गुजरात में कोरोना की दूसरी लहर ने कम प्रकोप नहीं दिखाया। लेकिन आज यह राज्य गजब की संकल्पशक्ति के साथ तेजी से उबरता दिख रहा है। डब्ल्यूएचओ ने भी राज्य सरकार के कोविड संक्रमण से निपटने के प्रयासों की तारीफ की है
एक अस्पताल में डाक्टरों और अन्य मेडिकल कर्मियों से स्थिति का जायजा लेते हुए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल (फाइल चित्र)
वुहान वायरस की दूसरी लहर की प्रचंडता को समाप्त करके भारत धीरे-धीरे फिर से उभर रहा है। राज्यों में जैसे-जैसे स्थितियां काबू में आ रही हैं, वैसे-वैसे लॉकडाउन में ढील बढ़ती जा रही है। मई में संकट का स्तर असाधारण था। मेडिकल आक्सीजन की एकाएक मांग बढ़ गई थी। अस्पतालों में बिस्तरों की कमी देखने में आई थी। वेंटीलेटर और अन्य उपकरण उपलब्ध कराने की आपाधापी थी। पिछली बार यानी कोविड की पहली लहर से उलट, इस बार केन्द्र ने राज्यों के हाथ में सभी व्यवस्थाओं की बागडोर देने का फैसला किया था। इसके पीछे वजह थी, राज्यों की ओर से यह मांग कि उनके राज्यों की स्थितियों की जानकारी के हिसाब वे ज्यादा सही तरीके से व्यवस्थाएं देख पाएंगे। और कई राज्यों ने बखूबी काम किया भी। अपने यहां के अस्पतालों की क्षमता बढ़ाई, आक्सीजन की आमद बढ़ाई, सामाजिक संस्थाओं का जितना बन पड़ा, सहयोग लिया, मेडिकल और दूसरे आपातकालीन सेवाओं से जुड़े कर्मियों ने भी अपने यहां की सरकार की इस ओर गंभीरता देखते हुए भरपूर सहयोग किया।
7 जून की शाम राष्ट् के नाम अपने विशेष संदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस ओर संकेत भी किया था। उन्होंने बताया कि कैसे कुछ राज्यों से स्थिति न संभलने के कारण केन्द्र को वैक्सीनेशन, मुफ्त राशन वितरण आदि के काम अपने हाथ में लेने पड़े हैं। चार—पांच राज्य तो खासतौर पर ऐसे हैं जिन्होंने मुसीबत को राजनीतिक चश्मे से देखते हुए, आपदा से बाहर आने के प्रयासों में गंभीरता आने ही नहीं दी। महाराष्ट्, राजस्थान, पंजाब, झारखंड और दिल्ली। इन राज्यों ने जनता को राहत पहुंचाने के प्रयास करने के बजाय केन्द्र सरकार पर सोशल मीडिया और प्रेस वार्ताओं के जरिए आक्षेप ही लगाए। करोड़ों रुपए खुद अपनी तारीफें करते हुए विज्ञापनों पर खर्चे, लेकिन आक्सीजन, वेंटिलेटर की कमी दूर करने के कोई प्रयास नहीं किए। राजस्थान में लाखों वैक्सीन वॉयल की बर्बादी हुई। झारखंड सरकार के कथित साथ से ईसाई मिशनरियों ने संकटकाल में भी खुलकर कन्वर्जन का खेल खेला। पंजाब ने केन्द्र से गए वेंटिलेटर 'खराब' बताकर कबाड़खाने में फेंक दिए।
लेकिन इन्हीं परिस्थितियों से गुजरने वाले, ऐसे भी राज्य हैं जिन्होंने संकटकाल में असाधारण प्रयास करते हुए, वुहान वायरस के प्रकोप को जल्दी ही काबू कर लिया। अपनी जनता को फिर से स्वस्थ, सबल जीवन की ओर बढ़ने का हौसला दिया। और इतना ही नहीं, खुद वुहान वायरस का प्रकोप झेलते, आक्सीजन, उपकरणों और अस्पताल में बिस्तरों की भारी कमी से निपटते हुए भी, दूसरे ज्यादा आहत राज्यों को, अपने संसाधनों की खपत को कम से कम करते हुए, मदद पहुंचाई।
जिन राज्यों ने वुहान वायरस की दूसरी अप्रत्याशित और भीषण लहर के बीच उल्लेखनीय काम किया उनमें दो राज्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उत्तर प्रदेश और गुजरात। दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। इसलिए सेकुलर मीडिया जितनी नकारात्मक खबरें, तथ्यरहित खबरें दिखाने की कोशिश कर सकता था, उसने वह की। लेकिन क्योंकि उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है इसलिए उसकी अनेक तथ्यात्मक खबरें सामने आती रहीं कि कैसे जांच—निदान में तेजी लाने के कदम उठाए गए।
गुजरात ने दिखाया कमाल
लेकिन गुजरात के बारे में सही तथ्य उतने सामने नहीं आ पाए। इसमें संदेह नहीं है कि गुजरात, एकबारगी तो उन राज्यों में चौथा था जहां संक्रमण का सबसे ज्यादा प्रकोप था। लेकिन पूर्व तैयारी, सही रणनीति, सकारात्मक सोच, समेकित प्रयास, संसाधनों का अधिकतम प्रयोग और तत्परता के बूते गुजरात न सिर्फ संक्रमण दर को तेजी से घटाने में सफल हुआ, बल्कि अपने यहां मरने वालों की दर भी तेजी से नीचे ला सका। कैसे संभव हुआ यह?
