अमेरिका में 1806-65 तक चले गृहयुद्ध के कारण इंग्लैंड को रुई मिलना बंद हो गया तो वह भारत से रुई खरीदने लगा। इससे महाराष्ट्र के किसानों को फायदा हुआ। नतीजा, 1870 के आसपास अंग्रेज सरकार ने भूमि राजस्व लगभग डेढ़ गुना बढ़ा दिया, पर अमेरिका में हालात सुधरने के बाद महाराष्ट्र के किसानों की आय खत्म हो गई।
इसी बीच, भयंकर अकाल एवं सूखा पड़ा, जिससे अधिकांश तबाह हो गए। कर चुकाने के लिए किसान सस्ते में फसलें बेचने लगे। उन पर कर्ज कर्ज चढ़ने लगा। वे साहूकारों व सूदखोरों से कर्ज में डूब गए। उन्होंने किसानों की आधे से ज्यादा जमीनें खरीद लीं। इससे गुस्साए पूना के सिरूर गांव के किसानों व ग्रामीणों ने 1874 में साहूकारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया और आपस में मिलकर सहकारी दुकानें खोल लीं।
मई 1875 में किसानों का आंदोलन हिंसक हो गया। पूना और अहमदनगर में साहूकारों पर संगठित हमले हुए, पर सरकार ने अत्याचारियों का साथ दिया। 1879 में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में किसानों ने बंदूक और तलवार उठा लिए।
आम जनता, युवक व बुद्धिजीवी भी इसमें शामिल हो गए और आंदोलन पूरे महाराष्ट्र में फैल गया। फड़के की सेना ने अंग्रेजी सरकार को नाकों चने चबवा दिए। जुलाई 1879 में बलवंत फड़के को उम्रकैद की सजा दी गई।
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