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‘‘यह समय देश से सामाजिक विषमता को उखाड़ फेंकने का है। जिस दिन हम ऐसा कर पाएंगे, उस दिन सही अर्थों में हमें स्वतंत्रता व समता हासिल हो पाएगी। लेकिन इसके लिए जरूरी है सामजिक बंधुता। जब समाज एक होगा तो कोई भी शत्रु हम पर हावी नहीं हो पाएगा।’’ उक्त उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने दिया। वे गत 2-5 नवंबर को जयपुर के चित्रकूट स्टेडियम में संपन्न स्वर गोविंदम् समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वर गोविंदम् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ऐसा कार्यक्रम है जो लोगों में कौतुहल जगाता है। लेकिन संघ का उद्देश्य आकर्षण जगाना नहीं बल्कि मन-बुद्धि के विकास से जुड़े कार्यक्रमों के जरिए समाज में जागरूकता लाना, राष्ट्रीयता को बढ़ावा देना है। श्री भागवत ने बताया कि प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से 1200 से अधिक स्वयंसेवक आए और घोष वादन किया। इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन करना या हुनर दिखाना नहीं बल्कि राष्ट्र सेवा का भाव बढ़ाना है। ये स्वयंसेवक नि:स्वार्थ भाव से वाद्य यंत्रों से जुड़ी बारीकियां सीखते हैं। यह जज्बा भी राष्ट्र सेवा का ही रूप है। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से रेवासा पीठ के संत सर्वश्री राघवाचार्य, नाथ संप्रदाय के रमणनाथ, हरमाड़ा नाथ संप्रदाय के भावनाथ भी मौजूद रहे। ल्ल
समारोह की झलकियां
1,276 घोषवादकों ने किया स्टेडियम में प्रदर्शन
6 वीरांगनाओं का हुआ मंच से सम्मान
400 से अधिक स्वयंसेवकों ने संभाली व्यवस्था
3 प्रवेश द्वारों पर सजाई
गर्इं झांकियां
35 हजार से अधिक नागरिकों ने देखा
मनोहारी कार्यक्रम
‘सेवा भाव से जागता है राष्ट्र् भाव’
जयपुर के सहकार भवन के पास सेवा भारती के नवनिर्मित भवन ‘सेवा सदन’ का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने किया। इस 7 मंजिला भवन में योग, चिकित्सा परामर्श, प्रशिक्षण, और कार्यालय से जुड़ी गतिविधियां संचालित होंगी। इस अवसर पर श्री भागवत ने कहा कि विश्व फिर भारत से मार्गदर्शन की उम्मीद कर रहा है। इसके लिए हमें भारत को और समृद्ध-सशक्त बनाना होगा। यह एक व्यक्ति या संगठन की नहीं, बल्कि संपूर्ण देशवासियों की जिम्मेदारी है। संस्कार स्वावलंबन और सेवा से ही देश को समृद्ध बनाया जा सकता है।
संघ का प्रकल्प सेवा भारती समाज में सेवा कार्यों के जरिए संस्कार और स्वावलंबन को सींच रहा है। उन्होंने कहा कि समाज को एक बात यह समझनी चाहिए कि सेवा का भाव बोलने का नहीं, करने का है। सेवा ऐसी करनी चाहिए कि जब आपका एक हाथ दे रहा हो, तो दूसरे को पता तक न चलने पाए।
‘घोष-गांव’ में दिखे ऐतिहासिक वाद्य-यंत्रपिछले दिनो
जयुपर के केशव विद्यापीठ, जामडोली में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के घोष शिविर में ऐतिहासिक और परम्परागत लोक वाद्य-यन्त्रों की प्रदर्शनी शुरू हुई,जिसमें 108 प्रकार के लोक वाद्यों को अवलोकन के लिए रखा गया है। प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सह शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री जगदीश प्रसाद, राजस्थान विश्वविद्यालय में ललित कला संकाय की प्रोफेसर मधु भट्ट तैलंग, विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध लोक कला विद्वान विनोद जोशी ने किया। प्रदर्शनी स्थल को ‘घोष गांव’ नाम दिया गया।
आकर्षक वाद्यों का प्रदर्शन
‘‘घोष गांव’’ में लोक वाद्यों की प्रदर्शनी में कामायचा, सिंधी-सारंगी, रण-सिंगा, नर-सिंगा, सुरिंदा, डेरू, रबाब, चिकारा, सांरगी, खरताल, मंजीरे, ढोलक, चंग, मोरपंख, शहनाई, इकतारा, नगाड़ा, खंजरी शंख आदि अनेक प्रकार के वाद्यों को जनता के अवलोकन के लिए रखा गया है। इनमें लुप्त हो चुके राजस्थानी रबाब का भी प्रदर्शन किया गया है।
इस अवसर पर राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख श्री जगदीश प्रसाद ने कहा कि संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में हुई थी। इसके एक साल बाद ही संघ में घोष को शामिल कर लिया गया था। समाज के मन में अपने देश के प्रति समर्पण का भाव जगना चाहिए, ऐसे उद्देश्यों को लेकर संघ ने एक घंटे की शाखा का तंत्र चुना। शाखा में रोज स्वयंसेवक आते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रमों से शाखा में आने वाले स्वयंसेवकों को संस्कारित किया जाता है। उन्हीं संस्कारों से स्वयंसेवकों के मन में देशभक्ति का भाव जन्म लेता है।
स्वयंसेवकों में एक दिशा में कदम से कदम मिलाकर चलने का भाव आता है। उन्होंने कहा कि घोष शिविर संघ की विशेष विधा का एक शिविर है। संघ की शाखा में अनुशासन निर्माण करने के लिए सबका मन मिले, इसके लिए स्वर से स्वर मिलाकर गाने का अभ्यास प्रतिदिन कराया जाता है। हमारा मानना है कि अगर कदम से कदम मिला और स्वर से स्वर मिला तो निश्चित रूप से मन मिलेगा, और मन मिलेगा तो संगठन का भाव मन में जरूर आएगा। इसलिए दैनिक शाखा में करने वाले कार्यक्रमों में घोष (बैण्ड) का उपयोग करते हैं। इससे शाखा में आने वाले स्वयंसेवकों के मन में वीरता भाव
का निर्माण और विजय की भावना पैदा होती है।
उन्होंने कहा कि हम उस चरण पर पहुंचे गए हैं कि अब संघ द्वारा बनाई गई धुनों को भारतीय सेना बजाती है। दिल्ली में 1982 में हुए एशियाड खेल के उद्घाटन समारोह में नौसेना के बैण्ड ने जो धून बजाई थी उसे संघ के स्वयंसेवकों ने बनाया था। ‘शिवराजे’ नामक वह धुन असल में शिवाजी महाराज का स्तुतिगान है। संघ की ऐसी 40 से ज्यादा धुनों को भारतीय नौसेना दल में शामिल किया गया है। राजस्थान के संघ कार्य के विकास में यह शिविर मील का पत्थर साबित होगा। (विसंकें, जयपुर )
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