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पावर प्वाइंट प्रस्तुति तक सीमित होकर रह गया एनजीओ वाले केजरीवाल का विकास मॉडल

आशीष कुमार अंशु by आशीष कुमार अंशु
Nov 11, 2021, 01:52 pm IST
in भारत, दिल्ली
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सुजित कुमार नाम के सूचना अधिकार कार्यकर्ता द्वारा निकाली गई जानकारी के अनुसार पिछले पांच साल में केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार को 658 करोड़ रुपए दिए। लेकिन आरटीआई का जवाब दिए जाने तक उन निधि से एक रुपया भी खर्च नहीं किया गया। 

दिल्ली में यमुना नदी से निकल रहे जहरीले झाग की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं। पत्रकार मिलिन्द खांडेकर लिखते हैं,''दिल्ली में यमुना के पानी में फ़ॉस्फ़ेट की जितनी मात्रा है, उतना साबुन या डिटर्जेंट में भी नहीं होता है।'' दिल्ली वाले इससे खतरे का अनुमान लगा सकते हैं और जो लोग दिल्ली से बाहर हैं वे समझ सकते हैं कि केजरीवाल सरकार ने यमुना का क्या हाल बना रखा है ? ऐसा हाल कि आज छठ महापर्व में भी छठ व्रती यमुना में नहीं उतर पाए। यमुना में छठ व्रतियों को ना उतरने देने के लिए केजरीवाल सरकार की तरफ से पहले ही पाबंदी लगाई जा चुकी थी। यमुना की इस बदहाली पर कवि कुमार विश्वास ने तंज किया — ''एक तो बेचारे 'लघुकाय-आत्ममुग्ध धूर्तेश्वर' फ़्री पानी के साथ-साथ साबुन-डिटर्जेंट भी फ़्री दे रहे हैं और आप जैसे दोष-दर्शक इसमें भी कमी निकाल रहे हैं ? आप “सब मिले हुए हैं जी”

 

उपरोक्त पंक्तियों से लगता है कि कवि ने 'लघुकाय-आत्ममुग्ध धूर्तेश्वर' संज्ञा का प्रयोग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के लिए किया है। यमुना और छठ पर पत्रकार मंजीत ठाकुर ने लिखा,''छठ पूजा पर देशभर से खूबसूरत तस्वीरें आ रही हैं। एक वीडियो मेलबर्न से भी आया। साफ सुंदर नदी देखकर मन प्रसन्न हो गया। और मन सन्न हो गया यमुना नदीं में सूर्य देव के इंतजार में कमर तक पानी में खड़ी छठ व्रतियों की तस्वीर देखकर। पहली नजर में लगा, कोई हिमनद है। फिर कड़वी वास्तविकता समझ में आई कि यह यमुना है। इसमें बर्फ कहां! इसमें तो गंदगी है, मल है, मूत्र है, सीवर है, अपशिष्ट है। हजार तरह के प्रदूषक हैं। और उनके बीच खड़ी है आस्था।'' ऐसे तो समुद्र, नदियों और झीलों में पानी के ऊपर झाग बनना एक आम प्रक्रिया है। यह झीलों में पानी के गिरते समय और नदियों और समुन्द्र में लहर उठते समय नजर आता है। लेकिन यमुना नदी की जो तस्वीरें वायरल हो रहीं हैं, उसमें दिख रहा झाग प्राकृतिक वजह से नहीं बना है। वह जहरीला है। सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला। सीएसई के अनुसार यमुना में फास्फेट की अधिक मात्रा हो जाने की वजह से यह झाग बन रहा है। फॉस्फेट का प्रयोग डिटर्जेंट और साबुन में होता है। वहां बनने वाले झाग की वजह फास्फेट ही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस रिपोर्ट को पढ़ने के दौरान कुछ लोग यमुना तक कपड़े धोने की चाह में पहुंच जाएं। यदि आप ऐसा सोच भी रहे हैं तो बिल्कुल यह विचार त्याग दें। यमुना के अंदर फॉस्फेट की मात्रा आवश्यकता से कहीं अधिक है। यमुना में पानी के अंदर 6.9 मिग्रा से 13.42 मिग्रा प्रति लीटर तक फॉस्फेट मौजूद है। यह पानी त्वचा रोग की वजह बन सकता है। इसके झाग से बचा जाना चाहिए। यह कई सारी बीमारियों की वजह बन सकता है। त्वचा में जलन पैदा कर सकता है।

शहर के नालों और कारखानों की गंदगी और रसायन को जब तक यमुना में मिलाया जाता रहेगा, यमुना की सफाई का कोई भी अभियान सफल नहीं हो सकता। सच्चाई तो यह भी है कि इस सफाई को लेकर दिल्ली की सरकार में भी कोई गंभीरता दिखाई नहीं दे रही। केजरीवाल ने जब दिल्ली में एनजीओ वाली सरकार बनाई तो ऐसा लगा था कि अपने स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं के माध्यम से वे दिल्ली का कायापलट कर देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली की स्थिति दिन प्रतिदिन और खराब होती चली गई। यमुना का पानी आचमन तो दूर अंदर उतरने के लायक भी नहीं बचा।

सुजित कुमार नाम के सूचना अधिकार कार्यकर्ता द्वारा निकाली गई जानकारी के अनुसार पिछले पांच साल में केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार को 658 करोड़ रुपए दिए। लेकिन आरटीआई का जवाब दिए जाने तक उन निधि से एक रुपया भी खर्च नहीं किया गया। 2020—21 में 225 करोड़ रुपए केजरीवाल सरकार को जल शक्ति मंत्रालय से हासिल हुआ लेकिन इस बार यमुना की ऐसी स्थिति बना दी गई कि वहां पूजा के लिए लोग घाट पर इकट्ठे भी नहीं हो सके।

सुजित अपनी आरटीआई को टवीटर पर साझा करते हुए लिखते हैं — ''मेरी आरटीआई के अनुसार पिछले पांच सालों में यमुना की सफाई के नाम पर केन्द्र सरकार ने 658 करोड़ रुपए केजरीवाल सरकार को दिए लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ ? एक बहुत बड़ा जीरो।‘’ दो साल पहले उत्तर पूर्वी दिल्ली के दुर्गापुरी चौक पर केजरीवाल ने टाउन हॉल किया था। यह टाउन हॉल केजरीवाल सरकार के पांच साल पूरे होने का उत्सव था। इसमें केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली के प्रदूषण पर उन्होंने 25 फीसदी नियंत्रण कर लिया है। अगले पांच साल में उन्होंने वादा किया था कि दिल्ली से प्रदूषण पूरी तरह खत्म
कर देंगे।

आज दो साल के बाद जब दिल्ली वाले अपने शहर को देख रहे हैं तो हालात सुधरने की जगह और बिगड़ा है। केजरीवाल की सरकार सिर्फ विज्ञापनों में चमक रही है। दिल्ली इस वक्त गंदगी, प्रदूषण और डेंगू से जूझ रही है। दो साल पहले ही केजरीवाल ने 2023 तक यमुना को 90 फीसदी साफ करने की बात की थी। इस बात को भी दो साल गुजर गए और यमुना के हालात दिल्ली वालों के सामने हैं।

केजरीवाल का एनजीओ मॉडल सिर्फ पावर प्वाइंट तक ही सीमित होकर रह गया है। सच्चाई यह है कि पावर प्वाइंट की प्रस्तुति को जमीन पर उतारने में केजरीवाल असफल साबित हुए हैं।

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