कुछ वर्ष पहले तक ऐसा था कि चीन से निर्मित झालर, लक्ष्मी–गणेश की मूर्तियां भारतीय बाजार में छाए हुए थे। गत चार वर्षों में उत्तर प्रदेश में स्वदेशी उत्पाद पर बल दिया गया। अब उसके बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं। लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में 16 अक्तूबर से चल रहे खादी सिल्क महोत्सव में अब तक साढ़े तीन करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री हो चुकी है। खादी महोत्सव में इस बार स्वदेशी उत्पाद छाए हुए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जनपद-एक उत्पाद’ की योजना, माटी कला बोर्ड से जुड़ी योजनाओं से लोग आत्मनिर्भर बन रहे हैं। वहीं इन स्वर्णिम योजनाओं के चलते स्वदेशी उत्पादों की मांग में तेजी से बढ़ी है।
खादी के साथ सिल्क और माटी के बेहतरीन उत्पाद लोगों को काफी पसंद आ रहे हैं। खादी महोत्सव से ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा मिल रहा है। लखनऊ की चिकनकारी, भदोही की कालीन, वाराणसी का सिल्क, गोरखपुर का टेराकोटा, फिरोजाबाद का गिलास, बंदायू की जरी जरदोजी जैसे उत्पादों की बड़े पैमाने पर बिक्री हो रही है। इसके साथ ही जूट, घास और बांस आदि के इको फ्रेंडली उत्पाद भी खूब बिक रहे हैं।
लखनऊ के गोमती नगर के संगीत नाटक अकादमी में लगे माटी कला मेले में लोग कुम्हारों द्वारा तैयार मिट्टी के उत्पाद खरीद रहे हैं। मिट्टी के तैयार दीपक, गणेश – लक्ष्मी की मूर्तियां और अन्य सजावटी समान की बिक्री हो रही है। मेले में 100 स्टॉल लगाए गए हैं, जिसमें प्रयागराज, गोरखपुर, बनारस, लखनऊ, आजमगढ़ समेत कई जनपदों के शिल्पकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले साढ़े चार वर्षों में चीन के उत्पादों की चमक फीकी पड़ गई है।
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