गुजरात के मुख्य सचिव अनिल मुकिम ने अभी 29 मई को वर्चुअल कांफ्रेंस की थी जिसमें वुहान वायरस की संभावित तीसरी लहर के लिए जरूरी चीजों का पहले से ही आकलन करने पर चर्चा हुई। राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों से मुकिम ने कोरोना की दूसरी लहर के अनुभव के आधार पर आक्सीजन, अस्पताल में बिस्तरों, कर्मियों, वेंटिलेटर, दवाओं आदि की मांग और आपूर्ति तय करने को कहा। ठीक इसी तरह की पूर्व तैयारी की गई थी वहां, वुहान वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के आने से पहले। फरवरी, 2021 से ही राज्य स्तर के अधिकारियों ने बैठकें करके संभावित संकट से निपटने की रणनीति बनाते हुए, संसाधनों की तैयारी कर रखी थी। यह बात भी सही है कि 30 अप्रैल को जहां राज्य में संक्रमण के एक दिन में सर्वाधिक 14,605 मामले आए थे, 4 मई को सक्रिय मामलों की संख्या 1.48 लाख तक पहुंच गई थी। लेकिन 5 मई के बाद से, धीरे-धीरे सक्रिय मामलों और मृत्यु दर में कमी आती गई है।
सबका मिला साथ
गुजरात को इस संकट से उबारने में जहां सरकार ने अपने स्तर पर अस्पतालों की संख्या बढ़ाई, जांचें बढ़ाईं, प्रतिबंध कड़े किए, जागरूकता अभियान चलाए। तो वहीं, वहां चल रहे कई सरकारी उपक्रमों ने भी जरूरत के वक्त अपनी जिम्मेदारी निभाई। आक्सीजन की किल्लत के चलते, 'इफ्को' ने अपनी कल्लोल इकाई में निर्माणाधीन आक्सीजन प्लांट का काम युद्ध स्तर पर ले जाते हुए, उसे 15 मई तक चालू कर दिया। इफ्को की इकाई से यह आक्सीजन 46.7 लीटर के सिलेंडरों में भरकर सीधे आक्सीजन की कमी से जूझ रहे अस्पतालों तक पहुंचाई गई। और इफ्को एक नहीं, कुल चार आक्सीजन प्लांट बना रहा है अपनी अलग अलग इकाइयों पर। इधर गुजरात सरकार अपने 22 अस्पतालों में 36 पीएसए प्लांट चालू करने जा रही है, जिससे राज्य को आक्सीजन की कमी न झेलनी पड़े।
डेयरियों ने पहुंचाया दूध भी, आक्सीजन भी
बनासकांठा की बनास डेयरी और सुप्रसिद्ध अमूल डेयरी ने आक्सीजन आपूर्ति में शानदार पहल की। बनास डेयरी ने पालनपुर में देखते ही देखते आक्सीजन प्लांट खड़ा कर दिया और अस्पतालों में आक्सीजन की आपूर्ति की। इस प्लांट की क्षमता है प्रतिघंटे 20 क्यूबिक मीटर आक्सीजन का उत्पादन। और तो और, डेयरी 50 क्यूबिक मीटर क्षमता का प्लांट भी तैयार करने वाली है। इस उदाहरण से गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन इतनी उत्साहित है कि उसने राज्य की तमाम दूध डेयरियों से आक्सीजन प्लांट लगाने और संकटकाल में राज्य की जनता की मदद करने का आह्वान किया, जिसे सभी डेयरी संचालकों ने सराहा और अपने—अपने प्रयास तेज कर दिए।
इसी तरह अमूल डेयरी ने आणंद में श्रीकृष्ण अस्पताल में आक्सीजन प्लांट तैयार किया। यह प्लांट प्रतिघंटे 20,000 लीटर आक्सीजन तैयार कर सकता है। अब अमूल डेयरी नाडियाड और बालासिनोर में भी दो आक्सीजन प्लांट लगाने जा रही है। अमूल डेयरी के प्रबंध निदेशक अमित व्यास का कहना है कि 45 लाख रु. खर्च करके आणंद का आक्सीजन प्लांट सिर्फ 8 दिन में तैयार किया गया था।
'इफ्को' ने अपनी कल्लोल इकाई में निर्माणाधीन आक्सीजन प्लांट का काम युद्ध स्तर पर ले जाते हुए, उसे 15 मई तक चालू कर दिया। इफ्को की इकाई से यह आक्सीजन 46.7 लीटर के सिलेंडरों में भरकर सीधे आक्सीजन की कमी से जूझ रहे अस्पतालों तक पहुंचाई गई। और इफ्को एक नहीं, कुल चार आक्सीजन प्लांट बना रहा है अपनी अलग अलग इकाइयों पर। इधर गुजरात सरकार अपने 22 अस्पतालों में 36 पीएसए प्लांट चालू करने जा रही है, जिससे राज्य को आक्सीजन की कमी न झेलनी पड़े।
रिलायंस ने पहुंचाई राहत
