जो 1861 में भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक बने, उन्होंने भी इसका प्राचीनतम नाम कश्यपपुरा लिखा है।
स्कंदपुराण के अनुसार (प्रभास खंड 278) ‘मूलस्थान’ (मुल्तान) के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के निकट देविका नदी बहती थी। अग्नि पुराण 200 में इस नदी को सौवीर देश के अंतर्गत बताया है।
‘सौवीरराजस्य पुरा मैत्रेय भूत पुरोहित: तेन चायतनं विष्णों: कारितं देविका तटे।’
मैत्रेय पुरोहित ने देविका तट पर विष्णु का देवालय बनवाया था। महाभारत, वनपर्व, भीष्मपर्व (9/16) व अनुशासन पर्व (25/21) में इस नदी का उल्लेख है।
नपदी वेत्रवती चैप कृष्णवेणां च निम्नगाम, इरावती वितस्तां च पयोष्णी देविकामपिह्य। (भीष्म पर्व 9/16)
‘‘देवकियामुपस्पृश्य तथा संदरिकाहृदे अश्विन्यां रूपवर्चस्कं प्रेत्य वैलभते नर:। अनुशासन पर्व 25/21’’
ईसा पूर्व से ग्याहरवीं सदी तक के ग्रीक, अरबी, फारसी लेखकों और उसके बाद ब्रिटिश पुरात्वविदों के विवरणों के अनुसार मुल्तान के मन्दिरों में सूर्य मन्दिर व प्रहलादपुरी का भगवान नृसिंह का मन्दिर अत्यन्त विशाल, समृद्ध व प्राचीन रहे हैं। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वापर युगीन एवं नृसिंह अवतार का काल सतयुगीन होने से मुल्तान मानव सभ्यता का महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक स्थल है।
(लेखक उदयपुर में पैसिफिक विश्वविद्यालय समूह के अध्यक्ष-आयोजना व नियंत्रण हैं)
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