हितेश शंकर
पंजाब का नया घटनाक्रम पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह का त्यागपत्र हो चुका है और चरणजीत सिंह चन्नी नए मुख्यमंत्री बना दिए गए हैं। यह मुखिया बदलने भर की कवायद भर नहीं है। इसके पीछे मुखिया के लिए मुठभेड़ की कहीं ज्यादा बड़ी कहानी छिपी है और लोगों की दिलचस्पी इसे जानने में ज्यादा है कि इस चेहरा बदल के पीछे चाल किसकी है, कितनी है, और कैसी है। दरअसल, कांग्रेस ऊपर से हंसती और प्रसन्न नजर आ रही है। परंतु सत्य यह है कि पंजाब में उसे अरसे से बड़ी भारी चोट लगी है। कांग्रेस किस गति को प्राप्त हो चुकी है, यह देखना हो तो उसकी भाषा देखिए, उनकी बात प्रथम पुरुष में, एकवचन में होती है, संगठन की बात नहीं होती।
2015 की बात है जब पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा के नाम को लेकर तनातनी थी। अमरिंदर सिंह को वे मंजूर नहीं थे। राहुल गांधी का जोर था। अमरिंदर राहुल गांधी के दिल्ली दरबार में पहुंचे। कांग्रेस के ‘युवराज’ की रुखाई उनके करीबियों को भले रास आती हो परंतु वह स्वयं कांग्रेस के लिए घातक हो सकती है, यह बात तब सोनिया गांधी ने समझी थी और नसीहत दी थी कि आप उस व्यक्ति से बहुत तमीज से पेश आएं जो आपके पिता का दोस्त है।
बात अमरिंदर सिंह की हो रही थी। अमरिंदर राजीव गांधी के सहपाठी थे। अपने स्कूली दिनों में उन्हें जवाहर लाल नेहरू के आवास पर छुट्टियां बिताने का न्योता तक मिलता था। मगर जहां न्योता मिलता था, वहीं अमरिंदर को यह अपमान का घूंट पीना पड़ा। क्षत्रपों का अपमान यह पूरा चक्र है जो राहुल के आने के बाद कांग्रेस में बदला है। जो पार्टी के लिए समर्पित लोग थे, जिनका जनाधार था, उनके साथ ये घटनाएं बहुत आम हो गर्इं। यह सिर्फ एक व्यक्ति की बात नहीं है, इससे कांग्रेस में जो परिवर्तन आया है, वह क्यों आया है, कांग्रेस क्यों राज्यों में छीज गयी है, इन प्रश्नों का उत्तर मिलता है।
दूसरी बात यह है कि चन्नी की ताजपोशी को कांग्रेस में मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह तुरुप का इक्का है। ज्यादा दिलचस्प यह कि इस बात को पार्टी के प्रवक्ताओं के अलावा कोई और नहीं कह रहा। पार्टी के प्रवक्ताओं की मजबूरी हो सकती है, परंतु बाकी लोग जानते हैं कि ‘मास्टर स्ट्रोक’ तो चारों खाने चित्त कर देता है, जबकि यहां कहानी दूसरी थी। घोषणा से चंद मिनट पहले तक किसी को पता नहीं था कि कौन-सा पत्ता फिट हो जाएगा। इसलिए जो आ गया, उसे तुरुप का इक्का बताना किसी के गले नहीं उतर रहा।
सुखजिंदर सिंह रंधावा के बयान ने तो कांग्रेस की मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने कहा था कि पंजाब में कांग्रेस को हिंदू चेहरा (सुनील जाखड़) के बजाय जट्ट सिख को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए। वायरल वीडियो में जाखड़ का यह प्रश्न खूब घूम रहा है कि कांग्रेस को यह चेहरा क्यों खटकने लगा? पहले जब जाखड़ पर भरोसा किया गया था, जो उनकी गैर सिख पहचान बाधक नहीं थी, परंतु अचानक उसको मुद्दा बनाना बताता है कि कांग्रेस पंजाब में जो जातीय राजनीति खेल रही है, उसमें अब उसके क्षत्रप भी उसका साथ छोड़ रहे हैं।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब आप एक व्यक्ति का चयन करते हैं तो उसकी सांगठनिक क्षमता देखते हैं, अन्य बातों में वरीयता देखते हैं, इस तरीके से चयन प्रक्रिया होती है। लेकिन चन्नी के मामले में लगता है कि खामियां ही खूबियां बन गर्इं। और ये कथित खूबियां ही कांग्रेस के गले की हड्डी बन गई हैं। चन्नी के मामले में बताया गया कि वे दलित समुदाय से हैं, पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री मिला है। एक सवाल सोशल मीडिया में भी गूंज रहा था कि गुरुओं की भूमि रहे जिस पंजाब में सिखों में कोई भेद नहीं था, वहां कांग्रेस जाति व्यवस्था की डुगडुगी क्यों पीट रही है? कांग्रेस क्या पंजाब में गुरुओं की लीक से अलग हो गई है? जब सिखों में जाति नहीं होती तो फिर कांग्रेस सिखों में ये जाति कहां से ले आई?