20 अप्रैल 2021 को ही रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी से खबर आई कि वह मेडिकल आक्सीजन की अपनी उत्पादन क्षमता 100 एमटी से बढ़ाकर 1,000 एमटी करने जा रही है। एक दिन में 700 टन मेडिकल आक्सीजन तैयार करके रिलायंस ने न सिर्फ गुजरात को बल्कि दूसरे जरूरतमंद राज्यों तक को मुफ्त आक्सीजन पहुंचाई, जिनमें महाराष्ट् और मध्य प्रदेश भी शामिल हैं। इतनी आक्सीजन से रोजाना 70,000 मरीजों को प्राणवायु मिल सकी। दिलचस्प बात यह है कि रिलायंस रिफानरी के आम उत्पादनों को बनाने की प्रक्रिया में आक्सीजन नहीं बनती। लेकिन आक्सीजन की बढ़ती मांग को देखते हुए, पूरा इंतजाम किया गया, उपकरण लगाए गए और संयंत्र को चालू किया गया। और एक बात, खास टैंकरों में जीरो से 183 डिग्री नीचे के तापमान पर, मेडिकल आक्सीजन को सभी राज्यों में मुफ्त वितरित किया गया। इसी तरह इंडियन आयल और भारत पैटा्ेलियम ने भी अस्पतालों को अपने यहां बनी आक्सीजन पहुंचाई।
गुजरात सरकार ने अपनी जरूरत की आक्सीजन का कोटा तय प्रक्रिया के अनुसार, केन्द्र को ही भेजा। राज्य ने दूसरे स्रोतों से सीधे आक्सीजन लेने की बजाय आवंटित कोटे से अपने यहां की मांग पूरी की। उसके बाद, सरकार के सक्रिय योगदान से दूसरे राज्यों को आक्सीजन भेजी गई।
भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको ओफेरिन ने गुजरात के आपदा से निपटने के प्रयासों की खुलकर प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि गुजरात ने संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों की घर-घर जाकर तत्परता से पहचान करके खतरा कम किया है। उन्होंने कहा कि गुजरात वैक्सीनेशन में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है।
डब्ल्यूएचओ ने की तारीफ
गुजरात सरकार और अन्य संस्थाओं के ऐसे प्रयासों के कारण संकट से उबरते गुजरात की डब्ल्यूएचओ ने भी तारीफ की है। भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको ओफेरिन ने गुजरात के आपदा से निपटने के प्रयासों की खुलकर प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि गुजरात ने संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों की घर-घर जाकर तत्परता से पहचान करके खतरा कम किया है। उन्होंने कहा कि गुजरात वैक्सीनेशन में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। गुजरात ने आपदा की पुनरसमीक्षा करके पूर्व तैयारी की, जिसका सुखद परिणाम देखने को मिला। दूसरे राज्य इससे सीख ले सकते हैं।
इसके साथ ही बहुत हद तक यह राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर होता है कि उसे अपने राज्य को आपदा कैसे उबारना है। इस दृष्टि से राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का नाम भी गुजरातवासियों की जबान पर है। उनका कहना है कि रूपाणी ने कड़ी मेहनत की है, जगह—जगह जाकर व्यवस्थाएं देखना, आवश्यकता की जल्दी से जल्दी पूर्ति करवाना और अपने केबिनेट सहयोगियों के साथ लगातार परामर्श करते हुए, स्वास्थ्य सेवा को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने में रूपाणी ने दिन—रात एक किया है। शायद इसी से उपजे आत्मविश्वास के साथ विजय रूपाणी ने 10 मई को कहा था—''कोविड की दूसरी लहर से उबरने वाला पहला राज्य होगा गुजरात।''
यह सच है कि गुजरात में अब महामारी का प्रकोप पहले के मुकाबले कम है। पाबंदियां कम हुई हैं। लेकिन सतर्कता के साथ, राज्य को आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर गुजरातवासी अपनी जुझारू प्रकृति के साथ नए संकल्प को लेकर आगे बढ़ने को तैयार हैं।
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