इसके अलावा चन्नी के ईसाई झुकाव की बात सामने आई है। यह बात सामने आना ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि पंजाब की वर्तमान परिस्थितियों में गुरुओं की परंपरा को विनष्ट करके कन्वर्जन का तंत्र वहां बड़ा प्रभावी हुआ है। पंजाब इस समय उसकी आस्था की सबसे बड़ी आखेट भूमि बना हुआ है। दुनिया की सबसे बड़ी कन्वर्जन मुहिम वहां पर चल रही है। चन्नी के बारे में कहा जा रहा है कि वे कन्वर्टेड हैं। हैं या नहीं, पता नहीं। परंतु कन्वर्जन के षड्यंत्र पर वे सख्ती बरत पाएंगे, इस पर संदेह जरूर है।
दूसरी एक और बात है कि चयन के लिए संवेदनशीलता और महिला सम्मान भी दो कसौटियां हो सकती हैं। चन्नी के चयन ने उन पर लगे ‘मी टू’ के आरोपों को भी हवा दी है। याद कीजिए केन्द्रीय कैबिनेट में शामिल एम.जे.अकबर पर जब ‘मी टू’ के आरोप लगे थे, तो उन्होंने मंत्री पद छोड़ दिया था। आरोप सही थे या गलत, उसकी बात ना भी करें, परंतु ऐसे ही आरोप चन्नी पर भी थे। अब यहां देखिए, आरोप लगने पर एक व्यक्ति कैबिनेट का पद छोड़ता है और दूसरी तरफ, जिस पर ऐसे आरोप हैं, ऐसे व्यक्ति को बड़े जोर-शोर से लाकर मुख्यमंत्री पद पर बैठाया जाता है। कांग्रेस यह किस तरह के प्रतिमान स्थापित करना चाहती है? सभ्य समाज में तो ये सवाल उठेंगे और उठने लाजमी भी हैं।
और अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात, अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में जो बयान दिया है, उसे सिर्फ पार्टी की गुटबाजी कह कर नहीं टाला जा सकता। उन्होंने सिद्धू की पाकिस्तान से नजदीकियों की ओर इंगित किया और कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। नि:संदेह पंजाब हरियाणा, उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश जैसा राज्य नहीं है। यह अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे होने के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय भी है। ऐसे में अगर किसी की प्रगाढ़ता सीमा की दूसरी ओर है और दूसरी ओर का इलाका शत्रु देश की श्रेणी में है तो निश्चित ही यह प्रगाढ़ता संदेह और राष्ट्रीय सतर्कता का विषय बनती है।
सीमावर्ती प्रदेश होने से पंजाब पहले से ही विदेशी शक्तियों के निशाने पर रहा है। पंजाब में पहले जाली नोटों का कारोबार रहा, फिर ड्रग्स का कारोबार रहा और आज कन्वर्जन का कारोबार चल रहा है। इन सब में विदेशी शक्तियों, पाकिस्तान और अन्य देशों की रुचि रही है। ऐसे में पंजाब में मात्र मुखिया बदला गया है, यह समझना भूल होगी। ऐसा लगता है कि यह नव उपद्रव का अखाड़ा बन सकता है। वजह यह भी कि चन्नी राहुल गांधी के करीबी कहे जा रहे हैं। राहुल गांधी का चोरी-छिपे चीनी दूतावास में चीनी अधिकारियों से तब मिलना जब चीन भारत के लिए खतरा था, या पाकिस्तान से भारत की तनातनी के दौरान सिद्धू की पाकिस्तान से नजदीकियां और तीसरे, किसान आंदोलन के संदर्भ में कांग्रेस नेताओं का विदेशी शक्तियों के सुरों में सुर मिलाना। ये तीनों ही प्रकरण बताते हैं कि कांग्रेस ने अपना जनाधार खो दिया है और अब उसे अपनी राजनीति के लिए विदेशी ‘नैरेटिव’ का प्यादा बनने से भी गुरेज नहीं है। राहुल गांधी जिस अभियान पर चले हैं चन्नी उसकी एक कड़ी हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। पंजाब बदलाव का गवाह बनेगा, मगर यह बदलाव शांति और स्थिरता का होगा या उपद्रव के अखाड़े में तब्दील हो जाएगा, अभी नहीं कहा जा सकता।
@hiteshshanker
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